गरीबों की मदद के लिए करोड़ों की कंपनी बेच दी, 40 गांवों को गोद लिया; 40 हजार लोगों तक पीने का पानी पहुंचाया

समाज में बदलाव के बारे में कई लोग बात करते हैं, लेकिन कुछ ही लोग इसकी वजह बन पाते हैं। महाराष्ट्र की रहने वाली जयश्री उन चंद लोगों में से हैं जो अपनी सुख-सुविधा और करोड़ों की कंपनी छोड़कर गांव में आ बसीं। उन्होंने गांव वालों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। पिछले 14 सालों से वे लगातार गांव में काम कर रही हैं। उन्होंने 40 गांवों को गोद लिया है। अब तक 40 हजार से ज्यादा लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया कराया है। साथ ही हजारों महिलाओं को ट्रेनिंग देकर रोजगार से जोड़ा है।

14 साल की उम्र से ही लोगों के लिए काम करने लगीं

72 साल की जयश्री रविंद्र राव, महाराष्ट्र के पंचगनी में ग्रामपरी नाम का NGO) चलाती हैं। जयश्री बचपन से ही सोशल वर्क से जुड़ी रहीं हैं। जब वे 14 साल की थीं तभी इनिशिएटिव ऑफ चेंज (IOFC)’ नाम के NGO से जुड़ गयीं थी। इसकी नींव महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने रखी थी। इसके बाद राजमोहन से प्रेरित जयश्री समाज में बदलाव के लिए काम करे लगीं।

72 साल की जयश्री बेंगलुरु में लंबे समय तक रही हैं और वहां उन्होंने करोड़ों की अपनी कंपनी खड़ी की थीं।

जयश्री बताती हैं, “ मैंने राजमोहन गांधी जी के साथ काम किया। उन्हीं से मुझमें समाज सेवा की भावना जागी। उस दौरान मैं पंचगनी के पास गांव में रहकर लोगों के लिए काम कर रही थी। तब NGO की बिल्डिंग बनाने वाले मजदूरों के बच्चों को पढ़ाती थी। उस NGO के साथ मैंने 10 साल से ज्यादा समय तक काम किया। इसके बाद बेंगलुरु के एक डेंटिस्ट से जयश्री की शादी हो गई और वे वही शिफ्ट हो गईं। वे वहां एक नॉर्मल लाइफ जीने लगीं।

सब्जी वाले से साथ हुई घटना ने बदल दिया जिंदगी का मकसद

जयश्री बताती हैं, “मेरे पिता बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट थे। उनका इंजीनियरिंग टूल्स बनाने का कारोबार था। पिता की वजह से मुझे भी टूल्स की काफी जानकारी थी। इसलिए मैंने भी एक इंजीनियरिंग टूल कंपनी शुरू की। धीरे-धीरे मेरा बिजनेस काफी बढ़ने लगा। अच्छी कमाई हो रही थी। हमारे कई प्रोडक्ट लाखों में बिक रहे थे। हम काफी खुश थे, लेकिन एक दिन हमारी लाइफ में कुछ ऐसा हुआ जिससे मेरी लाइफ और जिंदगी का मकसद बदल गया।

साल 2006 की बात है। दरअसल मैं ऑफिस से आ रही थी। रास्ते में सब्जी वाला मिला। मैंने सब्जी खरीदने लगी। उस वक्त मैं 5 रुपए के लिए सब्जी वाले से मोल भाव कर रही थी। काफी देर बाद वो मान गया और मैं सब्जी लेकर घर आ गई, लेकिन उसके बाद मुझे अफसोस होने लगा। मुझे यह रियलाइज होने लगा कि मैं गलत कर रही हूं। इतनी कमाई का क्या फायदा जब एक गरीब से 5 रुपए के लिए मोल-भाव करना पड़ा।

जयश्री के पति बेंगलुरु के जाने माने डेंटिस्ट हैं। वे भी जयश्री की मुहिम में खुलकर मदद करते हैं।
जयश्री के पति बेंगलुरु के जाने माने डेंटिस्ट हैं। वे भी जयश्री की मुहिम में खुलकर मदद करते हैं।

जयश्री कहती हैं कि उस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। कमाई और धन-दौलत से मेरा नाता टूटने लगा। मैंने तय किया कि अब आगे की लाइफ कमाने की बजाय गरीबों की सेवा और उनकी लाइफ बेहतर करने में खपाऊंगी।

करोड़ों की कंपनी 25 हजार में बेच दी

साल 2007 में जयश्री ने अपने कर्मचारियों को ही अपनी कंपनी 25 हजार रुपए में बेच दीं और पंचगनी आकर बस गईं। चूंकि उन्होंने पहले यहां काम किया हुआ था। लिहाजा उन्होंने पंचगनी से ही अपने काम की शुरुआत की। उन्होंने ग्रामरी नाम से एक NGO शुरू किया और गांव के लोगों के लिए काम करने लगीं। वे कहती हैं कि यहां काम करने के दौरान मुझे रियलाइज हुआ कि ज्यादातर लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है। इसलिए उन्हें जरूरी लाभ नहीं मिल पाता है।

