दम नही हे शराब बंदी के बिरुद्र दलीलों में ….!

बिहार में जहरीली शराब से कई लोगों की मौत जितनी चिंताजनक है, उससे कहीं ज्यादा चिंताजनक यह है कि एक वर्ग शराबबंदी को लेकर ही सवाल उठा रहा है। इस वर्ग की दलील है कि हरियाणा, तमिलनाडु और केरल में शराबबंदी का प्रयोग सफल नहीं रहा था, इसलिए बिहार सरकार को शराबबंदी पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस दलील का कोई ठोस आधार नहीं है। दुर्घटनाएं बढ़ने से सड़कों पर वाहनों का आवागमन बंद नहीं किया जाता। दुर्घटनाएं रोकने के दूसरे उपाय खोजे जाते हैं।

बिहार में भी शराबबंदी को बरकरार रखते हुए जहरीली शराब के कारोबार पर लगाम कसने के रास्ते खोजे जाने चाहिए। गुजरात में भी तो 1960 से शराबबंदी लागू है। बिहार में 1977 में पहली बार शराबबंदी लागू की गई थी। शराब माफिया के दबाव के कारण तब यह ज्यादा समय नहीं चली थी। नीतीश कुमार सरकार ने 2016 में शराबबंदी लागू करने का कदम तो उठाया, लेकिन शराब की बिक्री के खिलाफ चुस्त-दुरुस्त तंत्र अब तक खड़ा नहीं कर सकी है। बिहार के कई शहरों में कच्ची शराब का कारोबार नशे के आदी लोगों पर भारी पड़ रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पूरे देश में शराबबंदी के पक्ष में थे। वह शराब पीने को चोरी और व्यभिचार से ज्यादा खराब मानते थे। उनका कहना था, ‘अगर मुझे भारत का तानाशाह बना दिया जाए तो शराब की तमाम दुकानें मुआवजा दिए बगैर बंद करवा दूंगा।’ शराब के दुष्प्रभाव देखते हुए पूरे देश में इसके खिलाफ माहौल बनना चाहिए। शराबबंदी को लेकर बिहार सरकार को कटघरे में खड़ा करने के बजाय अहम सवाल यह होना चाहिए कि राज्य में जहरीली शराब से जो मौतें हो रही हैं, उनके लिए कौन जिम्मेदार है? सात साल की शराबबंदी के दौरान बिहार में जहरीली शराब से कई लोग जान गंवा चुके हैं। जाहिर है, कच्ची शराब के अवैध कारोबार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के मोर्चे पर नीतीश सरकार नाकाम रही है। शराबबंदी के फैसले के समय ही ऐसे कारोबार पर अंकुश लगाने के ठोस जतन होने चाहिए थे।

दरअसल, शराबबंदी राजनीतिक नहीं, सामाजिक पहल है। इसे समाज के हर वर्ग और संगठन का सहयोग मिलना चाहिए। राजनीतिक दलों को भी इस सामाजिक पहल को समर्थन देना चाहिए। शराब ही नहीं, सभी तरह के नशे के खिलाफ ऐसी पहल की जरूरत है। न्यूजीलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जिसने युवाओं को सिगरेट पीने से रोकने के लिए कानून बनाया है। समाज को भी समझना होगा कि नशे से बर्बादी के सिवा कुछ हासिल नहीं होता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *