बंगाल में लगेगा राष्ट्रपति शासन? सुप्रीम कोर्ट ने EC, केंद्र और ममता सरकार से मांगा जवाब

पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, बंगाल सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है। कोर्ट में चुनाव के बाद बिगड़ती कानून-व्यवस्था के मद्देनजर राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए निर्देश देने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई थी।

नयी दिल्ली: पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, बंगाल सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है। कोर्ट में चुनाव के बाद बिगड़ती कानून-व्यवस्था के मद्देनजर राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए निर्देश देने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। इसी के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। याचिका में केंद्र को राज्य में हालात सामान्य बनाने में प्रशासनिक अधिकारियों की मदद और किसी गड़बड़ी से उनकी रक्षा के लिए सशस्त्र, अर्द्धसैन्य बलों की तैनाती के लिए निर्देश देने का भी आग्रह किया गया है।

इसके अलावा याचिका में राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद हिंसा के कारणों की जांच के लिए एक SIT बनाने का भी अनुरोध किया गया है। न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने याचिका पर केंद्र, पश्चिम बंगाल और निवार्चन आयोग को नोटिस जारी किये। इस याचिका में राज्य में चुनाव पश्चात हिंसा के पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों को हुए नुकसान का पता लगाकर उन्हें मुआवजा देने के लिए निर्देश देने की भी गुहार लगायी गयी है।

याचिकाकर्ताओं-उत्तर प्रदेश में वकालत करने वाली रंजना अग्निहोत्री और सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र सिंह की तरफ से पेश वकील हरि शंकर जैन ने कहा कि पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा के खिलाफ याचिका दाखिल की गयी है। पीठ ने कहा, ‘‘हम प्रतिवादी नंबर एक (भारत सरकार), प्रतिवादी नंबर-दो (पश्चिम बंगाल सरकार) और प्रतिवादी नंबर तीन (निर्वाचन आयोग) को नोटिस जारी कर रहे हैं।’’

हालांकि पीठ ने प्रतिवादी नंबर-चार तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पार्टी अध्यक्ष के तौर पर ममता बनर्जी को नोटिस जारी नहीं किया। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के जरिए दाखिल याचिका में कहा गया है कि असाधारण परिस्थितियों में जनहित याचिका दाखिल की गयी है क्योंकि पश्चिम बंगाल के हजारों नागरिकों को विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का समर्थन करने के लिए टीएमसी के कार्यकर्ता उन्हें धमका रहे, प्रताड़ित कर रहे।

याचिका के अनुसार, ‘‘याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल के उन हजारों नागरिकों के हितों की वकालत कर रहे हैं जो ज्यादातर हिंदू हैं और बीजेपी का समर्थन करने के लिए मुसलमानों द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे हिंदुओं को कुचलना चाहते हैं ताकि आने वाले वर्षों में सत्ता उनकी पसंद की पार्टी के पास बनी रहे।’’

याचिका में कहा गया, ‘‘भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा पैदा करने वाली बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 द्वारा प्रदत्त अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए।’’ इसमें कहा गया है कि दो मई को विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद, टीएमसी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने अराजकता फैलाना, अशांति पैदा करना शुरू कर दिया और हिंदुओं के घरों और संपत्तियों में आग लगा दी, लूटपाट की और उनका सामान लूट लिया क्योंकि उन्होंने विधानसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया था।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा चुनाव के दौरान, टीएमसी ने मुसलमानों की भावनाओं को जगाने और उनसे एकजुट रहने और अपने बेहतर भविष्य के लिए अपनी पार्टी को वोट देने की अपील करते हुए सांप्रदायिक आधार पर चुनाव लड़ा था। शीर्ष अदालत पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा से जुड़ी कई याचिकाओं पर पहले से सुनवाई कर रही है।

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