मुलायम के निधन पर साथ दिख रहा यादव कुनबा फिर बिखरा, वजह मैनपुरी उपचुनाव
सैफई में दिख रहा चाचा भतीजे का प्यार केवल तात्कालिक था, अब दोबारा चाचा-भतीजे में तलवारें खिंच गई हैं, मैनपुरी उपचुनाव की तारीख तय होते ही सैफई कुनबे में नई उधेड़बुन शुरू हो गई है.
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद बाद लगने लगा था कि मुलायम का कुनबा अब एक होने की ओर है. सैफई में मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार में अखिलेश रामगोपाल और शिवपाल एक दूसरे को ढांढस बंधाते हुए नजर आए थे. हरिद्वार और प्रयागराज में मुलायम के अस्थि विसर्जन में भी चाचा शिवपाल यादव,अखिलेश यादव के हर कदम पर साथ नजर आए थे.
शिवपाल को रखा गया बैठक से दूर
मुलायम के निधन के बाद मुलायम कुनबा एक साथ खड़ा दिखाई दे रहा है लेकिन मैनपुरी उपचुनाव के जरिए उमड़ रही सियासी महत्वाकांक्षाओं के चलते सबके सुर बदलने लगे हैं, हाल ही में अखिलेश यादव ने मैनपुरी में उम्मीदवार तय करने को लेकर एक बैठक बुलाई थी जिसमे रामगोपाल यादव और धर्मेंद्र यादव को तो बुलाया गया, लेकिन शिवपाल यादव को इस बैठक से दूर रखा गया. शिवपाल की मौजूदगी के बिना बैठक कर अखिलेश ने इतना तो संदेश दे दिया कि मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा शिवपाल को कोई भाव देने के मूड में नहीं है. अखिलेश के इस रुख को देखते हुए शिवपाल ने भी अपनी चुप्पी तोड़ दी है. मैनपुरी से चुनाव से खुद को दूर रखे जाने की शिवपाल की टीस उनके बयानों में नजर आ रही है. शिवपाल ने गोरखपुर में भतीजे अखिलेश यादव पर परिवार पार्टी गंभीरता से लेकर चापलूसों को लेकर जो बयान दिया है दरअसल उसके मूल में मैनपुरी उपचुनाव में उनकी अनदेखी है.
मुलायम की विरासत पर अखिलेश का दावा
मुलायम की परंपरागत सीट होने के चलते अखिलेश इस सीट को अपने परिवार के ही किसी सदस्य को ही देना चाहते थे. खुद यूपी में ही सक्रिय होने के चलते अखिलेश लोकसभा चुनावो तक विधानसभा में ही रहने का फैसला कर चुके है ऐसे में मुलायम की सीट से डिंपल यादव का नाम तय किया गया है. दरअसल डिंपल का नाम तय करने के पीछे दो वजहें हैंं. एक तो परिवार के भीतर तेजप्रताप और धर्मेंद्र चुनाव लड़ने के इच्छुक थे ऐसे में अखिलेश उलझन में थे और दूसरा शिवपाल और उनकी पत्नी सरला यादव से डिंपल यादव के संबंध मधुर हैं. ऐसे में डिंपल के नाम पर शिवपाल के लिए विरोध करना असहज भरा हो सकता है.
शिवपाल ने पहले ही दे दिया था संकेत
हालांकि मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर चुनाव लड़ने के संकेत शिवपाल यादव ने कई महीने पहले ही दे दिए थे कई मौकों पर खुलकर शिवपाल ने कहा भी कि अगर नेताजी मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे तो वो उनके साथ है लेकिन अगर नेताजी चुनाव नही लड़ते तो वो मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे. अब उपचुनाव में मौका देखकर शिवपाल की कोशिश चुनाव लडने की थी लेकिन अखिलेश के डिंपल को चुनावी मैदान में उतारने से शिवपाल के लिए भी स्थित असहज सी हो गई है. क्योंकि डिंपल मुलायम की बहू है और अखिलेश मुलायम के उत्तराधिकारी, ऐसे में अखिलेश और डिंपल का मैनपुरी में विरोध करना शिवपाल के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. अब तक शिवपाल अखिलेश पर आरोप लगाकर विक्टिम कार्ड खेलते रहे है और अब मुलायम के जाने के बाद अखिलेश के लिए सहानभूति रख रही मैनपुरी की जनता में शिवपाल का पैंतरा उन्हे नुकसान पहुंचा सकता है.
मैनपुरी की विरासत को लेकर आमने सामने चाचा-भतीजा
इस बार मैनपुरी में मुलायम का उत्तराधिकारी कौन बनेगा इस पर संग्राम शुरू हो गया है. मैनपुरी का ये पहला चुनाव है जो मुलायम के बिना हो रहा है और अखिलेश यादव के लिए ये बड़ी चुनौती साबित होने वाला है, क्योंकि मैनपुरी सीट पर पूरे परिवार की पकड़ मानी जाती है. मुलायम का ये गढ़ रहा है शिवपाल ने यही से सियासत का ककहरा सीखा. मुलायम के नाती तेज प्रताप यहां से सांसद रह चुके है. धर्मेंद्र यादव भी यहां की नुमाइंदगी कर चुके हैं. ऐसे में अखिलेश के लिए ये चुनाव बड़ी अग्नि परीक्षा की तरह है. यहां मुकाबला बीजेपी से तो बाद में होगा पहले तो रस्सा कस्सी परिवार में ही शुरू हो गई है.
