मुस्लिम हमलावरों ने 3 बार तोड़ा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर ….?

‘ऊंचाई से चिढ़कर औरंगजेब ने तुड़वा दी थीं दो मंजिलें, नमाज पढ़ने की मेहराब बनवाई थी…..

मुगल बादशाह औरंगजेब जब भी दिल्ली या आगरा में होता था उसे आसमान में दक्षिण-पूर्व की तरफ से एक रोशनी नजर आती थी। जब उसे पता चला कि ये रोशनी वृंदावन में मौजूद एक शानदार मंदिर की है तो उसने उसे हमेशा के लिए बुझाने की सोची। 1669 में औरंगजेब ने वृंदावन स्थित उस मंदिर को नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। उसने मंदिर को नष्ट करके खंडहर के शीर्ष पर एक मस्जिद बनवाई।’

ये किस्सा कलकत्ता से छपने वाली मैगजीन कलकत्ता रिव्यू ने 1870 में मथुरा के कलेक्टर एफएस ग्रौसे के हवाले से एक आर्टिकल में छापा था। ये मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह मस्जिद को लेकर इतिहास में दर्ज कई किस्सों में से एक किस्सा है। हम अगर इसके इतिहास को सिलसिलेवार देखें, तो कृष्ण जन्मभूमि और उस पर बने मंदिर को कम से कम तीन बार तोड़ा गया है और पांच बार बनवाया गया।

अब आप सोच रहे होंगे कि इन किस्सों का जिक्र हम अभी क्यों कर रहे हैं। दरअसल मथुरा के इस मंदिर-मस्जिद विवाद पर वहां के सिविल कोर्ट में एक दर्जन से ज्यादा याचिकाएं दाखिल हैं। इनमें से 9 याचिकाओं पर मथुरा सिविल कोर्ट 5 जुलाई से 15 जुलाई के दौरान सुनवाई कर रहा है।

ये तस्वीर 1870 में कलकत्ता से छपने वाली मैगजीन कलकत्ता रिव्यू में प्रकाशित हुई थी। इस तस्वीर में देखा जा सकता है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के ऊपरी दो मंजिलों को तोड़कर उसके ऊपर मेहराब बना दिया गया था ताकि औरंगजेब वहां नमाज पढ़ सके। इसका जिक्र जेम्स फर्गुसन और जॉन मरे की किताब हिस्ट्री ऑफ इंडियन एंड ईस्टर्न आर्किटेक्चर में मिलता है। 1870 के बाद इस मेहराब को मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्रौसे ने हटवा दिया था।
अब किस्सों पर वापस लौटते हैं। सबसे पहले बात मंदिर को तोड़े जाने के 3 किस्सों से…

पहला किस्साः महमूद गजनवी ने बोला था 100 करोड़ दीनार में भी नहीं बनेगी ऐसी इमारत

कृष्ण जन्मभूमि पर पहली बार हमला 1017-1018 ईस्वी में अफगानिस्तान के गजनी के शासक महमूद गजनवी ने किया था। उसने मथुरा शहर पर हमला करके उसे जमकर लूटा।

महमूद गजनवी के दरबारी इतिहासकार अल-उत्बी ने अपनी किताब तारीख-ए-यामिनी में लिखा कि गजनवी कृष्ण जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर को देखकर हैरान रह गया। वह बोला, “अगर कोई इस मंदिर जैसी इमारत बनाना चाहे तो 100 करोड़ दीनार खर्च किए बिना ऐसा नहीं कर पाएगा। माहिर कारीगरों को भी इसे बनाने में 200 साल लगेंगे।”

1860 से 1890 तक मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर रहे एफएस ग्रौसे ने ‘मथुरा-वृंदावन-द मिस्टिकल लैंड ऑफ लॉर्ड कृष्णा’ नामक किताब में लिखा है कि मंदिर की भव्यता से चिढ़कर गजनवी ने कृष्ण मंदिर के साथ शहर के सैकड़ों मंदिरों को तुड़वा दिया था और उनकी सोने-चांदी की मूर्तियां लूटकर अफगानिस्तान ले गया था।

गजनी के शासक महमूद गजनवी ने 998 ईस्वी से 1030 ईस्वी तक शासन किया था। उसने भारत पर 17 बार आक्रमण कर कई शहरों और मंदिरों को लूटा था, जिनमें मथुरा और सोमनाथ के मंदिर भी शामिल हैं। (तस्वीर साभार: Wikimedia Commons)
गजनी के शासक महमूद गजनवी ने 998 ईस्वी से 1030 ईस्वी तक शासन किया था। उसने भारत पर 17 बार आक्रमण कर कई शहरों और मंदिरों को लूटा था, जिनमें मथुरा और सोमनाथ के मंदिर भी शामिल हैं। (तस्वीर साभार: Wikimedia Commons)

