प्रस्तावित नई शिक्षा नीति: 3 से 6 आयु वर्ष के बच्चों को भी मिलेगी नि:शुल्क शिक्षा

अब, 3 से 6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को भी निशुल्क शिक्षा का लाभ मिलेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस आयु वर्ग के बच्चों को भी नि:शुल्क शिक्षा के दायरे में लाने का प्रस्ताव तैयार किया है। अभी तक शिक्षा के अधिकार अधिनियिम में सिर्फ 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग  के बच्चों के लिए ही नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था थी।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसे प्रस्तावित नई शिक्षा नीति 2019 में शामिल किया है। इस प्रस्तावित नीति पर आगामी 30 जून तक सुझाव मांगे गए हैं। इस शिक्षा नीति में प्री स्कूल एजुकेशन पर भी जोर दिया गया है। खास बात यह है कि प्री स्कूल के बच्चों के लिए भी अब पाठ्यचर्या और शैक्षिक रूपरेखा तैयार की जाएगी। इसके लिए एनसीईआरटी के कार्यक्षेत्र में  विस्तार तक किया जाएगा। जिसमें, बच्चों को और भी बेहतर ढंग से सीखने को मिलेगा।

प्री-स्कूल एजुकेशन की प्रस्तावित नीति के कुछ बिंदु 
– बड़े पैमाने पर आंगनवाड़ी केन्द्रों का निर्माण किया जाएगा।
– आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को खेल आधारिक शिक्षा के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
– बेहतरीन शैक्षणिक सामग्रियां उपलब्ध कराई जाएंगी।
– पहले से चल रहे प्राथमिक विद्यालयों के साथ आंगडवाड़ी केन्द्रों को जोड़ना।
– आंगनवाड़ी केन्द्रों पर सीखने के लिए आकर्षक और प्रेरणादायक स्थानों के निर्माण के लिए विशेषज्ञों, प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा के विशेषज्ञों, कलाकारों और वास्तुकारों की  समितियों का निर्माण होगा।
– राज्य स्तर पर शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
– एक नियामक प्रणाली बनाई जाएगी जो पूर्व प्राथमिक स्कूलों (सभी सार्वजनिक, निजी एवं अनुदानित) को नियमित करेगी।

लखनऊ प्री स्कूल्स एसोसिएशन के सचिव डॉ. तुषार चेतवानी ने कहा कि अच्छी बात यह है कि सरकार ने प्री-स्कूल को भी अपनी नीति में प्रमुखता से उठाया है। सबसे पहले जरूरी है कि प्रदेश स्तर पर एक नियामक प्रणाली स्थापित हो। प्री-स्कूल्स का पंजीकरण कराया जाएगा। तब आगे की बात कर सकेंगे।

लखनऊ प्री-स्कूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अनूप अग्रवाल ने बताया कि प्री-स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे दो से पांच साल तक के होतें हैं। इनकी जरूरतें, सीखने और सिखाने के तरीके अलग होते हैं। इसलिए इन्हें कक्षा एक से शुरू होने वाले फार्मल स्कूलों से अलग किया जाना चाहिए।

लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के डॉ. अमिता वाजपेयी ने बताया कि प्री-स्कूल के बच्चों की जरूरतों के हिसाब से यहां पढ़ाने वाले शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाना अनिवार्य है। इसके अलावा, एक सपोर्ट सिस्टम भी विकसित है। जैसे आंगनवाड़ी में आने वाले बच्चों के लिए मेडिकल से लेकर दूसरी व्यवस्था तत्काल उपलब्ध होनी चाहिए।

बीबीएयू शिक्षा विभाग के प्रो. अरविंद कुमार झा ने बताया कि प्री स्कूल से ही बच्चों पर बोझ डाला जाता है। वह अक्षर पहचानने लगें। गिनती सीख जाएं। कविताएं सुनाएं। यह सब सिखाना ठीक है। लेकिन, जरूरी है कि बच्चों का बचपन बचा रहे। प्रस्तावित नीति में खेल-खेल में सीखने की बात कही गई है। यह स्वागत योग्य है।

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