पॉक्सो एक्ट में मुकदमा बंद करवाना संभव है?

 पॉक्सो एक्ट में मुकदमा बंद करवाना संभव है? कानूनविदों और पुलिस से जानें अंदर का सच
बृजभूषण शरण सिंह बनाम महिला पहलवान मसलहे में, ‘पॉक्सो एक्ट’ को ही लेकर चर्चा हो रही है. तमाम लोगों का मत है कि इस एक्ट में मुलजिम को तुरंत जेल भेजा जाता है. कुछ सोचते हैं कि समझौते से ‘POCSO ACT’ का मुकदमा बंद हो जाता है? सच समझने को जरूर पढ़ें यह Inside Story

POCSO Act: 28 मई 2023 को जबसे सुप्रीम कोर्ट में खुद की खाल बचाने के लिए दिल्ली पुलिस ने भारतीय कुश्ती संघ अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह बनाम महिला पहलवान के बदनाम प्रकरण में, एक ही साथ दो-दो मुकदमे दर्ज किए हैं. इन दो में से एक मुकदमा ‘पॉक्सो एक्ट में नाबालिग लड़की के बयान पर दर्ज हुआ है. तभी से देश में बच्चे-बूढ़े जवान कानून के जानकार और गैर-जानकर हर किसी की जुबान पर ‘पॉक्सो एक्ट’ चढ़ा हुआ है. जाने- अनजाने जो लोग यह समझते हैं कि ”पॉक्सो एक्ट” (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस) जैसे सख्त कानून में मुकदमा दर्ज होते ही, आरोपी/नामजद/संदिग्द या मुलजिम को सीधे गिरफ्तार करके जेल में ठूंस दिया जाता है.

आज हम मगर बात करते हैं कि क्या, पॉक्सो एक्ट (POCSO ACTProtection of Children from Sexual Offences Act 2012)के तहत दर्ज मुकदमों में पीड़ित और मुलजिम यानी, दोनो संबंधित पक्ष आपसी समझौता से मुकदमे को बंद कराने का हक रखते हैं. अगर नहीं तो कैसे और अगर हां तो कैसे? इस सवाल के जवाब में यहां जिक्र करना बेहद जरूरी है अब से करीब आठ महीने पहले पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की बेबाक टिप्पणी का.

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बीते साल यह टिप्पणी तब की थी जब, पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज एक मुकदमे में आपसी सहमति से मुकदमे को वापिस लेने की अपील संबंधित हाईकोर्ट की पीठ के समक्ष की गई थी. पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज कराए गए उस मुकदमे में हाईकोर्ट में अपील दायर हुई थी कि, दोनो पक्षों के बीच समझौता हो चुका है. लिहाजा अब पॉक्सो एक्ट में दर्ज मुकदमे को रद्द करने की अनुमित हाईकोर्ट दे दे. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने तब, इस अहम अपील का निपटारा करते हुए दोनो पक्षों से (शिकायती पक्ष और मुलजिम पक्ष) दो टूक कहा कि, “पॉक्सो जैसे बेहद सख्त और बाल यौन हिंसा उत्पीड़न मामलों में न्याय दिलाने के लिए ही विशेषकर बनाए गए पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज.

मुकदमों में ही अगर समझौता मंजूर करके उन्हें (पॉक्सो एक्ट में दर्ज मुकदमा) खारिज करना शुरु कर दिया गया तो फिर, इस सख्ततरीन और बच्चों/नाबालिगों की सुरक्षा के लिए बने इस अहम कानून की अहमियत ही क्या, क्यों और कैसे बाकी बच सकेगी? ऐसे मामलों में समझौते शुरु होने से तो पॉक्सो एक्ट का मतलब ही कुछ बाकी नहीं बचेगा.” याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी तब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस सुवीर सहगल ने की थी. उन्होंने तो पॉक्सो एक्ट की याचिका को खारिज करते हुए यहां तक सख्त टिप्पणी की कि, “बालिग होने पर शादी कर लेने से नाबालिग से दुष्कर्म का आरोप खत्म नहीं हो जाता है.

तब POCSO ACT बेईमानी बन जाएगा!

