करहल में अखिलेश को टक्कर देने वाले बघेल की कहानी … मुलायम ने अपने सिक्योरिटी गॉर्ड को चुनाव लड़ाया, आज वही अखिलेश की सबसे बड़ी टेंशन

आज यूपी की सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में से एक ‘करहल’ पर मतदान का दिन है। इस पर अखिलेश यादव को भाजपा के 4 बार के सांसद और मौजूदा मंत्री एसपी सिंह बघेल टक्कर दे रहे हैं। इस टक्कर की शुरुआत 12 साल पहले हुई थी। आइए आपको मुलायम सिंह के उस सिक्योरिटी गार्ड की पूरी कहानी बताते हैं, जो अखिलेश को हराने पर तुले हैं…

कहानी 1989 से शुरू होती है, मुलायम पहली बार सीएम बने थे…
5 दिसम्बर 1989 को मुलायम सिंह यादव सीएम बने तो उनकी सिक्योरिटी में यूपी पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर को लगाया गया। नाम है, सत्यपाल सिंह बघेल, तब उम्र 30 साल थी। तब उसकी शादी के सिर्फ 4 दिन हुए थे, लेकिन वो मुलायम के सीएम बनते ही ड्यूटी पर तैनात हो गया। मुलायम को ये बता पता चली तो बघेल को अलग से पहचानने लगे। फिर बघेल के दिन और रात मुलायम के इर्द-गिर्द गुजरने लगे।

फोटो साल 1985 की है। एसपी सिंह बघेल सब-इंस्पेक्टर की वर्दी में हैं।
फोटो साल 1985 की है। एसपी सिंह बघेल सब-इंस्पेक्टर की वर्दी में हैं।

मुलायम सीएम पद से हटे तो सिक्योरिटी गॉर्ड ने सरकारी नौकरी छोड़ दी

डेढ़ साल बाद यानी 24 जून 1991 को मुलायम की सरकार गिर गई। भारतीय जनता पार्टी के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। बघेल को अब कल्याण की सिक्योरिटी के लिए लगा दिया गया। लेकिन बघेल मुलायम के कॉन्टैक्ट में बने रहे।

2 साल तक सोचा और साल 1993 में सरकारी नौकरी छोड़ दी। इस्‍तीफा देकर सीधे मुलायम से मिलने पहुंच गए। अब मुलायम की नजर में उस 32 साल के लड़के की इज्जत और बढ़ गई। उन्होंने बघेल को समाजवादी पार्टी की यूथ ब्रिगेड का स्टेट प्रेसीडेंट बना दिया।

मुलायम ने नौकरी छोड़ने का तोहफा तो दिया, पेट पालने में दिक्कत होने लगी

1993 में किस्मत पलटी और मुलायम फिर सीएम बने। इसके बाद बघेल मुलायम के एकदम करीबी हो गए। लेकिन युथ बिग्रेड के स्टेट प्रेसिडेंट को कोई सैलरी नहीं मिलती थी। दरअसल, बघेल इटावा जिले के भटपुरा गांव के गड़ेरिया यानी अनुसूचित जाति के परिवार से हैं।

पढ़ाई में अच्छे होने के बाद भी उन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में सब-इंस्पेक्टर की नौकरी जॉइन कर ली। क्योंकि उन्हें तत्काल नौकरी की जरूरत थी, लेकिन हमेशा से महत्वाकांक्षी थे। उनकी काबिलियत के चलते उनकी ड्यूटी तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी की सुरक्षा में लगाई गई। यहीं से राजनीति का चस्का लग गया।

वह मौके की तलाश में थे। मौका मिला मुलायम का दिल जीतने का तो नौकरी छोड़कर दिल जीता। लेकिन इसकी वजह से परिवार चलाने में दिक्कत आने लगी। इसलिए उन्होंने मिलिट्री साइंस से पीएचडी करके आगरा के कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी शुरू कर दी।

