कहानी हाथरस के उस गांव से, जहां रिपोर्टिंग गुनाह! … मिलिए…उस परिवार से जो रोज एक गैंगरेप के दर्द से गुजरता है

सबकी बेटी डोलती हैं आगे पीछे… मेरी तो चली गई। उस दिन वो आटा गूंथते हुए एक सपना बता रही थी कि गांव में आग लग गई.. सब लोग भाग रहे हैं। मैंने चूल्हे पर चाय पीते हुए कहा कि तू ऐसे सपने देखती है रे? उसने तोरई की सब्ज़ी बनाई। बोली कि धूप हो जाएगी, जल्दी घास काट लाते हैं। वापस आकर रोटी उतार लेंगे। वह मुझे बाजरे के खेत में मरी हुई मिली। मैं झोली फैलाती रही कि थोड़ा सा मुंह दिखा दो। इन लोगों ने मुंह नहीं दिखाया।’

ये शब्द उस मां के हैं, जिसने हाथरस गैंगरेप कांड में अपनी बेटी खोई। उस मां के आंसू आज भी नहीं सूखे हैं। खौफ से परिवार आज भी उभर नहीं सका है। वक्त और मुआवजे का मरहम उनके जख्मों को भर नहीं सका है। CRPF की पूरी एक कंपनी की सुरक्षा के बावजूद परिवार डर के साए में डेढ़ साल से अपने ही घर में कैद है। परिवार का गुजारा सरकारी राशन और मुआवजे की रकम से चल रहा है।

 

हर दिन गैंगरेप के दर्द से गुज़रता है परिवार

पीड़िता के भाई बताते हैं कि डेढ़ साल हो गया है हम सिर्फ ज़रूरत पड़ने पर ही बाहर निकलते हैं, वह भी अस्पताल या कोर्ट जाने के लिए। इसके लिए बाकायदा लिखा पढ़ी होती है और CRPF के जवान के साथ जाना होता है। मुआवजे के तौर पर पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपए मिले थे। घर का गुज़ारा उसी रकम से हो रहा है।

भाई का कहना है कि एक दिन खाली होते-होते यह रकम खत्म हो जाएगी। सरकार का वादा था कि वह हमें नौकरी और रिहाइश देगी। अभी तक कुछ नहीं हुआ। वह बताते हैं ‘सरकार हाथरस में ही रिहाइश और नौकरी दे रही है जबकि यहां तो घर से निकलने में भी हमारी जान को खतरा है। हमें यहां न रिहाइश चाहिए न नौकरी।’ इस घटना से पहले पीड़िता के पिता एक प्राइवेट स्कूल में 2500 रुपए मासिक वेतन पर बतौर सफाई कर्मचारी नौकरी करते थे।

परिवार के पास 5 बीघा खेत हैं। दहशत में बटाई पर दिया हुआ है। भाई कहते हैं, ‘घर के अंदर कैद हैं। बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है, हम नहीं जानते। न तो कहीं नौकरी कर पा रहे हैं। न पैसे कमा पा रहे हैं।’ सरकार का वादा था कि केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलेगा।

धमकियां मिलती है, SHO को बताने पर भी कुछ नहीं होता

वह कहते हैं कि बेशक हाथरस गैंगरेप के चारों आरोपी अभी जेल में हैं। हमारे परिवार की स्थिति भी तो कमोबेश ऐसी ही है। अंतर ये कि वे जेल में और हमारा घर ही एक तरह की जेल है। लगातार डराया धमकाया जा रहा, वह अलग। एक तरह से पीड़िता का परिवार हर दिन गैंगरेप के दर्द से गुज़रता है।

पीड़िता के भाई का कहना है कि वह मिलने वाली धमकियों की जानकारी SHO को दे रहे हैं, लेकिन वह कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। परिवार पर केस वापस लेने के लिए उस वक्त भी प्रशासन, ठाकुर, पंचायतों का दबाव था और आज भी है।

उस वक्त गांव में धारा 144 लगने के बावजूद हर दिन ठाकुरों की पंचायतें होती रहीं। खुलेआम धमकियां दी गईं लेकिन पुलिस खामोश पीछे खड़ी रही। आज तक धमकियां देने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टे डीएम ने परिवार से कहा अगर आपकी बेटी कोरोना से मर जाती तो इतना मुआवज़ा मिलता कभी?