पॉक्सो एक्ट तो बनाया ही बच्चों से अपराध के मामलों में सख्ती से, पीड़ितों को न्याय और मुलजिमों को सजा देने के उद्देश्य से था. अगर समझौते करके पॉक्सो एक्ट के मुकदमों को खारिज किया जाने लगा तो फिर ऐसे में तो एक्ट बेईमानी बन जाएगा. लिहाजा दुष्कर्म व पॉक्सो एक्ट में दर्ज मुकदमे में आरोपी द्वारा नाबालिग पीड़िता के बालिग होने पर उसके साथ शादी कर लेने भर से. मुकदमा खारिज नहीं किया जा सकता है. अगर ऐसा किा जाने लगा तो यह पॉक्सो एक्ट को बनाए जाने के मूल उद्देश्य से ही सीधे सीधे भटक जाने जैसा हो जाएगा.”

दरअसल पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने यह सख्ततरीन टिप्पणी करते हुए. पॉक्सो एक्ट में दर्ज जिस मामले में समझौता होने की दलील पर मुकदमा खारिज करने की अपील को नामंजूर कर दिया, वो मामला 22 जुलाई 2019 का पंजाब के लुधियाना जिले का था. जिसमें दो नाबालिग लड़कियां घर से स्कूल को निकली थीं. उन दोनो को आरोपी गुरप्रीत सिंह और नवदीप सिंह अपने साथ ले गए, और उनके साथ बलात्कार की घटना को अंजाम दिया. दो में से एक आरोपी नवदीप सिंह ने अपने खिलाफ पॉक्सो एक्ट में दर्ज मुकदमे को खारिज करने की अपील पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में लगाई थी.

समझौते से पॉक्सो का मुकदमा बंद नहीं होता

इस दलील के साथ कि उसने रेप पीड़िता और पॉक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज कराने वाली नाबालिग लड़की के बालिग होते ही, उसके साथ शादी कर ली है और अब वे दोनो शिकायतकर्ता-मुलजिम की तरह नहीं. अपितु घर में पति-पत्नी की तरह रहते हैं. हालांकि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के इस फैसले के एकदम उलटा उदाहरण पेश आया, उन्हीं दिनों मेघालय हाईकोर्ट में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकमदे को खारिज कराने के मामले में. जहां, मेघालय हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकदमे को इस बिना पर.

याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार करते हुए, पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा खारिज कर दिया कि, अगर दोनो पक्ष खुशहाल हैं तो फिर, दो परिवारों की खुशी में हमें (मेघालय हाईकोर्ट) हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. ऐसे मामलों में आरोपी को भी सहानुभूति की नजर से देखा जा सकता है. पॉक्सो एक्ट में दर्ज ऐसे ही एक मामले की अपील का निपटारा करते हुए. कुछ वक्त पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी, याचिकाकर्ता मुलजिम पक्ष को राहत दे दी थी.

पॉक्सो के मुकदमे की प्रकृति पर सब कुछ निर्भर

एक पॉक्सो एक्ट को लेकर तीन-तीन राज्यों के हाईकोर्ट का अपने-अपने हिसाब से फैसला सुनाने को लेकर, टीवी9 ने बात की सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर डॉ. एपी सिंह से. एपी सिंह दुनिया में चर्चित रहे निर्भया हत्याकांड में फांसी की सजा पाए मुजरिमों (अब चारो ही मुजरिम 20 मार्च 2020 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाए जा चुके हैं) के पैरोकार वकील रहे डॉ. एपी सिंह ने कहा, “बेशक बाल यौन हिंसा-उत्पीड़न रोकने के लिए बनाया गया पॉक्सो एक्ट बेहद सख्त और कामयाब कानून साबित हो रहा हो. मगर कानून सिर्फ एक नजर से नहीं चलता. कानून की अपनी परिभाषा होती है.

