जूनियर टेनी कैसे जेल से बाहर आए और आगे क्या? … केस के बैकग्राउंड, सबूतों के अभाव, किसानों के उग्र रवैए और आशीष की मंशा पर शक ने दिलाई जमानत

लखीमपुर कांड का मुख्य आरोपी अशीष मिश्र टेनी जमानत पर जेल से रिहा हो चुका है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आशीष मिश्र की जमानत निजी मुचलके और दो जमानत पत्र दाखिल करने पर मंजूर की है। इस फैसले ने किसान संगठनों की न्याय की लड़ाई को मुश्किल कर दिया है। लेकिन, कोर्ट गवाह और सबूतों के आधार पर फैसला करती है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जमानत को चुनौती दी गई है।

याचिकाकर्ता ने आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमानत देने के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शिव कुमार त्रिपाठी और सीएस पांडा ने अर्जी लगाई है। इसमें कहा गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश अनुमान के आधार पर है। इस केस में बैकग्राउंड, सबूतों के अभाव, किसानों के उग्र रवैये, आशीष की मंशा पर शक जैसी 7 बड़ी बातों ने उसे जमानत दिलाने में मदद की। जानिए कैसे एफआईआर और गवाहों पर भारी पड़े है जूनियर टेनी।

पढ़िए एक्सपर्ट्स का क्या कहना है इस मामले में…

1. किसानों के शरीर में गोली लगने के निशान नहीं मिले
लखीमपुर खीरी के वरिष्ठ वकील अवधेष सिंह ने बताया कि किसानों का कहना है कि जिस आधार पर आशीष को जमानत मिली है, उसने एफआईआर को पूरी तरह से झुठला दिया है। जमानत ऑर्डर में साफ कहा गया है कि जिस किसान की मौत गोली लगने से कही जा रही है, उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बताती है कि उनकी मौत गाड़ी के नीचे कुचलने से हुई थी।

किसानों के दो बार हुए पोस्टमार्टम में भी उनके शरीर में गोली के घाव नहीं मिले।
किसानों के दो बार हुए पोस्टमार्टम में भी उनके शरीर में गोली के घाव नहीं मिले।

किसान का दो बार पोस्टमॉर्टम भी हुआ है। शरीर में गोली लगने का कोई घाव नहीं था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और डॉक्टरों के बयान इसमें सबसे बड़े ग्राउंड हैं। अवधेष कुमार का कहना है कि अगर किसान संगठन फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी जाते हैं, तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की सच्चाई नहीं बदल सकते हैं।

2. अदालत को कोई ठोस सबूत नहीं मिले, इसीलिए केस कमजोर हो गया
लखनऊ हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील योगेश सोमवंशी बताते हैं कि जमानत देना अदालत का नियम है और न देना अपवाद है। अदालत जमानत देते वक्त यह देखती है कि आखिर इसे जमानत क्यों न दी जाए? जमानत की कंडीशन क्या होगी, आरोपी की भूमिका क्या थी, क्या वो जमानत पर बाहर आने पर किसी को परेशान करेगा।

सोमवंशी का कहना है कि अगर आप बेल ऑर्डर देखें, तो उसमें एफआईआर के आरोप और गवाहों के आरोप मेडिकल सुबूतों से मैच नहीं कर रहे हैं। इसमें सिर्फ आशीष के खिलाफ अहम धारा 120बी (षड्यंत्र करने की) है, लेकिन इसे साबित करना बहुत मुश्किल है। षड्यंत्र को कड़ी दर कड़ी जोड़ना होता है, मिलाना होता है। यह साबित करना मुश्किल है कि आशीष ने किसानों को कुचलने के लिए कहा, कोई योजना बनाई। यही कारण है कि आशीष को जमानत मिल गई।

3. केस का बैकग्राउंड कमजोर रहा, डॉक्टरों के बयान भी हल्के निकले

डॉक्टरों के बयान भी बताते हैं कि गोली लगने से किसी किसान की मौत नहीं हुई।
डॉक्टरों के बयान भी बताते हैं कि गोली लगने से किसी किसान की मौत नहीं हुई।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि एफआईआर में आरोप है कि आशीष अपनी कार में बैठा गोलियां चला रहा था और इसके बाद वह मौके से भाग गया। गोली लगने से एक किसान की मौत हो गई, जबकि किसान की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और डॉक्टरों के बयान बताते हैं कि गोली लगने से किसी भी किसान की मौत नहीं हुई है। किसानों की मौत कुचलने और धक्का लगने से आई चोटों की वजह से हुई है। कोर्ट का कहना है कि जब गोली किसी को लगी ही नहीं, तो आशीष को बेल मिल सकती है।