कोर्ट में आरोपी सज-धजकर आते हैं, हाव-भाव से लगता नहीं कि आरोपी हैं

पीड़िता के भाई का कहना है कि मेरी दो बेटियां हैं। कभी न कभी तो यह सुरक्षा भी हटा दी जाएगी। हमें जवाब चाहिए कि उसके बाद हमारे परिवार का क्या होगा। यही नहीं कोर्ट की तारीख पर रेप करने वाले आरोपी पक्ष का परिवार दो गाड़ियां भरकर कोर्ट पहुंचता है। आसपास के गांव के ठाकुर भी उनका हौसला बढ़ाने और समर्थन के लिए और पीड़ित परिवार पर दबाव बनाने के लिए कोर्ट पहुंचते हैं। उनके हाव-भाव से लगता ही नहीं कि वह एक आरोपी हैं। वह खूब हंसी मज़ाक करते हैं। सज-धजकर कोर्ट पहुंचते हैं।

मम्मी बुआ मार देयी..
घर की महिलाओं में मां और भाभी की आंखे तो नम ही रहती हैं। बातचीत सुनते-सुनते पास बैठी बूढ़ी दादी रोने लगती है। कहती हैं, ‘छोटी थी सबसे, डोलती रहती थी, मेरे घर की रौनक चली गई।’ भाभी कहती हैं कि ‘जब मैं ब्याह कर आई थी तो गुड्डे गुड़ियों से खेलती थी। अभी भी अंगूठा चूसती थी। आज भी मेरी छोटी से बच्ची बोलती है कि मम्मी बुआ मार देयी। ‘

गैंगरेप की स्टोरी मां की जुबानी…

14 सितंबर 2020 की सुबह 7 बजे चाय पीने के बाद हाथरस गैंग पीड़िता अपनी मां के साथ चारे के लिए घास काटने निकली। घास काटने और जानवरों को चारा खिलाने के बाद ही सारा परिवार खाना खाया करता था। लंबे-लंबे बाजरे के खेत की मुंडेर पर मां-बेटी दोनों बातें करते हुए घास काट रहीं थीं। मां ने काम खत्म किया और यह बोल कर आगे चल दी कि यह बची हुई घास समेट कर तू भी आ जा।

मां चलती जा रही थी लेकिन पीछे से बेटी नहीं आई। मां ने आवाज़ दी लेकिन कोई हलचल नहीं हुई। चारों ओर लंबे-लंबे बाजरे के खेतों में खामोशी पसरी थी। मां लौटकर वापस उसी जगह गई। पूरी ताकत से अपनी बेटी का नाम चिल्लाने लगी। चारों ओर सन्नाटा था। अचानक मां ने देखा कि बेटी की चप्पल उसी मुंडेर पर पड़ी है। जहां वह घास समेट रही थी।

मां उस जगह पर चलते हुए बाजरे के खेत के अंदर जा पहुंची तो देखती है कि उसकी लाडली नंगे बदन है। गले में चुन्नी से फांसी का निशान है। आंखों और होठों पर खून है। सूजी हुई जीभ बाहर निकली हुई है। हिलाने-डुलाने पर बेटी ने बस एक आरोपी का नाम लिया और फिर से बेहोश हो गई। मां चिल्लाने लगी। पास के खेत में काम कर रहा ठाकुरों का एक लड़का वहां आया। मां ने उसे अपने घर भेजा कि मेरे बेटे को बुला लाओ। बेटे के आने तक किसी तरीके मां ने बेटी को कपड़े पहना दिए थे।

