गहलोत के सवाल से घबराए कैबिनेट मंत्री, कबूली थी साजिश …?

पायलट कैंप में जा रहे 3 MLA बीच रास्ते लौटे; कैसे जीती हारी हुई बाजी…

2 साल पहले 12 जुलाई वो दिन था जब इस मैसेज से पूरे देश में हंगामा मच गया। सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड करने लगा #राजस्थान_में_सरकार_गिरने_वाली_है। इस सियासी भूचाल की शुरुआत 11 जुलाई 2020 को हुई, जब सचिन पायलट 18 विधायक लेकर हरियाणा के एक होटल में जा बैठे।

पायलट के ऑफिशियल वॉट्सएप ग्रुप से ये मैसेज बाहर आया, कि गहलोत सरकार अल्पमत में है…हमारे पास 30 कांग्रेस और 3 निर्दलीय विधायक हैं। सचिवालय से लेकर सीएम हाउस और दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय तक खलबली मच गई। फोन घनघनाने लगे। पूरी सरकारी मशीनरी यह पता लगाने में जुट गई कि आखिर चल क्या रहा है? सबको समझ आ गया कि राजस्थान में भी मध्यप्रदेश जैसा ‘ऑपरेशन लोटस’ शुरू हो चुका है।

कांग्रेस सरकार ने यह पहला सियासी संकट देखा, जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट खुलकर एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए। दो साल हो गए लेकिन आज भी उस सियासी संकट की कई बातें रहस्य बनी हुई हैं। पायलट खेमे ने कैसे बगावत की रणनीति बनाई और कैसे गहलोत ने सरकार गिरने से बचाई।

भास्कर ने सियासी संकट से सीधे जुड़े दर्जनभर मंत्री-विधायकों और इंटेलिजेंस ऑफिशियल्स से बात की, जिसमें कई दबे हुए राज़ सामने आए। इस बार संडे स्टोरी में पढ़िए सियासी संकट की परतों में दबी कहानी का सच…

सरकार गिराने की पहली कोशिश राज्यसभा चुनाव 2020 से पहले
राज्यसभा चुनाव 2020 के 4 महीने पहले फरवरी और फिर मार्च की शुरुआत में आईबी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इनपुट दिया कि सरकार के खिलाफ गतिविधियां चल रही हैं। भाजपा ने कुछ एमएलए से संपर्क किया है। इसके बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने सरकार बचाने के लिए ‘प्लान ऑफ एक्शन’ बनाया। पायलट खेमे के मंत्रियों एवं कुछ विधायकों पर खास नजरें रखी जाने लगीं। इंटेलिजेंस अलर्ट था कि पायलट अपने पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि (11 जून) को बगावत का बिगुल बजा सकते हैं, लेकिन गहलोत के सक्रिय होने के चलते ऐसा संभव नहीं हो सका।

जब कैबिनेट मंत्री को सीएम ने टोका
कोरोना की पहली लहर थी। सीएम अपने आवास से पूरे प्रदेश का मैनेजमेंट संभाल रहे थे। राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले पायलट के साथ जमकर सक्रिय रहने वाले एक कैबिनेट मंत्री मुख्यमंत्री गहलोत से मिलने पहुंचे। बातों-बातों में सीएम ने उन्हें घेर लिया…

बगावत पुख्ता होते ही कर दी बाड़ाबंदी: 19 जून 2020 को 3 सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव होने थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सियासी संकट भांप 10 जून की दोपहर सभी विधायकों को अपने निवास पर बुलाया। वहां से विधायकों को 5 बसों में दिल्ली रोड स्थित सीधे शिव विलास होटल और वहां से जेडब्ल्यू मेरियट ले जाया गया। कुछ निर्दलीय एवं अन्य विधायकों को एक रिसोर्ट में ले गए।

होटल के बाहर आकर बताया- बीजेपी सरकार गिरानी चाहती है : विधायकों की बाड़ाबंदी के बाद देर रात मुख्यमंत्री गहलोत ने होटल से बाहर आकर कहा…मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त का खेल कर सरकार गिराना चाहती है। विधायकों को 25-25 करोड़ रुपए के ऑफर दिए जा रहे हैं।

