अब जब गर्मियां विदा हो रही हैं तो कम से कम संडे के दिन शहर की सड़कों पर साइकिल चलाने की आदत तो जरूर डालें

बीते रविवार जब मेरी गाड़ी रात के पौने नौ बजे बाड़मेर के एक ऑडिटोरियम में सेना द्वारा आयोजित वेलफेयर सेमिनार में पहुंची तो मैं पहले ही दो घंटा लेट हो चुका था। वक्ताओं, विशेषज्ञों, काउंसलरों आदि की मीटिंग समाप्त होने वाली थी। जब मैंने भीतर प्रवेश किया तो मैं वहां उपस्थित सात अन्य प्रतिभागियों के चेहरे देख पाता, उससे पहले ही बत्ती गुल हो गई।

मद्धम उजाले में भी आयोजक ने मुझे पहचान लिया, दूसरों से परिचित करवाया और उनसे पूछा कि वे उनके लिए क्या कर सकते हैं। तुरंत एक स्त्री की उषा उथुप जैसी भारी आवाज- जो कि उनकी छरहरी काया से मेल नहीं खाती थी- में उत्तर आया, मुझे एक साइकिल चाहिए। आयोजक ने कहा, मैं अपने घर से ले आता हूं, वह 30 मिनटों में आपके कमरे के सामने होगी।

मुझे यह अनुरोध सुनकर आश्चर्य हुआ। मीटिंग अंधेरे में ही खत्म हुई। हम सभी अपने-अपने कमरों में आराम करने लौट गए। अगली सुबह पौने छह बजे जब मैं वॉक कर रहा था, तो मैंने उन्हीं महिला को साइकिल से आते देखा। जब मैंने उनसे साइकिलिंग के प्रति उनके लगाव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘अगर साइकिलिंग नहीं होती तो हमारे भीतर और बाहर के कुछ खूबसूरत रास्ते कभी खोजे नहीं जा सकते थे।

इसके लिए मैं वीमन टु राइड नामक अपने ग्रुप की शुक्रगुजार हूं, जो जम्मू-कश्मीर में महिलाओं का पहला साइकिलिंग क्लब है।’ उस समूह की संस्थापक पायल जैन सही कह रही थीं। साइकिलिंग एक विशिष्ट अनुभव है, जो साइकिल सवार को किसी शहर के रंग-रूप से परिचित कराता है। इसे कार से अनुभव नहीं किया जा सकता।

उस रात की डिनर चैट में मैंने उन्हें जनरलों, ब्रिगेडियरों और कर्नलों से इस एरिया के बारे में ज्यादा गहराई से बात करते देखा। मेरे जैसे मॉर्निंग वॉकर उतनी गहराई से बात नहीं कर सकते थे, क्योंकि हम कुछ किमी ही कवर कर सकते थे। दुनिया के सभी ट्रेल्स इतिहास में दर्ज नहीं हैं या जाने गए नहीं हैं, फिर भले ही कोई वहां दशकों से रह रहा हो।

पायल ने इस समूह की स्थापना 2020 में की थी। शुरुआत में इसका मकसद केवल महिलाओं को एक पहचान और आत्मविश्वास देना था, साथ ही उन्हें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व से परिचित कराना था। अनेक महिलाएं सहभागिता के लिए तैयार हुईं और उन्होंने अमृतसर तक 216 किमी की यात्रा साइकिल से की। यह उनकी इस तरह की पहली ट्रिप थी।

आज वे न केवल साइकिलिंग, बल्कि ट्रेकिंग, योगा आदि भी करती हैं, वे नए दोस्त बनाती हैं और नए गंतव्यों की तलाश करती हैं। इन महिला प्रतिभागियों में डेंटिस्ट डॉ. रितु अहाल, बिजनेसवुमन रीना जैन, शिक्षिकाएं सोनिया साहनी, हरप्रीत बहल, मनप्रीत, सोनिया सिंह और लेखिका-मेंटर अंजू गुप्ता शामिल हैं।

पायल स्वयं एक अच्छी लेखिका हैं। समूह की शुरुआत तीन सदस्यों से हुई थी, लेकिन आज 25 सदस्य जुड़ चुके हैं। वे सभी महीने में चार गतिविधियां करती हैं। सभी की उम्र 35 से अधिक है। पायल अभी तक 12 हजार किमी से अधिक साइकिलिंग कर चुकी हैं, उन्होंने अकेले ही शुरुआत की थी और धीरे-धीरे दूसरी महिलाएं इससे जुड़ती गईं। अन्य महिलाएं भी 6000 किमी से ज्यादा साइकिल चला चुकी हैं। यह समूह अपने द्वारा विजिट की गई हर जगह के बारे में अनेक बातें बताने में समर्थ है।

फंडा यह है कि अब जब गर्मियां विदा हो रही हैं तो कम से कम संडे के दिन शहर की सड़कों पर साइकिल चलाने की आदत तो जरूर ही डालें। कौन जाने, इससे आप उन जगहों की छुपी हुई कहानियों को जान लें, जिनसे आप अभी तक अनजान थे।

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