गुजरात फॉर्मूले से MP में बदलेगा सरकार का चेहरा …! जीत के लिए होगी बड़ी सर्जरी …

गुजरात फॉर्मूले से MP में बदलेगा सरकार का चेहरा
BJP के सर्वे में एंटी इनकम्बेंसी बड़ा फैक्टर, जीत के लिए होगी बड़ी सर्जरी

कैबिनेट के 4 पद नहीं भरने के संकेत साफ- बड़ा बदलाव होगा
शिवराज कैबिनेट में 4 पद खाली हैं। इन्हें भरने की सहमति आलाकमान ने इसलिए भी अभी तक नहीं दी है, क्योंकि मध्यप्रदेश की सत्ता में बड़े फेरबदल की तैयारी है। विधायकों के कामकाज को लेकर संघ, संगठन और सत्ता के स्तर पर तीन सर्वे किए गए हैं। सिंधिया समर्थक मंत्रियों के ऊपर भी गाज गिर सकती है।

गुजरात में वोटिंग के बाद बीजेपी हाईकमान ने सभी प्रदेशों के अध्यक्ष और संगठन मंत्रियों की बैठक बुलाई। केंद्रीय स्तर की इस बैठक के बाद तय हुआ है कि जिन राज्यों में अगले साल चुनाव हैं, वहां गुजरात फॉर्मूले पर अमल होगा। मध्य प्रदेश में हुए पार्टी के सर्वे की रिपोर्ट भी सौंपी गई। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल का फीडबैक आलाकमान तक पहुंचा।

सत्ता में बदलाव के लिए आलाकमान इंटेलीजेंस रिपोर्ट को भी आधार बनाएगा। इंटेलीजेंस की यह रिपोर्ट गृह मंत्रालय ने बनाई है, जिसे सीधे अमित शाह देखते हैं। सूत्रों का दावा है कि आलाकमान मध्य प्रदेश में बदलाव के लिए तीनों सर्वे के आधार पर होमवर्क पूरा कर चुका है। दिल्ली एमसीडी और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम के बाद की परिस्थितियों पर आलाकमान की नजर है। वहां से निपटकर इसी महीने बदलाव हो सकते हैं।

CM की लोकप्रियता 25% से ज्यादा नहीं, PM की 75%
भाजपा के सूत्र बताते हैं कि 2023 में होने वाले सभी विधानसभा चुनाव पार्टी सामूहिक नेतृत्व में लड़ेगी। किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का नाम घोषित नहीं किया जाएगा। हालांकि, मौजूदा मुख्यमंत्रियों को चुनाव जीतने के बाद सीएम बने रहने का मौका मिल सकता है। इसकी वजह पार्टी के आंतरिक सर्वे हैं। इसमें कोई मौजूदा सीएम ऐसा नहीं है, जिसकी लोकप्रियता 25% से ऊपर हो। पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 75% से ऊपर है।

1. सीएम बदलेगा, ज्यादातर मंत्री भी बदलेंगे
गुजरात की तरह भाजपा हाईकमान एग्रेसिव मोड पर जाता है तो कुछ ही दिनों में मुख्यमंत्री के साथ बड़े पैमाने पर मंत्रिमंडल में बदलाव करेगा। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का विकल्प ढूंढने में हाईकमान को थोड़ी मुश्किल जरूर होगी। ऐसा करके हाईकमान एंटी इनकम्बेंसी का मुद्दा ही खत्म करना चाहेगी। CM के लिए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, राज्यसभा सदस्य सुमेर सिंह सोलंकी, उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के नाम पर विचार हो सकता है। सोलंकी ST वर्ग से हैं और संघ से जुड़े हैं। इस वर्ग की प्रदेश में 47 विधानसभा सीटें हैं। यादव OBC नेता है और संघ के करीबी हैं।

2. सीएम नहीं बदलेगा, मंत्रिमंडल बदलेगा
प्रदेश में बड़े वर्ग में शिवराज के चेहरे को आज भी स्वीकार किया जा रहा है। इसे ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री को नहीं बदलें, लेकिन मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव हो। नए चेहरों को मौका मिलेगा। एससी-एसटी वर्ग के ज्यादा विधायक मंत्री बनाए जा सकते हैं। भौगोलिक क्षेत्र और जातिकरण समीकरण देखते हुए संख्या घटाई-बढ़ाई जाएगी। अभी 30 मंत्री हैं, जिनमें 10 क्षत्रिय, 8 ओबीसी, 3 एससी, 4 एसटी, 2 ब्राह्मण और 1 सिख कोटे से।

मप्र में यह भी होगा…

  • चुनाव में चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही होगा।
  • मौजूदा 127 विधायकों (मंत्री भी शामिल) में करीब 65 के टिकट कटेंगे।
  • जहां मंत्रियों को टिकट नहीं मिलेगा वहां प्रत्याशी का नाम फाइनल करने में उनकी सहमति ली जाएगी।
  • कुछ सीटों पर एंटी इनकम्बेंसी कम करने के लिए मंत्री के परिवार से किसी को टिकट दिया जाएगा।
  • गुजरात की तरह ही नई जिम्मेदारी देने की बात कहकर आलाकमान मंत्रियों को खुद हटने की घोषणा करने के लिए राजी करेगा।
  • जिन विधायकों के टिकट काटे जाएंगे, उनसे भी वन-टू-वन चर्चा की जाएगी ताकि भितरघात के हालात नहीं बनें।