इसके बाद जयश्री ने गांव के लोगों को सरकारी योजनाओं को लेकर अवेयर करना शुरू किया। वे जिले के अधिकारियों से भी मिलीं। शुरुआत में ज्यादातर लोग इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहे थे, लेकिन बाद में लोग उनकी मुहिम से जुड़ने लगें। इसके बाद कई लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिला।

जयश्री कहती हैं कि महिलाओं और लड़कियों को मजबूत और सेल्फ डिपेंडेंट बनाने के लिए हमने ट्रेनिंग दी और उन्हें रोजगार से जोड़ा।
जयश्री कहती हैं कि महिलाओं और लड़कियों को मजबूत और सेल्फ डिपेंडेंट बनाने के लिए हमने ट्रेनिंग दी और उन्हें रोजगार से जोड़ा।

जयश्री आगे बताती हैं कि गांव में ज्यादातर लोग गरीब थे और उनके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था। इसलिए मैंने तय किया कि इन लोगों की मदद से कुछ काम किया जाए ताकि इन्हें रोजगार मिल सके, कुछ आमदनी हासिल हो सके। इसी को लेकर मैंने दिवाली में गांववालों से मिट्टी के दिए बनवाए और उन्हें अपने NGO की मदद से बेचने का काम किया। जिससे यहां के स्थानीय लोगों का अच्छा खासा मुनाफा मिला।

झरनों को बचाया, लोगों को पीने का पानी मुहैया कराया

जयश्री की मेहनत धीरे-धीरे रंग लाने लगी। गांव के लोग उन पर भरोसा करने लगे। वे बताती हैं कि यहां के अखेगनी गांव में पानी की समस्या थी। लोगों को पीने पानी नहीं मिल पा रहा था। उन्हें दूर से पानी लाने के लिए जाना पड़ता था। इसलिए उन्होंने इसको लेकर योजना बनानी शुरू कर दी।

जयश्री बताती हैं,“पंचगनी के ज्यादातर गांव पहाड़ों में बसे हैं। जहां पानी का सोर्स झरना है, लेकिन वो झरने या तो सूख चुके थे या फिर उनका पानी बहुत गंदा हो गया था। संयोगवश उस समय गांव में इनिशिएटिव ऑफ चेंज (IOFC) NGO से जुड़े अमेरिका से एक हाइड्रोलॉजिस्ट आए हुए थे। उन्होंने हमारी काफी मदद की। उन्होंने बतायाकि हम कंक्रीट से ढंके टैंक की मदद से झरनों के पानी को दूषित होने से बचा सकते हैं। हमने उसी तरह काम करना शुरू किया और झरनों के पानी को सेव करना शुरू किया। जिससे गांव के लोगों को साफ पानी मिलने लगा।”

जयश्री गरीब बच्चों को मुफ्त एजुकेशन भी प्रोवाइड करा रही हैं। अलग-अलग गांवों में हजारों बच्चे उनकी इस मुहिम के साथ जुड़े हैं।

इसी तरह धीरे-धीरे दूसरे गांवों में भी उन्होंने अपनी मुहिम शुरू की। एक के बाद एक गांवों को साफ पानी से जोड़ती गईं। अब तक जयश्री करीब 40 से अधिक गांव में 40 हजार लोगों को साफ पीने के पानी का इंतजाम कर चुकी हैं।

महिलाओं को रोजगार से जोड़ा, बच्चों को मुफ्त एजुकेशन

पानी की तकलीफ दूर करने के बाद जयश्री ने धीरे-धीरे महिलाओं को रोजगार दिलाने के लिए कई योजनाएं शुरू की। वे कहती हैं कि हमने महिलाओं को इम्पावर करने के लिए उन्हें कई तरह की ट्रेनिंग दी। इससे उन्हें आर्थिक मदद भी मिलने लगी। इसके बाद ऑर्गेनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग दी और उससे लोगों को जोड़ा। इससे गांव के लोगों को अच्छी इनकम होने लगी। इसके साथ ही उन्होंने गांव के लोगों को सफाई के लिए मोटिवेट किया।

वे कहती हैं कि आज कोरोना के डर से हर कोई हाथ धोने की बात कर रहा है, लेकिन हम लोग ये काम बहुत पहले से करते रहे हैं। जयश्री तकरीबन 162 स्कूलों में बच्चों को प्रॉपर हैंड वॉश के लिए ट्रेनिंग दे चुकी हैं। इसके अलावा वे गरीब बच्चों को मुफ्त एजुकेशन भी प्रोवाइड करा रही हैं। अलग-अलग गांवों में हजारों बच्चे उनकी इस मुहिम के साथ जुड़े हैं।

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