PUBG जैसे हिंसक गेम के आदी 60% बच्चों में गन चलाने की इच्छा; रोकने पर करते हैं हत्या या सुसाइड

लखनऊ में 16 साल के नाबालिग ने अपनी मां को 6 गोलियां मारीं। लाश तीन दिन तक घर में सड़ती रही। मां की खता सिर्फ इतनी कि वो PUBG खेलने से रोकती थीं।

इसी साल 22 अप्रैल को रायगढ़ में 19 साल के दुर्गा प्रसाद ने फांसी लगा ली। वजह सिर्फ इतनी कि घर वाले PUBG खेलने से रोकते थे।

2021 में महाराष्ट्र के जामनेर की नम्रता खोड़के, 2020 में मथुरा का पीयूष शर्मा, 2019 में हैदराबाद का एक छात्र; सुसाइड करने वालों के नाम और शहर बदलते रहे, लेकिन वजह वही रही- PUBG।

…….में आज हम जानेंगे कि कैसे नशे से भी बुरी है हिंसक वीडियो गेम की लत? हमारे घर के मासूम बच्चों को कैसे वीडियो गेम हिंसक बना रहे? और कैसे पहचानें कि कहीं आपका बच्चा भी तो इसका शिकार नहीं?

JAMA नेटवर्क ओपन की एक रिसर्च के मुताबिक ,जो बच्चे गन वायलेंस वाले वीडियो गेम देखते या खेलते हैं, उनमें गन को पकड़ने और उसका ट्रिगर दबाने की ज्यादा इच्छा होती है।

इसमें रिसर्चर ने 200 से ज्यादा बच्चों में से 50% को नॉन वायलेंट वीडियो गेम और 50% को गन वायलेंस वाले वीडियो गेम खेलने को दिए गए।

इसके कुछ देर बाद ही देखा गया कि वायलेंस गेम खेलने वाले 60% बच्चों ने तुरंत गन को पकड़ा, जबकि नॉन वायलेंट गेम खेलने वाले सिर्फ 44% बच्चों ने गन पकड़ी।

WHO ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के लेटेस्ट एडिशन में इसे बीमारी, यानी गेमिंग डिसऑर्डर के रूप में क्लासिफाई किया है।

कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में मनोवैज्ञानिक रुन नीलसन के मुताबिक, जिस तरह कोई व्यक्ति बरसों तक निकोटिन या मॉर्फिन जैसी चीजों का इस्तेमाल करने पर इनका आदी हो जाता है, इसी आधार पर ऑनलाइन गेम्स को भी व्यसन माना गया।

अन्य व्यसनों की तरह गेमिंग डिसऑर्डर से ग्रस्त लोग इसी पर दांव लगाते रहते हैं, भले ही उनकी जिंदगी के बाकी पहलू बर्बाद क्यों न हो रहे हों। डॉ. योगिता कदयान के मुताबिक गेमिंग एडिक्शन बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ी बाधा है। वे गेम्स के अलग-अलग लेवल पार करने को अपनी अचीवमेंट मानते हैं।

ऑब्जर्वर रिसर्च फॉउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच भारत में ऑनलाइन गेम खेलने वालों की संख्या में 22 गुना की बढ़ोतरी हुई है। फिलहाल इनकी संख्या करीब 43 करोड़ है। 2025 तक इसके 65 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है।

इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 40 फीसदी हार्डकोर गेमर्स, हर महीने एवरेज 230 रुपये खर्च कर रहे हैं। फिलहाल ऑनलाइन गेमिंग का रेवेन्यू 13,600 करोड़ रुपए है, जिसके 2025 तक 20,000 करोड़ पहुंचने की संभावना है।

फोर्टिस हेल्थकेयर में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज की हेड डॉ. कामना छिब्बर बताती हैं, पेरेंट्स सबसे पहले पहचानने की कोशिश करें कि बच्चे को वाकई लत है या नहीं? अगर वो थोड़े समय के लिए खेल रहा है और गेमिंग की वजह से अन्य चीजें प्रभावित नहीं हो रही हैं, तो यह लत नहीं है। इन 3 तरीकों से बच्चों में गेमिंग की लत पहचानी जा सकती है…

1. अगर बच्चे की दिनचर्या में बदलाव नजर आए। उसका पूरा कामकाज पबजी के इर्द-गिर्द ही दिखाई देने लगे तो समझिए वह इस खेल की गिरफ्त में जा रहा है।

2. उसका स्वभाव आक्रामक और गुस्सैल हो सकता है। पबजी खेलने से रोकने पर वह हिंसक हो उठता है या गाली-गलौज भी कर सकता है।

3. इस खेल की लत में आया बच्चा आमतौर पर गुमसुम दिखाई देता है। उसकी याददाश्त में कमी आना, बात बिगड़ने के संकेत हैं।

अगर आपके बच्चों में भी हिंसक गेमिंग की लत है तो इससे छुटकारा पाने के कुछ सुझाव…

  • बच्चों को इस बात का एहसास होना कि ये लत नुकसानदेह है। इससे निजात दिलाने की तरफ पहला कदम है।
  • पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताएं। उनके साथ खेंलें। उनकी बातों को समझें।
  • गेमिंग गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण सोने वाले कमरे में रखने के बजाय किसी अन्य कमरे में रखें।
  • यदि लत पर क़ाबू पाना मुश्किल लग रहा है, तो इसे थैरेपी के ज़रिए दूर किया जा सकता है।

सरकार ने 3 सितंबर 2020 को सरकार ने 59 ऐप्स के साथ PUBG पर भी बैन किया था। सरकार ने कहा कि ये ऐप्स ऐसी गतिविधियों में जुटे थे, जिसका असर देश की संप्रुभता, अखंडता और सुरक्षा पर पड़ रहा है। हालांकि बैन होने के बावजूद भारत में PUBG की APK फाइल को डाउनलोड करके जुगाड़ से खेला जा रहा है।

2019 में अच्युतानंद मिश्रा की एक रिसर्च के मुताबिक, भारत में हिंसक ऑनलाइन गेमिंग को रेगुलेट करने के लिए कोई स्पेसिफिक कानून नहीं है। बेटिंग और गैम्बलिंग राज्य के विषय हैं, जिस पर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग नियम लागू होते हैं। ऑनलाइन गैंबलिंग और गेमों में अश्लीलता पर तो कुछ राज्यों में कानून हैं भी, लेकिन ऑनलाइन गेमिंग और उनकी हिंसक प्रवृत्ति पर साफ तौर पर कोई कानून नहीं हैं।

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