होश आने पर बहन के बयान तक नहीं हुए, उसने ऐसे ही दम तोड़ दिया
इस लड़ाई को यहां तक लाने के बारे में पीड़िता के भाई बताते हैं कि उस रोज़ जब मां के बुलावे पर मैं खेत पर गया तो देखा कि बहन बेहोश है। उसका गला छिला हुआ है। रीढ़ की हड्डी टूटी हुई है। जीभ भी खून से सनी है। लुंज-पुंज हालत में, मैं उसे उठाकर किसी तरह बाइक पर पुलिस चौकी ले गया। जहां मैंने अपने हाथ से लिखकर शिकायत दर्ज की।
पुलिसवालों से बहन को अस्पताल ले जाने के लिए कहा तो वह जवाब मिला कि जैसे लाए हो, वैसे ले जाओ। किसी तरह ऑटो बुलाकर मैं उसे हाथरस जिला अस्पताल ले गया। उसे खून की उल्टियां हो रही थी। डॉक्टरों ने कहा कि इसे अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज ले जाना होगा। उसी दिन शाम को हम उसे अलीगढ़ ले गए। 2 दिन के बाद बहन को कुछ देर के लिए होश आया और उसने मां को 2 और आरोपियों के नाम बताए। मां ने पापा को बताया तो उन्होंने चंदपा पुलिस स्टेशन बेटी के बयान कराने के लिए कहा। चंदपा पुलिस थाने वालों ने कहा कि मामला सादाबाद थाने का बनता है। इस बीच अभी तक अस्पताल में कोई पुलिसवाला नहीं पहुंचा था। 28 तारीख को पीड़िता को सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। जहां उसकी मौत हो गई।

पोस्टमार्टम हाउस के बाहर हम अपनी बहन की लाश ढूंढते रह गए
पीड़िता के भाई का कहना है कि पोस्टमार्टम से पहले हमें हमारी बहन की शक्ल दिखाई गई। उसके बाद हमें नहीं पता कि उसकी बॉडी कहां गई। हम पोस्टमार्टम रूम के बाहर इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन हमें बोला गया कि डेड बॉडी तो नोएडा पार गई है। किसी ने कहा कि यहीं है, सुरक्षित है। हम रात के ढाई बजे तक सफदरजंग अस्पताल में ही डेड बॉडी ढूंढते रहे। फिर एडीएम हाथरस हमें सफदरजंग अस्पताल आए।
बोले कि बॉडी हाथरस पहुंच चुकी है। हाथरस से पहले ही हमें एसपी, डीएम, सभी ने रोक लिया। कहने लगे कि हम सीधे शमशान घाट पहुंच जाएं, क्योंकि बॉडी घर नहीं जाएगी। गांव की बाहरी सड़क से ही बहन की बॉडी शमशान घाट ले जाई गई। तब तक गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका था। देश भर का मीडिया वहां पहुंच चुका था। परिवार में पीड़िता की मां, बाबा, दादी सभी रो-रोकर प्रशासन की मिन्नतें कर रहे थे कि एक दफा पीड़िता की शक्ल दिखा दो बस। प्रशासन ने कहा कि ठीक है। आप लोग घर पहुंचो। हम इस आश्वासन पर घर आ गए, लेकिन प्रशासन ने हमारी गैर मौजूदगी में बहन का अंतिम संस्कार कर दिया।