दूसरी कोशिश : पायलट 18 विधायकों को लेकर राजस्थान से बाहर चले गए
सरकार गिराने की दूसरी कोशिश जुलाई 2020 में हुई। हालांकि आईबी ने सरकार को पहले ही अलर्ट दे दिया था कि पायलट अपने खेमे सहित राजस्थान की सीमा से बाहर चले जाएंगे। उस समय कोरोना के कारण बॉर्डर सील थे। इसके बावजूद पायलट अपने साथ 18 विधायकों को राजस्थान से बाहर दिल्ली के पास स्थित मानेसर के एक रिसोर्ट में ले गए। इनमें वर्तमान कैबिनेट मंत्री विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा भी शामिल थे।

3 विधायक रास्ते से लौटे : सरकार को पायलट और कुछ विधायकों के राजस्थान से बाहर जाने का पता चला तो नाकाबंदी सख्त कर दी। पायलट समर्थक 3 विधायक दानिश अबरार, रोहित बोहरा और चेतन डूडी मानेसर जाने के लिए निकल तो गए थे, लेकिन सख्त नाकाबंदी के कारण रास्ते से लौटना पड़ा।

मैसेज चला- गहलोत सरकार अल्पमत में है : 12 जुलाई 2020 की देर शाम सचिन पायलट खेमे से एक मोबाइल मैसेज वायरल किया गया, जिसमें लिखा था- गहलोत सरकार अल्पमत में है और उनके साथ 30 कांग्रेस विधायक और 3 अन्य विधायक हैं।

विधायक दल की बैठक : मैसेज वायरल होने के बाद 13 जुलाई को सीएम हाउस में विधायक दल की बैठक बुलाई गई। बैठक में वे 3 विधायक भी शामिल हुए, जो मानेसर नहीं जा पाए थे। लेकिन पायलट सहित 19 कांग्रेस विधायक बैठक से गायब रहे।

पायलट खेमे को नोटिस : व्हिप जारी होने के बावजूद लगातार दो दिन हुई विधायक दल की बैठकों में शामिल नहीं होने पर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने पायलट और उनके खेमे के सभी 19 विधायकों को अपना पक्ष रखने के लिए 14 जुलाई 2020 को नोटिस जारी किया। नोटिस को पायलट खेमे ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

गहलोत ने आलाकमान को विश्वास में लिया : रणनीति के तहत आलाकमान को विश्वास दिलाया गया कि पर्याप्त संख्या में विधायक मुख्यमंत्री निवास पर मौजूद हैं। सरकार गिराने के प्रयास विफल करने की पूरी तैयारी है। विधायक दल की बैठक से पहले और बाद में लगातार आलाकमान को अपडेट दिए गए। इसके बाद गहलोत ने विधायकों को अपने निवास से सीधा जेडब्ल्यू मेरियट में बाड़ाबंदी के लिए रवाना किया।

गहलोत के ब्रह्मास्त्र, जिनके सामने पायलट कैंप चित्त हो गया
1. इंटेलिजेंस : 2020 में फरवरी-मार्च से लेकर मई के अंत तक आईबी से लगातार अपडेट लिए जा रहे थे। विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका और सरकार गिराने की साजिश के बारे में गहलोत ने जून 2020 के पहले सप्ताह में आलाकमान को बता दिया था। आलाकमान से 9 जून 2020 को रणदीप सुरजेवाला और विवेक बंसल को राजस्थान पहुंचने के निर्देश मिले। दोनों 10 जून 2020 को जयपुर मुख्यमंत्री गहलोत के निवास पर विधायकों की हुई बैठक में शामिल हुए। अविनाश पांडे भी देर रात जयपुर पहुंचे।

2. विधायकों पर पकड़ : सियासी संकट भांपकर गहलोत ने 2019 के अंत से ही विधायकों की पर्याप्त संख्या करने के प्रयास शुरू कर दिए थे। सितंबर 2019 में सभी 6 बसपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया गया। तब गहलोत ने इसकी भनक सचिन पायलट को भी नहीं लगने दी। यही रणनीति सियासी संकट में सबसे ज्यादा काम आई। कुछ निर्दलीय विधायकों और अन्य दलों को भी मौके पर साध लिया।