4. कोर्ट की बड़ी बात, संभव है ड्राइवर भीड़ से बचने के लिए गाड़ी दौड़ाई हो
कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि घटनास्थल पर हजारों प्रदर्शनकारी थे। प्रदर्शनकारियों में बहुत लोगों के पास तलवारें और लाठियां थीं, जबकि इलाके में धारा-144 लगी हुई थी। ऐसे में यह बिल्कुल संभव है कि ड्राइवर ने अपनी और गाड़ी में बैठे बाकी लोगों की जान बचाने के लिए गाड़ी दौड़ाई हो। एसआईटी की टीम ने जांच में पाया है कि ऐसा कोई सुबूत ही नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके के आशीष ने किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के लिए उकसाया हो।

5. आशीष की मंशा पर भी शक, इसका भी मिला फायदा
वकीलों का कहना है कि कोर्ट के बेल ऑर्डर के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अगर आशीष मिश्र की मंशा किसानों को कुचलने की होती, तो थार गाड़ी को सीधे किसानों पर चढ़ाने के लिए कहता और उस स्थिति में कई अन्य किसानों की मौत हो सकती थी।

6. किसानों के उग्र हमले पर सवाल, गांव की अकेली सड़क सबसे बड़ी गवाह

थार में बैठे तीन लोगों की मौत को भी कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है।
थार में बैठे तीन लोगों की मौत को भी कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है।

कोर्ट ने आदेश में कहा है कि थार में बैठे तीन लोगों की मौत को भी कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। गौरतलब है कि इस हिंसा में ड्राइवर हरिओम मिश्रा, भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा और श्याम सुंदर की भी निर्मम हत्या हुई थी। उनके पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि किसी कठोर और कुंद चीज से सिर और शरीर पर मारने से उन्हें चोटें आईं थीं। ये चोटें किसी वाहन से आना संभव नहीं है। इससे साबित होता है कि प्रदर्शनकारी भी उग्र थे। गांव में जाने के लिए एक ही सड़क थी। उसमें यदि प्रदर्शनकारी इतनी बड़ी संख्या में जमा न होते, आशीष की गाड़ी को निकलने के लिए रास्ता मिला होता, तो संभवतः ऐसी घटना न होती।

7. कोर्ट के आगे सरकार के पास अधिकार सीमित, किसान भी बंधे
पुलिस अधिकारियों ने नाम न बताने के अनुरोध पर बताया कि यदि सेशन कोर्ट ने जमानत का आदेश दिया होता, तो उसे चुनौती देने के लिए जिलाधिकारी हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर कर सकते थे। मगर, हाईकोर्ट से आदेश मिलने के बाद ऐसा करने की परंपरा नहीं रही है। लिहाजा, अब सरकार या पुलिस मामले में जमानत को खारिज करने के लिए रिव्यू पिटीशन नहीं डाल सकते हैं। प्रदर्शनकारी किसान भी इस मामले में पहल नहीं कर सकते हैं। क्योंकि वे केस में पार्टी नहीं है। हां, यदि मृतकों के परिजन या घटना में घायल लोग चाहें, तो वे जमानत खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा सकते हैं।

यह है पूरा मामला
आशीष मिश्र लखीमपुर में किसानों को थार गाड़ी से रौंदने के मामले में मुख्य आरोपी था। हाईकोर्ट ने 18 जनवरी 2022 को आशीष की जमानत अर्जी पर सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था। इस हिंसा में कुल 8 लोगों की मौत हो गई थी और 13 लोग घायल हो गए थे। 4 लोगों की मौत थार गाड़ी के नीचे कुचले जाने से हुई थी।

एफआईआर को जानिए

एफआईआर में इन बिंदुओं पर आशीष मिश्रा के खिलाफ लिखाई गई थी रिपोर्ट।
एफआईआर में इन बिंदुओं पर आशीष मिश्रा के खिलाफ लिखाई गई थी रिपोर्ट।

मामले में सीबीआई के वकील एसपी यादव के अनुसार, आशीष के खिलाफ 120-बी (षड्यंत्र रचना), 147, 148, 149 (पांच से अधिक लोगों के जमा होने पर और जिनके हाथों में हथियार हो।), 279 (लापरवाही से गाड़ी चलाकर एक्सीडेंट करना) , 302 (हत्या) , 304-ए (लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी को मारकर भाग जाना), 338 (एक्सीडेंट करना जिसमें किसी को चोट आ जाए) में मामला दर्ज किया गया।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को जानिए
रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों की मौत गोली लगने, किसी धारदार हथियार से हमला करने या मार-पीट की वजह से नहीं हुई है। उनके शरीर में हल्की और गंभीर दोनों प्रकार की चोटें थीं। इस प्रकार की चोटें किसी वाहन की टक्कर या कुचलने की वजह से आ सकती हैं। वहीं, थार गाड़ी में बैठे तीन लोगों की चोटों के बारे में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टरों ने बताया कि कठोर और कुंद चीज से सिर और शरीर पर मारने से आ सकती हैं। शरीर पर वाहन गुजरने से ऐसी चोटें नहीं आतीं।

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