बिन ब्याही बेटी को दफनाते हैं…उन्होंने मेरी बहन को जला दिया
पीड़िता के भाई का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों का कहना था कि अगर हम शक्ल देख लेते तो दस दिन तक रोटी न खा पाते लेकिन रोटी तो वैसे भी हमारे हलक से नीचे नहीं उतर रही थी। हमें बताया गया कि एसपी, सीओ और सादाबाद थाने के SHO सस्पेंड किए गए हैं।
पीड़िता के भाई का कहना है कि शायद वह टूट जाते। सरकार ने हमें डराने और दबाने के लिए पूरा प्रशासनिक अमला उतार दिया था।हमारी बहन घर में सबसे छोटी थी। हमने उसे कभी थप्पड़ भी नहीं मारा था। जिस हाल में मैंने उसे देखा था। मैं भूल नहीं सकता हूं और अब न्याय लेकर रहूंगा। मैं कभी नहीं भूल सकता कि हमारी मर्ज़ी के खिलाफ हमारी बहन को जला दिया जबकि हमारे यहां बिन ब्याही बेटियों को मरने के बाद दफनाते हैं।
पीड़ित तो छोड़िए, उनके वकील को भी धमकी
हाथरस गैंग रेप की वकील सीमा कुश्वाहा का कहना है कि केस में 28 विटनेस हो चुके हैं। तीन विटनेस और बचे हैं। इसके बाद केस फाइनल आर्गुमेंट के लिए जाएगा। मामले की सुनवाई हाथरस स्पेशल एससीएसटी कोर्ट में हो रही है। इस वक्त विटनेस के अलावा मामला एविडेंस पर है। केस को लेकर उनपर आरोपी पक्ष की ओर से दबाव है। यह दबाव किस तरह का है इसपर सीमा कुश्वाहा खुलकर बात नहीं कर रही हैं।
आरोपियों के वकील बोले-पूरी सेना उनकी सुरक्षा में लगा दें
बचाव पक्ष के वकील मुन्ना सिंह पुंडीर कहते हैं कि अगर इस परिवार को CRPF की पूरी एक कंपनी की तैनाती के बावजूद डर लगता है तो मेरा कहना है कि भारत सरकार को बॉर्डर की पूरी सेना गांव में इनकी सुरक्षा में लगा देनी चाहिए। दरअसल, परिवार के पास पैसे की बारिश हो रही है। इसलिए इन्हें बाहर जाने की ज़रूरत ही नहीं है। मेरे क्लाइंट्स को तो ठाकुर होने का दंड मिल रहा है। इन्हें दलित होने का पुरस्कार ।
यहां 60% आबादी ठाकुरों की
घर में पीड़िता के पिता, दादी, मां, दो भाई, भाभी और दो भतीजियां हैं। पिता तो बात नहीं करते हैं। भाई ही बात करते हैं। पीड़िता के बड़े भाई का ही दम था कि वह इस मामले को यहां तक ले आए। अन्यथा 22 गांवों के सवर्णों, दबंगों, सरकार और प्रशासन के ज़ोर आगे कोई भी घुटने टेक देता।
450 घरों की आबादी वाले इस गांव में पीड़िता का घर आसपास ठाकुरों के घर से घिरा हुआ है। यहां 60% आबादी ठाकुरों की है। बाकी दलित समुदाय के घर हैं। यहां तक की गांव के चारों ओर 22 गांव भी ठाकुरों के हैं।
यहां रिपोर्टिंग नहीं थी आसान, विदेशी मीडिया के आने पर पाबंदी

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनने वाले इस केस की रिपोर्टिंग आज भी आसान नहीं। परिवार की सुरक्षा के लिए यहां CRPF का एक कंट्रोल रूम, पूरी एक कंपनी और आठ सीसीटीवी कैमरे है। लगभग 1 साल पहले इस केस की केरल से रिर्पोटिंग करने आए पत्रकार सिद्दीक कप्पन को गिरफ्तार कर लिया गया था। गांव के इस घर में विदेशी मीडिया के आने पर पाबंदी है।

गांव में घुसते ही सड़क पर CRPF के जवान कंधे पर बंदूक टांगे घूमते हुए दिखाई दे जाते हैं। कड़ी पूछताछ के बाद ही जवान अंदर जाने देते है। फिर बड़े से गेट के अंदर मिट्टी से लिपे कच्चे आंगन में छावनी जैसा माहौल है। वहां तैनात जवान पीड़िता के घर झांकने तक की इजाज़त नहीं देते हैं। हमारे वहां पहुंचते ही एक जवान ने कड़े शब्दों में पूछा कि आपके पास परमिशन है ? फिर पीड़िता के भाई को बुलाया और पूछा कि यह आपका नाम ले रही हैं। आपने हमसे पूछे बिना इन्हें यहां कैसे बुलाया। पीड़िता के भाई ने कहा- हां मैं इन्हें पहचानता हूं,और क्यों यह मुझसे नहीं मिल सकती हैं।