3. कानूनी लड़ाई भी तरीके से लड़ी : बाड़ेबंदी के दौरान 15 जुलाई 2020 को 3 ऑडियो क्लिप वायरल हुईं जिनमें विधायकों की खरीद-फरोख्त से संबंधित वार्तालाप था। आरोप लगाया गया कि क्लिप में आवाज केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह व विधायक भंवरलाल शर्मा की हैं।

4. एसओजी-एसीबी : गहलोत के नजदीकी महेश जोशी ने वायरल क्लिपिंग्स के आधार पर एसओजी और एसीबी में 17 जुलाई 2020 को केस दर्ज करवाए। एसओजी की ओर से धारा 124-ए, राजद्रोह और धारा 120-बी आईपीसी के तहत सचिन पायलट के लिए गवाही संबंधी नोटिस दे दिया गया। ऐसा ही एक नोटिस गहलोत के लिए भी जारी हुआ। कानूनी लड़ाई में पायलट खेमे पर खासा दबाव बना। हालांकि एसओजी में दर्ज एफआईआर में एफआर लग चुकी है, लेकिन एसीबी में विधायक खरीद-फरोख्त मामले में कार्रवाई जारी है।

5. सत्ता-संगठन की कमान खुद संभाली : पायलट को उप मुख्यमंत्री और अध्यक्ष पद से बर्खास्त किया गया। विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को भी मंत्री पद से हटाया गया। वायरल ऑडियो टेप के कारण विश्वेन्द्र और भंवरलाल शर्मा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से 6 साल के लिए निलंबित कर दिया गया। सत्ता के साथ संगठन की कमान भी अब गहलोत ने अपने हाथों में ले ली। अपने खेमे से तत्कालीन शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को अध्यक्ष पद सौंपा गया।

बहुमत सिद्ध करने तक विधायकों को एक रखा : विपक्ष (भाजपा व आरएलपी) ने गहलोत सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने की चुनौती दी। सदन बुलाए जाने को लेकर राजभवन से भी टकराव चला। 14 अगस्त 2020 को राज्य सरकार ने विधानसभा में बहुमत साबित कर दिया। खास रहा कि पायलट खेमा भी सदन में सरकार के पक्ष में साथ खड़ा रहा। पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने पर विधायकी जाने का खतरा था, ऐसे में पायलट गुट के सभी विधायकों को सरकार का साथ देना मजबूरी बन गया था।

पायलट खेमे की 4 बड़ी चूक
गजेन्द्र सिंह शेखावत ने हाल ही में स्टेटमेंट दिया था- थोड़ी चूक ही हो चाहे, सचिन पायलट जी में थोड़ी खामी रह गई।
( 20 जून 2022, लोकेशन- चौमूं, जयपुर )

1. कमजोर रणनीति : विधायक जुटाने को लेकर पायलट खेमे की रणनीति में चूक रही। सरकार की नजर से बचकर 9 से 10 विधायक मानेसर बाड़े में पहुंचने में ही फेल रहे। या यों कहें कि पायलट उन्हें अपने साथ बाड़े में ले जाने में विफल रहे।

2. नंबर गेम में पिछड़े : 71 विधायकों वाली भाजपा को सरकार बनाने के लिए कम से कम 30 विधायक और चाहिए थे। पायलट ये आंकड़ा नहीं जुटा पाए। तब BJP नेतृत्व भी बैकफुट पर आ गया। आखिर में पायलट को भी यह कहना पड़ा कि ‘मैं बीजेपी में नहीं जा रहा।’ पायलट गुट : संख्या – 22 (कांग्रेस के बागी – 19, निर्दलीय – 3)

3. आलाकमान से ट्यूनिंग नहीं : पायलट खेमा लगातार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराजगी की बयानबाजी जारी करता रहा, लेकिन आलाकमान को विश्वास में नहीं ले पाए। उल्टा ऐसा लगा कि खेमा आलाकमान का विश्वास खोता जा रहा है।

4. निर्दलीयों को भी नहीं जोड़ पाए : पायलट खेमा सभी निर्दलीयों को नहीं साध सका। अधिकतर निर्दलीय से अशोक गहलोत के अच्छे संबंध रहे। कुछ निर्दलीयों को मामला एसओजी व एसीबी में दर्ज होने के कारण गिरफ्तारी का भी भय सता रहा था। पायलट खेमा राजस्थान लौटा तब भी सभी 13 निर्दलीयों ने अशोक गहलोत पर ही भरोसा जताया।

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