… तो बहू बनाम बहू होगी लड़ाई
मैनपुरी यादव बहुल सीट मानी जाती है, लेकिन वहा ठाकुर और शाक्य मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है. शाक्य वोटर पर बीजेपी की पकड़ मजबूत है ऐसे में बीजेपी समीकरण के लिहाज से मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव को मैदान में उतारने पर मंथन कर रही है. अपर्णा को मैंदान में उतार कर एक तो मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सहानभूति का असर खत्म करने में मदद मिलेगी दूसरा वोटो के गणित में भी अपर्णा मजबूती से लड़ सकेगी. शिवपाल यादव से भी अपर्णा के अच्छे संबंध रहे है ऐसे में शिवपाल यादव भी अपर्णा की मदद कर सकते हैं.
शिवपाल यादव को हो रहा नुकसान
अखिलेश के रुख को देखते हुए शिवपाल यादव इतना जान चुके हैं कि कुनबे की एका के नाम पर अखिलेश के साथ खड़े होकर वो अपनी सियासत को बहुत विस्तार नही दे पाएंगे. उनकी पार्टी की सियासी हैसियत को देखते हुए अखिलेश के साथ उनको बहुत सीमित दायरे में रहना होगा. विधानसभा चुनाव में भी सपा ने उन्हें केवल एक सीट दी थी वो भी पार्टी ने अपना सिंबल जारी किया था. ऐसे में चुनाव में टिकट न मिल पाने के चलते शिवपाल के तमाम करीबी नेता उनका साथ छोड़कर चले गए थे. चुनाव के बाद शिवपाल यादव की अनदेखी करने के बाद उनका गुस्सा भी फूटा था. हालांकि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद लगा कि मुलायम कुनबा एक हो रहा है चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव मतभेदों को एक दूसरे के साथ खड़े हैं. पिता का साया सिर से उठ जाने से अखिलेश दुखी नजर आए तो शिवपाल ने भतीजे के कंधे पर हाथ रख उन्हे सहारा दिया. सैफई में न सिर्फ दोनों साथ-साथ दिखाई दे रहे थे बल्कि शिवपाल यादव एक अभिभावक के तौर पर अखिलेश के साथ खड़े आ रहे थे.
सियासी तौर पर अखिलेश को चाचा का साथ स्वीकार नहीं
मुलायम परिवार की एका को मैनपुरी उपचुनाव ने फिर से बिखराव के मुहाने पर ला दिया है, जब मुलायम थे तो भाई और बेटे में पटरी बिठाने की कोशिश करते रहते थे, लेकिन अब मुलायम सिंह नहीं है तो अखिलेश-शिवपाल के बीच सेतु भी खत्म हो गया है. सैफई के लोग मुलायम के परिवार से जुड़े नाते रिश्तेदार या सपा के कार्यकर्ता…सब चाहते है कि अब परिवार को एक हो जाना चाहिए और शिवपाल अखिलेश को मिलकर पार्टी और परिवार दोनो को सम्हालना चाहिए. अखिलेश को पिता मुलायम की तरह परिवार की बागडोर संभालनी होगी. शिवपाल यादव पार्टी में खुद को सम्मान देने की बात करते हैं. उनकी चाहत है कि अखिलेश उन्हे एक अभिभावक बतौर सम्मान दें पार्टी के बड़े फैसलों में उनसे भी राय मशविरा किया जाय. उनकी भी भूमिका अहम हो लेकिन अखिलेश यादव शिवपाल को चाचा के तौर पर साथ रखकर तो सम्मान देने की बात करते हैं लेकिन सियासी तौर पर शिवपाल को साथ रखने के लिए तैयार नहीं है.
जब तक मुलायम सिंह थे तब तक परिवार में उनकी बातो उनके फैसलों पर अमल होता था. परिवार में तकरार और मनमुटाव भी हुआ लेकिन मुलायम सिंह ने सभी को एक धागे में पिरोये रखा था. शिवपाल के अलग होने के बाद भी मुलायम शिवपाल-अखिलेश को एक करने की कोशिश में लगे रहते थे. बीते विधानसभा चुनाव में भी मुलायम सिंह यादव के कहने पर चाचा-भतीजे एक साथ आए थे लेकिन चुनाव के बाद शिवपाल की अनदेखी से रिश्तों में फिर बर्फ जम गई. अखिलेश का नजरिया साफ है वो परिवार और पार्टी को अलग रखने के विचार को लेकर आगे बढ़ रहे है ऐसे में शिवपाल को भी समझ आ गया है कि भतीजे के साथ रहते हुए उनकी खुद की सियासत सिमट रही है ऐसे में मैनपुरी उपचुनाव से चाचा-भतीजे के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है.