मप्र ने ही बताया चेहरे से फर्क पड़ता है
बीजेपी के एक सीनियर लीडर के मुताबिक चुनाव से पहले कराए गए इंटरनल सर्वे में कई मुख्यमंत्रियों के बारे में नेगेटिव फीडबैक मिला है। यही कारण है कि मोदी के चेहरे को आगे रखा जा रहा है। कुछ समय पहले अमित शाह ग्वालियर आए थे। उन्होंने कहा था कि वोट नरेंद्र मोदी के नाम पर दीजिए। चेहरे से कितना फर्क पड़ता है, इसके लिए मप्र के पिछले चुनाव को ही देखिए। 2018 में शिवराज के नेतृत्व में हुए चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला। कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 29 में से 28 सीटें मिलीं। हालांकि इस तरह का ट्रेंड दूसरे भी राज्यों में दिखा था, जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट नहीं मिला, लेकिन आम चुनाव में मोदी को बम्पर सीटें दी। इसके बावजूद अभी सबसे अहम सवाल यही है कि गुजरात के मॉडल को मध्यप्रदेश में पार्टी कैसे लागू करेगी?

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुड गवर्नेंस और विकास यह गुजरात में जीत का आधार बना है। इसके साथ ही अमित शाह की चुनाव की रणनीति भी है। इसमें क्या परिवर्तन होंगे? इसका फैसला अमित शाह ही करते हैं। दूसरा संगठन का अपना तंत्र भी है।

कैबिनेट बदलाव में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बनाया जाएगा

क्षेत्रीय समीकरण – मौजूदा शिवराज कैबिनेट में ग्वालियर-चंबल से 9,मालवा से 8, निमाड़ से 2, मध्य क्षेत्र से 3, बुंदेलखंड से 4, विंध्य क्षेत्र से 3 और महाकौशल क्षेत्र से एक मंत्री है।

क्या बदलाव होगा…? – क्षेत्रीय संतुलन बनाने के लए ग्वालियर- चंबल और मालवा से संख्या कम करके महाकौशल व विंध्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व सरकार में बढ़ाकर संतुलित किया जाएगा।

जातिगत समीकरण – शिवराज कैबिनेट 30 में से सबसे ज्यादा 10 मंत्री क्षत्रिय हैं। मुख्यमंत्री सहित 8 मंत्री यानी 27% मंत्री ओबीसी से। तीन एससी और चार एसटी वर्ग से हैं। दो मंत्री 2 ब्राह्मण हैं।

क्या बदलाव होगा..? – क्षत्रिय मंत्रियों की संख्या को कम करके एससी व एसटी व ब्राह्मण मंत्रियों की संख्या बढ़ाकर सभी वर्गों को खुश किया जाएगा।

एमपी में कितनी एंटी इनकम्बेंसी, क्या वाकई लोग नाराज हैं…?

एंटी इनकम्बेंसी तो है। वजह साफ है कि 18 साल से एक ही पार्टी की सरकार। कमलनाथ सरकार के 15 महीनों को छोड़ दें तो शिवराज सिंह चौहान 16 साल से मुख्यमंत्री हैं। बीजेपी 2018 के चुनाव में एंटी इनकम्बेंसी को नहीं भांप पाई, इसलिए कठोर फैसले नहीं लिए गए। परिणाम ये हुआ कि उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा, 2013 की तुलना में 56 सीटों का नुकसान हुआ।

लंबे समय से गुजरात और मध्यप्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग कहते हैं- ‘जिस तरह बीजेपी ने गुजरात चुनाव लड़ा है, उससे साफ है कि मध्यप्रदेश ही नहीं, हरियाणा और कर्नाटक में मुख्यमंत्री भी बदले जा सकते हैं। बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव से ज्यादा 2024 का लोकसभा चुनाव महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाला चुनाव दिल्ली से लड़ा जाएगा। कौन मुख्यमंत्री रहेगा, इससे बीजेपी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। गुजरात, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होम स्टेट है, वहां उनका “आभामंडल” काम करता है, लेकिन मध्यप्रदेश में हालात अलग हैं। यहां प्रधानमंत्री रणनीतिक तौर पर ज्यादा सजगता से फैसले लेंगे।’

बड़े शहरों में BJP के लिए अलार्मिंग हालात, सक्सेस रेट गिरा
निकाय चुनाव ने बड़े शहरों में बीजेपी के लिए अलॉर्म का काम किया। बीजेपी का सक्सेस रेट जहां 100% था, वह घटकर 56% पर आ गया है। विंध्य से रीवा, ग्वालियर, चंबल में मुरैना जैसे बड़े शहर भाजपा गंवा बैठी है।

वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं- मालवा-निमाड़ के उज्जैन, बुरहानपुर जैसे शहरों में जरूर इनके महापौर जीते, लेकिन कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिली। पिछले चुनाव में बीजेपी ने सभी 16 नगर निगमों में कब्जा किया था। इस बार 7 महापौर गंवा दिए।

नए पैरामीटर से बंटेंगे टिकट
मोदी का चेहरा हर चुनाव में रहेगा ही, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन MP में पूरा चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा, इस पर संशय है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मध्यप्रदेश और गुजरात में अंतर है। गुजरात में मोदी का प्रभाव बहुत ज्यादा है। एंटी इनकम्बेंसी कम करने के लिए यह तय है कि विधानसभा चुनाव में नए पैरामीटर पर टिकट बांटे जाएंगे।

30-40 साल से सक्रिय नेताओं को ड्रॉप करने की तैयारी है। इसी तरह एक परिवार से एक सदस्य को ही टिकट दिया जाएगा। उम्मीदवार के चयन में उम्र का क्राइटेरिया भी तय होगा। खास बात यह है कि बीजेपी अब OBC वोटर्स को साधने पर ज्यादा फोकस करेगी। इनकी आबादी 48% प्रतिशत है।

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