हर मुकदमे का अपना अलग रूप होता है. मामले की सुनवाई करने वाली कोर्ट पर यह काफी हद तक निर्भर करता है कि, उसे मुकदमे की फाइल में क्या कुछ मौजूद दिखाई पड़ रहा है? उसी हिसाब या नजर से कोर्ट अपना फैसला सुनाकर मुकदमा खारिज भी कर सकती है और जारी भी रख सकती है. निर्भर इस पर करता है कि जज के सामने मौजूद मुकदमे की प्रकृति क्या सिद्ध कर रही है?”

पॉक्सो एक्ट: बृजभूषण शरण सिंह बनाम महिला पहलवान

ऐसे में अब बात करते हैं इन दिनों बृजभूषण शरण सिंह बनाम देश की महिला पहलवानों के चलते. चर्चाओं में आए पॉक्सो एक्ट के मुकदमे को लेकर. जिसमें शिकायतकर्ता महिला पहलवान (पीड़िता) और उसकी सपोर्ट में धरना-प्रदर्शन पर उतरीं बाकी तमाम महिला पहलवानों की तमाम जिद और गुस्से के बाद भी, आरोपी (भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह) की गिरफ्तारी न होने की. तो इस सवाल के जवाब में दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ क्रिमिनल लॉयर और दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव ने कहा,

“किसी पीड़ित के पॉक्सो एक्ट में दर्ज मुकदमा इस बात की लिखित गारंटी नहीं देता है कि, मुकदमा दर्ज करते ही आरोपी को गिरफ्तार करके पुलिस सीधे ले जाकर जेल मे ठूंस दे. बेशक बाल यौन उत्पीड़न और हिंसा रोकने के लिए बना पॉक्सो एक्ट सख्त है. मगर वो जांच एजेंसी (पुलिस) को भी तमाम कानूनी अधिकार देता है. पॉक्सो एक्ट में कहीं नहीं लिखा है कि, मुकदमा दर्ज करते ही आरोपी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए. अगर पुलिस जल्दबाजी में किसी मुलजिम को बिना सबूत गिरफ्तार करके पॉक्सो कोर्ट में ले जाकर पेश कर दे.

कोर्ट में जल्दबाजी पुलिस को जंजाल बनेगी

और वहां जांच एजेंसी पर मुलजिम ही भारी पड़ गया तो, शिकायतकर्ता तो एक तरफ हो जाएगी. मुलजिम के खिलाफ मजबूत सबूत जुटाए बिना ही उसे गिरफ्तार करके फटाफट कोर्ट में पेश कर देने के चलते, जांच एजेंसी के गले में कोर्ट जरूर अपनी सख्ती का शिकंज कस देगी. उदाहरण के लिए बृजभूषण शरण सिंह बना महिला पहलवानों का ही मुकदमा ले लीजिए. जिसमें पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके तफ्तीश शुरु कर दी है. अब महिला पहलवान यह चाहती है कि सड़क पर उनके धरना-प्रदर्शन से घबराकर पुलिस आरोपी को (बृजभूषण शरण सिंह) गिरफ्तार करके जेल में तत्काल गिरफ्तार करके डाल दे.

तो सवाल यह पैदा होता है कि पुलिस को कोर्ट में मुकदमा और आरोप सही साबित करने हैं. जब तक वो सबूत और गवाह नहीं जुटा लेगी, तब तक सिर्फ इस बिना पर कि महिला पहलवान सड़कों पर कोलाहल मचाए हैं. मेडल गंगा में फेंक आने की धमकी दे रही हैं. ताकि पुलिस हड़बड़ाकर जल्दी से जल्दी आरोपी को गिरफ्तार करके, हल्के सबूतों के साथ ही क्यों न सही, कोर्ट में पेश करके अपनी छीछालेदर करवा ले. सिर्फ महिला पहलवानों (साथ में शिकायतकर्ता भी) की खुशी की खातिर.

तो यह पॉक्सो एक्ट में कहीं नहीं लिखा है कि सिर्फ किसी की खुशी के लिए जांच पूरी होने से पहले ही, मुजलिम को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश कर दिया जाए. यह न केवल पुलिस के लिए अपितु, पीड़ित पक्ष के लिए भी कोर्ट में कानून कमजोर करने का कारण मुकदमे की कोर्ट में सुनवाई के दौरान बन सकता है.”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *