शहर में खेलो इंडिया की चर्चा है। अब तक खेल स्पर्धाओं में खेल संघ के पदाधिकारी ही सक्रिय रहते थे, लेकिन इस बार सरकारी अधिकारी भी मैदान में हैं। आयोजन की भव्यता में कोई कमी नहीं है। खेलों की महफिल तो बहुत शानदार सजाई गई है, लेकिन इसे देखने वाले नहीं मिल रहे। अब तक सुना था कि राजनीतिक रैलियों में आयातित भीड़ जुटाई जाती है, अब वैसा ही नजारा खेलो इंडिया में भी है। अभय प्रशाल या बास्केटबाल काम्प्लेक्स के बाहर सरकारी वाहनों की कतार नजर आती है और अंदर कदम रखने पर प्रशासन के वरिष्ठों से लेकर कनिष्ठों तक की जो भीड़ होती है, वह भी दर्शक दीर्घा में नजर नहीं आती। दरअसल, खाली गलियारे को भरने के लिए स्कूलों को फरमान पहुंचा है और वहां से बच्चों की भीड़ जुटाई जा रही है। स्कूल यूनिफार्म में बे-मन से आकर बैठे बच्चों के चेहरे उनकी मनोदशा बता देते हैं। खैर, आयोजन सफल बनाना है, तो सब चलता है।
होर्डिंग पर निगम की नजर नहीं पड़ती
शहर की राजनीति में होर्डिंग का अपना अलग महत्व है। राजनीति चमकाने के लिए चमकते चेहरों के साथ पोस्टर शहर के चौराहों पर तान दिए जाते हैं। किंतु जबसे सफाई की अलख जगी है, नगर निगम का दस्ता बांस-बल्ली लेकर होर्डिंग उतारने पीछे-पीछे चला आता है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान तो होर्डिंग उतारने से खफा दो पूर्व मुख्यमंत्री मैदान में उतर गए थे। खैर, तब मामला सुलझा दिया गया, लेकिन होर्डिंग को लेकर राजनीति जारी रही। अब फिर शहर होर्डिंग से पटा हुआ है। हर बड़े चौराहे पर खेलो इंडिया के चमचमाते होर्डिंग टंगे हैं, लेकिन मामला खेलों का है इसलिए विपक्षी कांग्रेस भी चुप है। मगर हैरानी है कि नगर निगम के दस्ते की नजर भी होर्डिंग पर नहीं पड़ रही। शायद सरकारी आयोजन के होर्डिंग से शहर की खूबसूरती प्रभावित नहीं होती…।
शहर कांग्रेस में कब बनेगा अनुशासन?
कांग्रेस लंबे समय से विपक्ष की भूमिका निभाने के बाद ‘पक्ष’ में आने के भरसक जतन कर रही है। मगर जनता के मुद्दे सुलझाने से पहले पार्टी अपने ही मुद्दों में उलझ जाती है। फिलहाल शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद की खींचतान मची है। तीन दावेदार होड़ में हैं और मामला प्रदेश की सीमा लांघते हुए दिल्ली दरबार में अटका है। शहर में हुए हंगामे के बाद अनुशासन समिति ने अपनी सख्ती दिखाने की कोशिश की थी, लेकिन कांग्रेस में संगठन का रुतबा नेताओं पर कितना है, सब जानते हैं। गत दिनों राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि का कार्यक्रम था, मगर बड़े नेता फिर नदारद थे। विधायक तो लंबे समय से पार्टी के कार्यक्रम में दिखे नहीं, जो शहर अध्यक्ष की होड़ में थे, उनमें से भी केवल एक ही चेहरा नजर आया। इस बीच चर्चा चली है कि शहर अध्यक्ष के फैसले में देरी के बीच चौथा चेहरा न सामने आ जाए।
कैसे भी हो…बस खेल ले इंडिया
खेलो इंडिया को सफल बनाने में प्रशासनिक अमला किस शिद्दत से जुटा है, इसका नजारा तो आयोजन से जुड़े लोग महसूस कर ही रहे हैं। मगर इसका उदाहरण बास्केटबाल काम्प्लेक्स में मंगलवार को नजर आया। एक दिन पहले जिला खेल अधिकारी रीना चौहान काम के दबाव में चक्कर खाकर गिर पड़ीं। स्पर्धा स्थल पर अफरा-तफरी मची और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। दूसरे दिन जब उनकी सेहत को लेकर चर्चा जारी थी, तो वे अचानक सामने आ गईं। साथ में काम करने वाले हैरान थे कि जिन्हें अस्पताल के वार्ड में छोड़कर आए थे, वे बास्केटबाल के कोर्ट में कैसे? खैर, चौहान खुद भी खिलाड़ी रही हैं और अपने काम के प्रति समर्पण दिखाकर उन्होंने खेल भावना का परिचय दिया। मगर उनके इस समर्पण से वे कर्मचारी जरूर परेशान होंगे, जो काम के दबाव से बचने के लिए सेहत का बहाना बनाने की जुगत में थे।