मैनपुरी: क्या मुलायम के गढ़ में फंस जाएगी ‘साइकिल’?
मैनपुरी: 94 हजार वोटों का अंतर है सपा के लिए बड़ी मुश्किल, क्या मुलायम के गढ़ में फंस जाएगी ‘साइकिल’?
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव का नतीजा यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव लेकर आएगा. 8 दिसंबर को तय हो जाएगा कि मुलायम सिंह यादव की विरासत के उत्तराधिकारी अखिलेश यादव हैं या बीजेपी ही अब ओबीसी की बड़ी पार्टी है.
मैनपुरी सीट का नतीजा उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव लाने को तैयार है. इस चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, उनके चाचा शिवपाल यादव, बीजेपी की ओबीसी राजनीति का समीकरण, लोकसभा चुनाव में 80 सीटें जीतने का ख्वाब, योगी आदित्यनाथ का यूपी के सभी तबकों में पहुंच का दावा और यादव बेल्ट में समाजवादी पार्टी की पकड़ का इम्तिहान है.
मैनपुरी का चुनाव किसी महाभारत से कम नहीं है. मैदान में जहां मुलायम सिंह यादव के बेटा-बहू और भाई उनकी विरासत को बचाने के लिए एक साथ आ गए हैं, तो दूसरी ओर नेताजी को अपना गुरु मानने वाले रघुराज सिंह शाक्य बीजेपी के टिकट से सामने हैं.
वैसे तो इस चुनाव में उम्मीदवार डिंपल और रघुराज सिंह शाक्य हैं लेकिन ये लड़ाई योगी आदित्यनाथ और अखिलेश के बीच है. बीजेपी के पास इस सीट पर खोने के लिए कुछ भी नहीं है. समाजवादी पार्टी के लिए यह सीट हमेशा एकतरफा जीत लेकर आई है.
लेकिन समाजवादी पार्टी के लिए यह सीट इस बार उतनी आसान नहीं लग रही है. क्योंकि अगर बीते लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो मुलायम सिंह यादव की जीत का अंतर भी घटता-बढ़ता रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने अपील की थी ये उनका आखिरी चुनाव है. लेकिन जीत का अंतर उतना नहीं था जितना यादव बहुल सीट पर पहले हुआ करता था.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 524926 वोट, बीजेपी प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य को 430537 वोट मिले थे. यानी जीत का अंतर 94 हजार वोट था. साल 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 595918 वोट मिले थे जबकि बीजेपी के शत्रुघ्न सिंह चौहान को 231252 वोट मिले थे यानी जीत का अंतर 364666 था. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 392308 वोट तो बीएसपी के विनय शाक्य को 219239 वोट मिले थे. इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव की जीत का अंतर 173069 था. वहीं साल 2004 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 460470 वोट मिले थे.बीएसपी प्रत्याशी अशोक शाक्य को 122600 मिले थे. जीत का अंतर 337870 था. इस चुनाव में बीजेपी को भी 1 लाख से ज्यादा वोट मिले थे.
खास बात ये है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बीएसपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन बीएसपी ने इस बार प्रत्याशी नहीं उतारा है. माना जा रहा है कि इससे बीजेपी को बड़ा फायदा हो सकता है. क्योंकि यूपी में यादवों और दलितों के बीच जमीन पर टकराव होता रहा है. बीएसपी का वोट इस बार बीजेपी के खाते में जा सकता है. साल 2009 के चुनाव में बीएसपी को यहां पर 219000 वोट मिले थे. यानी पिछली बार मुलायम सिंह यादव को मिली जीत के अंतर से काफी ज्यादा है.
अखिलेश यादव और सपा के बड़े नेता इस वोटों के इस गणित के समझ रहे हैं. इसलिए पूरे चुनाव में अखिलेश यादव ने मैनपुरी का गढ़ नहीं छोड़ा और गांव-गांव जाकर प्रचार किया है. सपा नेताओं का कहना है कि मुलायम सिंह यादव के पक्ष में सहानुभूति की लहर है और मतदाता डिंपल को नेता जी के नाम पर समर्थन करेंगे.
दूसरी ओर सपा की स्थिति शिवपाल यादव के आने से भी मजबूत हुई है. यही वजह की शिवपाल की विधानसभा सीट जसवंतनगर में एक रैली के दौरान मंच पर अखिलेश ने चाचा के पैर छूकर संदेश देने की कोशिश की है.
दरअसल जसवंत नगर विधानसभा सीट में एक लाख साठ हजार ब्राह्मण, दलित 60 हजार, ब्राह्मण 15 हजार, मुस्लिम 16 हजार, ठाकुर 10 हजार, कोरी 5 हजार, वैश्य 7 हजार, लोध 8 हजार और अन्य 75 हजार जातियां हैं. जसवंत नगर में अगर डिंपल यादव को 1 लाख वोटों की बढ़त मिल जाती है तो बाकी क्षेत्रों में सपा के लिए सपा के लिए राह आसान होती चली जाएगी.
बीजेपी ने भी मैनपुरी का गढ़ जीतने के लिए पूरी तैयारी की है. अगर मतदाता 2019 के ही पैटर्न पर मतदान करते हैं तो उसको सिर्फ 94 हजार वोटों का फासला कम करना है. बीते 6 महीनों से बीजेपी ने यूपी में यादवों के बड़े नेता रहे और पूर्व सांसद हरनाम यादव के परिवार के लोगों को पार्टी में जोड़ा है. पीएम मोदी ने हरनाम यादव की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया.
ये पहली बार था जब बीजेपी ने सीधे तौर पर यादव वोटों पर सेंध लगाने की कोशिश की है. बीजेपी यूपी में अभी तक गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों का समीकरण बनाकर चुनाव जीतती आ रही है. लेकिन अब पार्टी ने मुस्लिम वोट बैंक पर पसमांदा मुसलमानों का सवाल खड़ा कर दिया है. तो उसकी नजर अब यादवों पर भी है.
बात करें मैनपुरी लोकसभा सीट के जातीय समीकरणों की तो यहां साढ़े चार लाख यादव, सवा तीन लाख शाक्य, दो लाख ठाकुर,एक लाख ब्राह्मण, एक लाख मुस्लिम, एक लाख लोध, दो लाख दलित जिसमें एक लाख 20 हजार जाटव, बाकी कटारिया,धोबी और पासी आदि हैं.