चंबल के बीहड़ से यूपी तक हरी लकड़ी पहुंचा रहा माफिया

वन विभाग की चेक पोस्ट से होकर निकलती हैं गाड़ियां …

फूप. सर्दी चरम पर है, ऐसे में लकड़ी माफिया चंबल के बीहड़ में सक्रिय हो गए हैं। हरे-भरे वृक्षों को हेमर और कुल्हाड़ी से काटकर ट्रैक्टर-ट्रॉली के जरिए स्थानीय आरा मशीनों पर खपाया जा रहा है। 600 रुपए प्रति क्विंटल की लकड़ी को इन मशीनों से काट कर केंटरों में यूपी के जिलों तक दो गुने भाव में बेचा जा रहा है। वन विभाग के अधिकारी माफिया पर कार्रवाई करने की बजाय सांठगांठ कर चेक पोस्टों से वाहनों को बिना चेक किए रवाना कर देते हैं।

बता दें चंबल के बीहड़ में पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध है। फारेस्ट विभाग का अमला बीहड़ में सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है, इसके बावजूद पेड़ों की कटाई का सिलसिला थमने की बजाय सर्दी में चार गुना बढ़ गया है। चंबल से लगे भदाकुर, नहारा, भोनपुरा, नई गढ़ी, ज्ञानपुरा, कनकपुरा, सराया, बिंडवा, बरही, भगवासी, अहेंती, मिरचोली, रानी बिरगवां, रानीपुरा, रमा, गढ़ा चांचर, चिलोंगा, कोषढ़, चितावली गांव के लोग मजदूर लगाकर बीहड़ उजाड़ रहे हैं। दिन में पेड़ों को काटा जाता है और सांझ होते ही अंधेरे में परिवहन शुरू हो जाता है।

वन विभाग ने 2 वाहन पकड़े

चंबल के बीहड़ से रोजाना 25 से 30 ट्रैक्टर-ट्रॉली लकड़ी भरकर जाते हैं। फूप व आसपास की आधा दर्जन आरा मशीनों पर करीब 500 क्विंटल लकड़ी को रोजाना काटकर केंटरों में भरकर यूपी के फिरोजा, सिकोहबाद, इटावा, मैनपुरी, औरैया आदि जिलों में भेज दिया जाता है। हालांकि हरी लकड़ी के परिवहन पर रोक लगी है, लेकिन कार्रवाई की बात करें तो वन विभाग ने पिछले दो माह में महज दो वाहनों पर कार्रवाई की है। जबकि बीहड़ के ग्रामीण इलाकों से रोजाना बड़ी मात्रा में पेड़ों को काटकर लकड़ी का परिवहन किया जा रहा है।

अधिकारी नहीं उठाते फोन

लकड़ी के परिवहन पर रोक लगाने के लिए यदि अधिकारियों से शिकायत करते हैं तो जिम्मेदार फोन तक नहीं उठाते हैं। भदाकुर तिराहे पर बने नाके पर कभी वाहन नहीं पकड़े जाते हैं। जबकि पंचायतों में वन रक्षक को बीट प्रभारी बनाया जाता है। इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में लकड़ी का कटाव बदस्तूर जारी है।

सर्दी में बढ़ जाती है लकड़ी की डिमांड

बीहड़ से लगे गांवों के लोग सर्दियों में लकड़ी का मुख्य व्यापार करते हैं। ग्रामीण जंगल में बबूल, नीम, शीशम, परवती, बेरी के पेड़ों को काटते हैं। कुछ लोग ऊंटों से लकड़ी का परिवहन करते हैं तो बड़े माफिया ट्रैक्टर-ट्रॉली में हरी लकड़ी भरकर सीधे आरा मशीनों पर बेच देते हैं। एक ट्रैक्टर में 30 क्विंटल लकड़ी होती है, जिसका भाव मशीन पर 18 हजार रुपए तक हो जाता है। रोजाना ढाई से तीन लाख रुपए की लकड़ी बीहड़ से काटी जा रही है, लेकिन वन विभाग के अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं।

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