दूसरा किस्सा: दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने किया था दूसरी बार मंदिर को नष्ट

इस मंदिर को दूसरी बार 16वीं सदी में दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने नष्ट किया था। लोदी ने 1498 से 1517 के बीच शासन किया था।

जहांगीर के शासनकाल के इतिहासकार अब्दुल्ला ने अपनी किताब तारिख-ए-दाउदी में इस किस्से का जिक्र किया है।

अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्रौस ने तारिख-ए-दाउदी के हवाले से लिखा है कि लोदी ने हिंदुओं के नदी में स्नान करने और नदी किनारे सिर मुंडाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।

तीसरा किस्साः मंदिर की रौशनी देखकर औरंगजेब ने दो मंजिलें तुड़वा दी

औरंगजेब पर लिखी साकी मुस्तद खान की किताब मासिर-ए-आलमगिरी में 1669 में औरंगजेब के मथुरा पर हमले और कृष्ण मंदिर को नष्ट किए जाने का जिक्र मिलता है।

मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्रौसे के मुताबिक, औरंगजेब ने ऐसा कृष्ण मंदिर की भव्यता से चिढ़कर किया था। उसने मंदिर को नष्ट करके उसके खंडहर के शीर्ष पर एक मस्जिद बनवाई।

जेम्स फर्गुसन ने अपनी किताब हिस्ट्री ऑफ इंडियन एंड ईस्टर्न आर्किटेक्टर में लिखा है कि मंदिर की चार मंजिला इमारत को ऊपर से दो हिस्सों में काट दिया गया। काटी गई छत पर उसने एक मेहराब बनवाया ताकि अपनी मथुरा की यात्रा के दौरान वहां नमाज अदा कर सके। 1670 में औरंगजेब खुद नमाज पढ़ने गया था। यही मस्जिद अब ईदगाह मस्जिद कहलाती है।

इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब' में लिखा है कि 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने आदेश जारी करते हुए है कि हिंदुओं के सभी स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। जदुनाथ ने लिखा है कि औरंगजेब की इस सोच की वजह से सोमनाथ में बने दूसरे मंदिर जिसे गजनी के तोड़े जाने के बाद भीमदेव ने बनवाया था, बनारस के विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के केशव मंदिरों को तोड़ा गया था।
इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब’ में लिखा है कि 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने आदेश जारी करते हुए है कि हिंदुओं के सभी स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। जदुनाथ ने लिखा है कि औरंगजेब की इस सोच की वजह से सोमनाथ में बने दूसरे मंदिर जिसे गजनी के तोड़े जाने के बाद भीमदेव ने बनवाया था, बनारस के विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के केशव मंदिरों को तोड़ा गया था।

चलिए अब जानते हैं मंदिर को बनाए जाने के 5 किस्से…

पहली बार कृष्ण के प्रपौत्र व्रजनाभ ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया मंदिर

जहां आज कृष्ण जन्मभूमि है, माना जाता है कि वहां मल्लपुरा इलाके के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।

लोककथाओं के अनुसार, कृष्ण जन्मभूमि यानी कटरा केशवदेव के पास स्थित कारागार के पास पहला मंदिर कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया था।

कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, यहां से मिले महाक्षत्रप सौदास के समय के ब्रह्मी लिपि में लिखे शिलालेखों से पता चलता है कि वसु नामक व्यक्ति ने 85-57 ईसा पूर्व में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर का पुर्निर्माण कराया था।

दूसरी बार चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने 400 ईस्वी में बनवाया मंदिर

माना जाता है कि समय के साथ जर्जर हो चुके इस मंदिर को दूसरी बार गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने बनवाया या इसका जीर्णोद्धार कराया था।

चंद्रगुप्त के दरबार में आए चीनी यात्री फाह्यान ने इसका जिक्र किया है। फाह्यान 399 से 414 ईस्वी तक भारत में रहा था।

तीसरी बार 1150 ईस्वी में जज्ज नामक जागीरदार ने बनवाया मंदिर

श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थल से मिले संस्कृत में लिखे एक शिलालेख के अनुसार, 1150 ईस्वी में जज्ज नामक व्यक्ति ने यहां एक भव्य विष्णु मंदिर का निर्माण कराया था।

माना जाता है कि जज्ज कन्नौज के गढ़वाल राजवंश के जागीरदार थे। कुछ इतिहासकारों ने उन्हें मथुरा के राजा विजयपाल देव से संबंधित माना है।

