Noida: जिला कोषागार में बंद हैं 10 करोड़ के घोटाले की फाइलें …?

Noida: जिला कोषागार में बंद हैं 10 करोड़ के घोटाले की फाइलें, गायब होने के डर से आठ साल पहले कराई गई थीं जमा
आर्थिक अपराध शाखा विभाग से पांच बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी है। इसके अलावा लॉकर में बंद फाइल को निकलवाकर देखेगी कि कहीं उनकी फाइलों में कोई पेज तो गायब नहीं है। उसके बाद ही आगे की कार्रवाई शुरू की जाएगी

सपा कार्यकाल में जिले में तैनात तत्कालीन समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने 22 कॉलेज प्रबंधन के साथ मिलकर 10 करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम दिया। इस घोटाले की जांच रिपोर्ट फाइल जिला कोषागार के लॉकर में बंद है।

अब आर्थिक अपराध शाखा विभाग से पांच बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी है। इसके अलावा लॉकर में बंद फाइल को निकलवाकर देखेगी कि कहीं उनकी फाइलों में कोई पेज तो गायब नहीं है। उसके बाद ही आगे की कार्रवाई शुरू की जाएगी। अब भाजपा सरकार के समय में जब यह घोटाला आया तो इसकी जांच आर्थिक अपराध शाखा से करानी शुरू की है। एक सप्ताह पहले ईओडब्ल्यू की एक टीम गौतमबुद्धनगर नगर पहुंची और समाज कल्याण विभाग के अधिकारी से इस संबंध में पांच बिंदुओं पर जानकारी मांगी।

प्रश्न 1- घोटाले में शामिल रहे 22 शिक्षण संस्थानों ने कितनी छात्रवृत्ति की मांग की थी?
उत्तर- निजी शिक्षण संस्थानों की ओर से 1,200 विद्यार्थियों के नाम से छात्रवृति मांगी थी।

प्रश्न 2-समाज कल्याण विभाग की ओर से कितनी छात्रवृति (राशि) दी गई थी?
उत्तर-
 इन छात्र-छात्राओं को करीब 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।

प्रश्न 3- घोटाला के दौरान कौन-कौन अधिकारी तैनात थे?
उत्तर-
 उस समय जिला समाज कल्याण अधिकारी कृष्णा प्रसाद रहे थे जो इस समय लखनऊ में उप निदेशक पद पर तैनात हैं। जबकि क्लर्क तारिक मौजूद थे जो इन दिनों गाजियाबाद में तैनात हैं।

प्रश्न 4-छात्रवृत्ति के लिए कौन अधिकारी जिम्मेदार होता है?
उत्तर-
 छात्रवृति जारी करने का अधिकार जिला समाज कल्याण अधिकारी को होता है।

प्रश्न 5- तत्कालीन अधिकारियों और कर्मचारियों को मूल पते क्या हैं?
उत्तर-
तत्कालीन अधिकारियों के मूल पते के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है।

क्या था पूरा मामला

गौतमबुद्धनगर में सपा कार्यकाल 2012-2013 में छात्रवृत्ति घोटाला हुआ था। इसमें जिला समाज कल्याण विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों ने निजी कॉलेजों से मिलकर ऐसे छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया था, जो कॉलेज में पढ़ते ही नहीं थे बल्कि कॉलेजों ने ऐसे छात्रों के अलग-अलग नाम से खाते खुलवाए थे। इस तरह करीब 10 करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम दिया गया था।

मामले की शिकायत की गई तो इसमें तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी कृष्णा प्रसाद और वरिष्ठ बाबू तारिक समेत 22 शिक्षण संस्थानों के खिलाफ सूरजुपर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। इस घोटाले में 1200 छात्रों के नाम से फर्जी दस्तावेज के आधार पर छात्रवृत्ति के लिए आवेदन कराया गया था।

इस मामले में डीएम की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई लेकिन आगे कुछ कार्रवाई होती इससे पहले ही तत्कालीन दोषी अफसरों और शिक्षण संस्थानों ने जांच को रुकवा दिया। मगर जांच रिपोर्ट को लेकर तत्कालीन जिलाधिकारी एवी राजामौली और सीडीओ ने सर्तकता बरतते हुए जांच रिपोर्ट की मूल कॉपी को जिला कोषागार के लॉकर में बंद करा दिया। उसकी फोटो कॉपी ही संबंधित विभागों और शासन को भेजी गई थी। इससे जांच रिपोर्ट में कोई बदलाव करेगा तो मामला खुलकर सामने आ जाएगा।

सैकड़ों छात्रों के हैं खाते सीज

जिला समाज कल्याण विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों के घोटालों की आंच आम छात्रों पर भी पड़ी है। ऐसे सैकड़ों जरूरतमंद छात्र-छात्राओं के खाते फ्रीज हैं। वह अपनी छात्रवृत्ति भी नहीं निकाल पाए हैं। जीबीयू के छात्र नितिन का कहना है कि उस समय एमटेक की दो साल की करीब डेढ़ लाख रुपये फीस किसी से उधार लेकर जमा कराई थी। मगर घोटाले के कारण उन जैसे काफी छात्रों का खाता भी फ्रीज कर दिया था। आज तक उनका पैसा वापस नहीं मिला है। जबकि उन्होंने फीस के लिए पैसे को किसी तरह कर्ज आदि लेकर चुकाया था।

मेरठ आर्थिक अपराध शाखा से आए जांच अधिकारी ने पांच बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई थी। उनको जानकारी दे दी है। मामले से संबंधी फाइलें जिला कोषागार के लॉकर में बंद है।
– शैलेंद्र बहादुर सिंह, जिला समाज कल्याण अधिकारी

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