जवान ने अपने सीनियर से फोन पर बात की। हरी झंडी मिलने के बाद उसने हमारा आई कार्ड देखा। रजिस्टर में डिटेल नोट की। तब कहीं जाकर जाने की इजाजत दी।

इस लंबी चौड़ी प्रक्रिया के बाद एक मेटल डिटेक्टर से गुज़रना होता है। फिर एक लंबी गली आती है। इसके कोने में पीड़िता का घर है। घर के बाहर भी कुछ जवान तैनात हैं। छत पर भी 5 जवान मुस्तैद दिखे।

अंदर जाने पर एक ओर चारा काटने की एक मशीन थी। मिट्टी से लिपे आंगन के दूसरे कोने में तुलसी लगी मिली। पीड़िता का भाई बताता है कि यह पौधा उसी ने लगाया था। हमने घर की छत से गांव का माहौल जानना चाहा और वीडियो बनाना शुरू किया तो CRPF के जवान ने वीडियो बनाने से मना कर दिया। बोले कि आसपास के घर ‘दूसरे’ (ठाकुरों) लोगों के हैं, इसलिए वीडियो न बनाएं। पूरे समय बातचीत में कोई न कोई जवान आसपास ही रहा।

ठाकुर परिवार ने इनके बाबा की उंगलियां काट दी थी, सिर फाड़ दिया था

सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा कुश्वाहा बताती हैं कि पीड़ित परिवार का पहले भी आरोपी ठाकुर परिवार से झगड़ा हुआ था। ठाकुर परिवार ने पीड़ित परिवार के बाबा की उंगलियां कटवा दी थी और सिर फाड़ दिया था। पीड़ित परिवार ने एफआईआर करवाई थी। सभी चश्मदीद ही हॉस्टाइल हो गए। ट्रायल शुरू ही नहीं हो सका। डर के चलते पीड़ित परिवार का किसी ने साथ नहीं दिया। इस मामले में पूरा देश पीड़ित परिवार के साथ था।

यह कास्ट प्राइड का मामला है। पीड़ित परिवार एससी हैं। गांव में मात्र 2 से 3 परिवार ही एससी हैं, बाकी सब ठाकुर हैं। ठाकुरों के लिए यह रेप का मामला ही नहीं है बल्कि उनके लिए नाक का सवाल हो गया है। हमारे खिलाफ कोई कैसे जा सकता है। कोई कैसे एफआईआर करवा सकता है? इतनी हिमम्त कैसे जुटा सकता है।

मुझे याद है कि 5 मार्च 2021 को मैं कोर्टरूम में थी। तब हाथरस के वकीलों ने मेरे ही साथ बदमीज़ी की थी। एक एडवोकेट ने वहां बोला की सीमा, अपनी सीमा में रहो। यहां हाथरस आकर के केस न लड़ो। उस दिन केस एविडेंस पर आया था, शिकायतकर्ता का स्टेटमेंट था मैं वहीं थी। जिस एडवोकेट ने मुझे धमकाया उसपर 3 हत्या के आरोप थे।

इसके बाद मैंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंटरविन एप्लीकेशन दायर की। मैंने कहा कि मैं इस परिवार के साथ खड़ी रहूंगी। हाईकोर्ट की डायरेक्शन पर कोर्टरूम में सिक्योरिटी बढ़ा दी गई। सिर्फ उसी पार्टी को मौजूद रहने की परमिशन दी गई जिसका केस है। डिस्ट्रिक जज का डिमोशन कर उन्हें ट्रिब्यूनल में भेज दिया। प्रिसाइडिंग ऑफिसर जज का भी ट्रांसफर हो गया। मामले का ट्रायल यानी गैंगरेप और हत्या का मामला हाथरस की एससीएसटी कोर्ट में चल रहा है। रात के समय ज़बरदस्ती पीड़िता को जलाने, परिवार को कंपेनसेशन देने, हाथरस से बाहर नौकरी और रिहाइश देने का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा है।

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