सबकुछ सेट हो गया, सिर्फ चुनाव लड़ना बाकी था, लेकिन गुरु मुलायम ने टिकट नहीं दिया

वह तीन साल तक सपा की युवा ब्रिगेड को चलाते रहे। साल 1996 के लोकसभा चुनाव आए। बघेल अपने गुरु मुलायम के पास पहुंचे और टिकट मांगा। लेकिन सिक्योरिटी गॉर्ड को मुलायम ने हल्के में ले लिया।

पर उन तीन सालों में बघेल ने एकलव्य की तरह मुलायम को देखकर राजनैतिक दांव-पेंच सीख डाले थे। इधर मुलायम ने ठुकराया उधर जाकर मायावती से हाथ मिला लिया। बघेल ने 1996 के लोकसभा चुनावों में इटावा के जलेसर सीट से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं पाए।

फिर आया साल 1998, एसपी सिंह के जीवन का टर्निंग पॉइंट

साल 1996 की हार के बाद एसपी सिंह हताश हो चुके थे। सपा से भी उनकी दूरी बन चुकी थी। साल 1998 आया और देश में फिर लोकसभा चुनाव हुए। इस बार मुलायम सिंह यादव ने गुरु होने का फर्ज निभाते हुए एसपी सिंह को उसी जलेसर सीट से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतार दिया। एसपी सिंह ने बंपर जीत हासिल की और सांसद बन गए।

करहल में अपने समर्थकों का अभिवादन स्वीकारते हुए एसपी सिंह।
करहल में अपने समर्थकों का अभिवादन स्वीकारते हुए एसपी सिंह।

1998 की जीत के बाद एसपी सिंह ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। जलेसर सीट से सपा की टिकट पर ही साल 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव जीता। अब बघेल एक सिक्योरिटी गॉर्ड से यूपी के बड़े नेता बन गए थे।

2010 में सपा के साथ तकरार हो गई

साल 2010 में अचानक मुलायम ने बघेल को पार्टी से निकाल दिया। आज तक साफ-साफ किसी ने नहीं बताया कि कारण क्या था। एसपी सिंह ने बाहर आते ही बसपा जॉइन कर ली। अब वो मायावती के खास बन गए। साल 2010 में ही मायावती ने एसपी सिंह को राज्यसभा सांसद बनवा दिया। साल 2014 में बसपा की टिकट पर फिर चुनाव लड़े। लेकिन हार गए। वक्त को देखते हुए उन्होंने 2015 में भाजपा ज्वाइन कर ली।

बघेल राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी बन गए, जिस पार्टी में गए तुरंत टिकट मिला

2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के टिकट पर टुंडला सीट से विधायक बने। योगी सरकार में मंत्री बने। फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की टिकट पर ही आगरा से चुनाव लड़े और चौथी बार सांसद बने। इसके बाद 2021 में मोदी सरकार में केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री बन गए।

विधानसभा क्षेत्र करहल में प्रचार के दौरान ली गई बघेल की तस्वीर।
विधानसभा क्षेत्र करहल में प्रचार के दौरान ली गई बघेल की तस्वीर।

बघेल का गणित मुलायम समझते हैं, इसलिए बेटे को बचाने ‘करहल’ पहुंचे

जो शख्स 2017 में चुनाव जीता, राज्य सरकार में मंत्री बना, फिर कार्यकाल से पहले ही मंत्री पद छोड़कर सांसद बना और वहां केंद्रीय राज्य मंत्री बन गया। आखिर वो अखिलेश के खिलाफ क्यों मैदान में उतर गया?

इस बात को मुलायम से अच्छा कोई नहीं समझता। इसलिए 2022 में वो अब तक कहीं प्रचार करने नहीं गए। लेकिन करहल आए थे। मुलायम सिंह की सभा के बाद एसपी सिंह बघेल ने कहा, “मुलायम गुरु द्रोणाचार्य हैं और वे अपने शिष्य अर्जुन को कभी हारते हुए नहीं देखना चाहेंगे। उनका आशीर्वाद मेरे साथ है।”

आज ईवीएम में ये कैद हो जाएगा कि करहल की जनता ने गुरु के बेटे को चुना है या गुरु के शिष्य को।

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