गाजियाबाद के 12 अस्पतालों की जांच का आदेश ….. बायो मेडिकल कचरा नालों में बहा रहे ये अस्पताल, NGT ने 2 मार्च तक जांच रिपोर्ट मांगी

दिल्ली से सटे जिला गाजियाबाद के बड़े-बड़े हॉस्पिटल भी बायो मेडिकल वेस्ट का ठीक तरीके से निपटारा नहीं कर रहे। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने शनिवार को इस मामले में गाजियाबाद के डीएम और प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को एक ज्वाइंट कमेटी बनाकर 12 बड़े अस्पतालों की जांच का आदेश दिया है। यह कमेटी जांच करके बताएगी कि सच्चाई क्या है। इस मामले में अगली सुनवाई दो मार्च 2022 को होगी।
नालों से हिंडन नदी में पहुंच रहा मेडिकल कचरा
आरटीआई एक्टीविस्ट सुशील राघव ने इस मामले में NGT में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि गाजियाबाद के 12 प्रमुख हॉस्पिटल अपना बायो मेडिकल कचरा बड़े-बड़े नालों में डाल रहे हैं। यह नाले हिंडन नदी में जाकर गिरते हैं, जहां गंगा और यमुना दोनों नदियों का पानी आता है। इस प्रकार हिंडन नदी प्रदूषित हो रही है। भूजल पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। यह भी आरोप है कि उक्त हॉस्पिटल प्रदूषण सहित अन्य एनओसी के बिना काम कर रहे हैं। सुशील राघव की इस याचिका पर एनजीटी ने 16 दिसंबर को वर्चुअल सुनवाई की। इसके बाद एनजीटी ने 18 दिसंबर को आदेश जारी कर हॉस्पिटलों की जांच कराने के लिए कहा है।
बड़े-बड़े हॉस्पिटल भी शामिल
मैक्स हॉस्पिटल, मीनाक्षी हॉस्पिटल, यशोदा हॉस्पिटल, आरोग्य हॉस्पिटल, अदिति हॉस्पिटल, पारस हॉस्पिटल, क्लियरमेडी हॉस्पिटल एंड कैंसर सेंटर, वसुंधरा हॉस्पिटल, शांति गोपाल हॉस्पिटल, यशोदा सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल, ली क्रिस्ट हॉस्पिटल, संतोष मेडिकल कॉलेज की जांच करने का आदेश एनजीटी ने दिया है।
कितने तरह का होता है बायो मेडिकल वेस्ट

  • औषधीय पदार्थ : इसमें बची-खुची और पुरानी व खराब दवाएं आती हैं।
  • रोगयुक्त पदार्थ : इसमें रोगी का मल-मूत्र, उल्टी, मानव अंग आदि आते हैं।
  • रेडियोधर्मी पदार्थ : इसमें विभिन्न रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे कि रेडियम, एक्स-रे तथा कोबाल्ट आदि आते हैं।
  • रासायनिक पदार्थ : इसमें बैटरी व लैब में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न रासायनिक पदार्थ आते हैं।

पांच साल की सजा और एक लाख जुर्माने का प्रावधान
बायो मेडिकल वेस्ट का सही ढंग से निपटान करने के लिये केंद्र सरकार ने बायोमेडिकल वेस्ट (प्रबंधन व संचालन) नियम, 1998 बनाया है। इसके अनुसार निजी व सरकारी अस्पतालों को इस तरह के चिकित्सीय जैविक कचरे को खुले में या सड़कों पर नहीं फेंकना चाहिए। न ही इस कचरे को म्यूनीसिपल कचरे में मिलाना चाहिए। स्थानीय कूड़ाघरों में भी नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इस कचरे में फेंकी जानी वाली सेलाइन बोतलें और सिरिंज कबाड़ियों के हाथों से होती हुई अवैध पैकिंग का काम करने वाले लोगों तक पहुंच जाती हैं, जहां इन्हें साफ कर नई पैकिंग में बाजार में बेच दिया जाता है। इस जैविक कचरे को खुले में डालने पर अस्पताल संचालकों को पांच साल की सजा और एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है।

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