चौथी बार 33 लाख रुपए में 1590 में ओरछा के राजा वीर सिंह ने बनवाया था मंदिर

मथुरा के अंग्रेज कलेक्टर एफएस ग्रौसे के मुताबिक, 1590 ईस्वी में जयपुर के राजा मानसिंह ने मथुरा में भव्य मंदिर बनवाया था।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल के दौरान 1618 ईस्वी में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने 33 लाख रुपए में मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। कहा जाता है कि ये मंदिर इतना ऊंचा था कि उसकी रोशनी आगरा से दिखाई देती थी।

1650 में मथुरा आने वाले फ्रांसीसी यात्री टैवर्नियर और मुगलों के दरबार में आए इटली के यात्री निकोलाओ मानुची ने भी इस मंदिर का जिक्र किया है। टैवर्नियर ने लिखा था कि बनारस के बाद भारत का सबसे प्रसिद्ध मंदिर मुथरा में है। इटली के यात्री मानुची ने लिखा था कि मंदिर के शीर्ष पर लगी सोने की छतरी को आगरा से भी देखा जा सकता था।

1958 में बना आधुनिक केशवदेव मंदिर

श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर वर्तमान में बने केशवदेव मंदिर को रामकृष्ण डालमिया ने बनवाया था, जिसका उद्घाटन सितंबर 1958 में हुआ था। ये शाही ईदगाह मस्जिद के दक्षिण में स्थित है।

श्रीकृष्ण जन्म स्थान कॉम्पलेक्स का निर्माण फरवरी 1982 में पूरा हुआ था। इसमें केशवदेव मंदिर, गर्भ गृह मंदिर और भागवत भवन शामिल हैं।

1958 से 1982 के बीच आधुनिक श्रीकृष्ण जन्मभूमि कॉम्पलेक्स का निर्माण हुआ था। इसमें कृष्ण और राधा को समर्पित केशवदेव मंदिर, आठ हाथों वाली नंद बाबा की बेटी योग माया को समर्पित गर्भ गृह मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा श्रीमद्भगावत को समर्पित भागवत भवन भी है।इस भवन में पांच भगवान की मूर्तियां हैं, जिनमें 6 फीट लंबी कृष्ण और राधा की मूर्ति प्रमुख है।

अब जानते हैं मथुरा में मंदिर और मस्जिद के बीच हालिया विवाद क्या है?

1968 में हुआ था श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और ईदगाह मस्जिद के बीच समझौता

इस भूमि पर 1770 में मराठों ने कब्जा जमा लिया। 1803 में इस पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। 1815 में अंग्रेजों ने कटरा केशव देव, यानी कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ की जमीन को राजा पटनीमल को नीलाम कर दिया।

मुस्लिम पक्ष ने राजा पटनीमल के मालिकाना हक को लेकर आपत्ति जताई, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। 1944 में 13.37 एकड़ की ये जमीन राजा पटनीमल के वंशजों ने मदन मोहन मालवीय समेत तीन लोगों को बेच दी, जिसके लिए 13,400 रुपए का भुगतान बिजनेसमैन जुगल किशोर बिड़ला ने किया था।

जुगल किशोर ने 1951 में श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट बनाया और पूरी जमीन भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को समर्पित कर दी। हालांकि पूरी जमीन पर मंदिर का कब्जा तब भी नहीं हो पाया। ये ट्रस्ट 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और 1977 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से रजिस्टर्ड हुआ।

1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद कमिटी के बीच हुए समझौते में मंदिर की जमीन का अधिकार ट्रस्ट और मस्जिद की जमीन का अधिकार ईदगाह मस्जिद कमेटी को दे दिया गया।

1968 में हुए समझौते के बाद मस्जिद और मंदिर के बीच एक दीवार बना दी गई। साथ ही परिसर में रह रहे कुछ घोसी मुस्लिमों को हटाया गया। समझौते में यह भी तय हुआ कि मस्जिद में मंदिर की तरफ कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला नहीं होगा।

ईदगाह मस्जिद को हटाने के लिए दाखिल हुई हैं एक दर्जन याचिकाएं

मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को लेकर फरवरी 2020 में विवाद अदालत में पहुंच गया। ईदगाह मस्जिद को मंदिर परिसर से हटाए जाने, मस्जिद का सर्वे कराना और 13.37 एकड़ की पूरी जमीन को हिंदुओं को सौंपे जाने जैसी मांगों को लेकर पिछले दो वर्षों में करीब एक दर्जन याचिकाएं दायर हो चुकी हैं।

इनमें से 9 याचिकाओं की 15 जुलाई तक मथुरा सिविल कोर्ट में सुनवाई होनी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 1968 में ट्रस्ट और ईदगाह मस्जिद के बीच हुआ समझौता अवैध है क्योंकि समझौता करने वाली सोसाइटी को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है।

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