‘महाराज’ के खिलाफ हुए BJP के पुराने नेता ..!
‘महाराज’ के खिलाफ हुए BJP के पुराने नेता:समर्थक ने कहा- विरोध करने वालों की राजनीतिक पारी लंबी नहीं …
भाजपा संगठन और सत्ता में कोर ग्रुप बड़ा पावरफुल होता है। हर बड़े फैसले कोर ग्रुप की बैठक में या फिर इसके सदस्यों की सहमति से होते हैं, लेकिन इसमें ‘महाराज’ की उनके कद के हिसाब से भागीदारी नहीं दिखाई दे रही है।
हाल ही में ‘महाराज’ के प्रभाव वाले बड़े जिले का अध्यक्ष बदला गया। इसमें उनकी राय तक नहीं ली गई। इससे पहले मेयर पद के चुनाव में भी ऐसा ही हुआ। सुना है कि उस इलाके के पुराने और खांटी बीजेपी नेता ‘महाराज’ के खिलाफ एकजुट हो गए हैं।
इसी हफ्ते की शुरुआत में हुई बीजेपी कोर कमेटी की बैठक से ‘महाराज’ के बाहर निकलने पर सोशल मीडिया में राजनीतिक कयासबाजी फैल गई। उनके नाराज होकर जाने की बात कही जाने लगी। भले ही ‘महाराज’ को अलग-थलग करने की कोशिश हो रही हो, लेकिन उनके समर्थकों में किसी भी तरह का भय नहीं है।
उनके एक करीबी नेता ने कहा- जो उनका (महाराज) विरोध कर रहे हैं, उनकी राजनीतिक पारी लंबी नहीं बची है, इसलिए वे फिलहाल सीधी लड़ाई मोल नहीं लेना चाहते। वे बहुत ही कम समय में आलाकमान के काफी करीब आ चुके हैं। वह अब मोदी-शाह के महाराज हैं। दोनों नेता कई मंचों से उनकी खुलकर तारीफ कर चुके हैं।
‘महाराज’ की महिमा देखकर प्रदेश के दूसरे बड़े नेता अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं, लेकिन ‘महाराज’ किसी जल्दीबाजी में नहीं हैं, क्योंकि वे अपने आप को लंबी रेस का घोड़ा मानते हैं। वैसे भी ‘महाराज’ आसानी से अपने पत्ते नहीं खोलते।
‘सरकार’ की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे महाराज समर्थक
राजनीति में जैसा आंखों से दिखता है, वैसा होता नहीं। यहां ना कोई स्थाई दोस्त होता है, ना दुश्मन। सियासी लाभ-हानि के हिसाब से चीजें बदलती रहती हैं। पिछले कुछ दिनों से सत्ताधारी खेमे में ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है।
महाराज के कट्टर समर्थक किसी ना किसी बहाने से ‘सरकार’ के करीब जा रहे हैं। एक मंत्री जिसने पिछले दिनों ‘सरकार’ की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे, वे उनकी तारीफ के पुल बांधने लगे हैं। एक मंत्री ने तो ‘सरकार’ को उनकी पेंटिंग भेंट की। बुधवार को सीएम हाउस में आयोजित डिनर में भी महाराज के समर्थक ‘सरकार’ की तारीफ में कसीदे पढ़ते सुने गए।
इस नई सियासत पर एक नेता पूरी नजर रख रहे हैं। वे कहते हैं- मंत्रियों को लगता है कि अब मंत्रिमंडल विस्तार होगा तो विभागों की अदला-बदली भी होगी। ऐसे में जिनका परफॉर्मेंस ठीक नहीं है, उनको चिंता होना स्वाभाविक है। ऐसे में ‘सरकार’ को साधे रखने में ही उन्हें अपनी भलाई दिखाई दे रही है। यदि ऐसा नहीं भी हुआ तो जिलों के प्रभार बदला जाना तो तय है।