10 बड़े OBC नेताओं के भाजपा छोड़ने का असर …..

3 मंत्री व बाकी नेता सपा को 137 सीटों पर दिलाएंगे फायदा, अगड़ा-पिछड़ा में बांटने की रणनीति चली तो ये गेमचेंजर……

योगी कैबिनेट विस्तार के वक्त ओबीसी चेहरों को अहम जिम्मेदारी देकर संतुलन बनाने की कोशिश हुई थी। लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव से पहले सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए दल-बदल का सहारा लेने वाले नेताओं ने नए समीकरण पैदा कर दिए हैं।

3 मंत्रियों सहित 14 नेता भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं। जिनमें 10 ओबीसी कास्ट के हैं। इससे अगड़ा-पिछड़ा की सपा रणनीति का जबरदस्त असर देखने को मिला। अब पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक 137 सीटों पर ओबीसी राजनीति की बदली हुई तस्वीर सामने हैं।

आइए आपको नेताओं के दल-बदल के बाद बनती-बिगड़ती स्थितियां समझाते हैं…

शाह के फार्मूले पर अखिलेश की साइकिल दौड़ रही

साल 2017 में अमित शाह ने पिछड़ों और अति पिछड़ों को अपने पाले में खड़ा कर एक नया राजनीतिक फार्मूला इजाद किया था। वह जानते थे कि यादव मतदाता सपा छोड़कर भाजपा के साथ नहीं देंगे। इसलिए उन्होंने पटेल, मौर्य, चौहान, राजभर और निषाद जैसी जातियों के प्रमुख राजनीतिक चेहरों को अपने साथ लिया। नतीजतन, शाह पूर्वांचल के 28 जिलों की 164 विधानसभा सीटों में से 115 पर भाजपा को जीत दिलाने में सफल रहे।

अब शाह के फार्मूले को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमाकर भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों को चित कर दिया है। इन दिनों काशी की गलियों की अड़ियों से लेकर लखनऊ के हजरतगंज चौराहे तक एक ही चर्चा है कि चुनाव परिणाम भले ही किसी भी करवट बैठें, लेकिन अखिलेश ने यह जता दिया है कि यूपी में विपक्ष की राजनीति के केंद्र बिंदु वही हैं।

4 बिंदुओं में 4 जातियों का चुनावी गणित समझिए….

  1. सुभासमाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर अपने समाज के बड़े नेताओं में से एक हैं। वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर और देवीपाटन मंडल की विधानसभा सीटों में राजभर समाज का जोर है। दावे हैं कि पूर्वांचल की 20 से ज्यादा जिलों में किसी भी पार्टी का माहौल बना और बिगाड़ सकते हैं।
  2. कुशीनगर की पडरौना विधानसभा से विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य की राजनीतिक दखल रायबरेली और शाहजहांपुर होते हुए बदायूं तक माना जाता है। मौर्य बिरादरी के मतदाता यूपी में 6 से 8 प्रतिशत बताए जाते हैं। इसमें कुशवाहा, काछी, सैनी और शाक्य आदि भी शामिल हैं।
  3. आजमगढ़ के दारा सिंह चौहान आजमगढ़ मंडल के 3 जिलों मऊ, बलिया और आजमगढ़ के अलावा इसके आसपास के अन्य जिलों में असर रखते हैं। 2017 में मऊ से खुद भी चुनाव जीता। बल्कि पूर्वांचल के पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेताओं के लिए माहौल बनाया।
  4. अपना दल के संस्थापक डॉ. सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल अभी तक अपना राजनीतिक अस्तित्व तलाश रही हैं। कमेरा समाज के लोगों का कहना है कि डॉ. सोनेलाल पटेल की पत्नी होने के कारण कृष्णा पटेल के साथ हम सबकी सहानुभूति उनके साथ है। अब ऐसा नहीं है कि एकमुश्त वोट अनुप्रिया पटेल के दल के प्रत्याशियों को ही मिलेगा।

टिकट में कास्ट फैक्टर का रखना होगा ख्याल
पूर्वांचल की सियासत पर बारीकी से नजर रखने वाले वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एके लारी कहते हैं कि अखिलेश यादव ने पूर्वांचल की राजनीति को अच्छे से समझा है। वह जानते हैं कि यादवों के साथ यदि OBC के अन्य मतदाता भी खड़े हो जाएं तो फिर एक अलग ही समीकरण बनेगा।

अब असली परीक्षा टिकट देने के लिए योग्य प्रत्याशियों के चयन की है। अखिलेश यदि टिकट सोच-समझ कर देंगे तो मुस्लिम, अन्य पिछड़ा वर्ग और सवर्ण बिरादरी के अपने परंपरागत मतदाताओं के सहारे वह इस बार अपने पक्ष में अच्छा परिणाम दे सकते हैं।

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