नई दिल्ली – घरों में आता 3 तरह का दूध, फटने से बचाने को हो रही मिलावट; यही बना हेल्थ रिस्क
दिवाली तक दूध का संकट …
दिवाली तक दूध का संकट:घरों में आता 3 तरह का दूध, फटने से बचाने को हो रही मिलावट; यही बना हेल्थ रिस्क
फरवरी 2022 से फरवरी 2023 के बीच राजस्थान में सरस का फुल क्रीम मिल्क 58 से बढ़कर 64 रुपए प्रति लीटर हो गया और टोन्ड मिल्क 46 रुपए से 50 रुपए लीटर तक पहुंच गया।
मध्य प्रदेश में भी सांची का फुल क्रीम मिल्क 57 रुपए से 63 रुपए लीटर हो चुका है और टोन्ड मिल्क भी 48 रुपए से बढ़कर 54 रुपए लीटर बिक रहा है।
देश की राजधानी दिल्ली में भी टोन्ड मिल्क 48 रुपए से 54 रुपए लीटर हो गया और फुल क्रीम दूध 58 से 66 रुपए लीटर हो गया। दूध का महंगा होना घर के बजट पर असर डालता है। लेकिन जो दूध हम पी रहे हैं, उसका हमारी सेहत पर क्या असर हो रहा, यह समझना भी जरूरी है।
मार्केट एनालिस्ट ने 2023 की दिवाली तक दूध के महंगे होने का अनुमान लगाया है। ऐसा तब है जब भारत हाल ही में दुनिया में सबसे ज्यादा मिल्क प्रोडक्शन करने वाला देश बना है।
आज भारत में दुनिया का करीब 24% मिल्क प्रोडक्शन होता है। 7 फरवरी को पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने लोकसभा में बताया कि 2014 से लेकर अब तक दूध का उत्पादन 51% बढ़ा है। 2014 में 38 रुपए लीटर मिलने वाला टोन्ड मिल्क आज 54 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गया है।
तीन वजहों से दूध महंगा हो रहा है
इंडियन डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष आरएस सोढ़ी बताते हैं दूध की कीमत बढ़ने की तीन वजहें हैं-
- कोविड के बाद दूध ज्यादा महंगा हुआ उत्पादकों के पास जानवरों के लिए चारे की कमी हो गई।
- लंपी वायरस के कारण देश भर में 1 लाख से ज्यादा जानवरों की मौत हो गई, इसका असर दूध उत्पादन पर पड़ा।
- रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मिल्क प्रोडक्ट्स का रेट इंटरनेशनल लेवल पर बढ़ा।
भारत बड़ी मात्रा में मिल्क प्रोडक्ट्स आयात करता है। 2020-21 में भारत का इम्पोर्ट पिछले साल के मुकाबले दोगुना करीब 40 करोड़ रुपए का रहा।
घरों में इस्तेमाल हो रहा तीन तरह का दूध
दूध को मोटे तौर पर तीन हिस्सों में बांट सकते हैं। पहला रॉ मिल्क यानी गाय-भैंस का दूध जो सीधा आपके पास आता है।
दूध की दूसरी वैराइटी है- आधा या एक लीटर की प्लास्टिक थैलियों में आने वाला दूध, जिसे पॉश्चराइज्ड मिल्क कहते हैं। तीसरी तरह का दूध है- ट्रेटा पैक में आने वाला दूध, जो इन दोनों के मुकाबले ज्यादा जल्दी खराब नहीं होता। पैकेट खोलने के बाद फ्रिज में रखना जरूरी होता है।
अब इन तीनों तरह के दूध की खासियत और इनमें अंतर को जानते हैं-
क्या रॉ मिल्क का इस्तेमाल करना चाहिए?
देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला दूध, दूधियों के जरिए घरों में पहुंचता है, जिसे उबालकर पिया जाता है। इसे रॉ मिल्क भी कहते हैं। कस्बों और शहरों में थैली वाले दूध यानी पॉश्चराइज्ड मिल्क की मांग ज्यादा है। लेकिन वहां भी कई लोग रॉ मिल्क लेते हैं।
सीताराम भरतिया इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रिसर्च में पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. हर्षपाल सिंह सचदेव रॉ मिल्क पीने से मना करते हैं। उबालने के बाद भी इसमें कई कमियां रह जाती हैं। वह इसकी वजह गिनाते हैं-
- गाय के चारे में भी कई तरह के केमिकल्स मिले होते हैं। ये केमिकल्स दूध में पहुंचते हैं। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) की जांच में दूध में केमिकल्स पाए गए हैं। जनवरी 2023 में गुरुग्राम में जहरीले चारे से 30 भैसों की मौत हो गई थी।
- FSSAI के अनुसार, 93 तरह के एंटीबायोटिक्स मवेशियों को दिए जा रहे हैं। इनमें कई बैन हैं। दूध में इनका असर दिखता है जो पेट को इंफेक्शन दे सकता है।
- साफ-सफाई न हो तो खतरनाक बैक्टीरिया गाय-भैंस के दूध से शरीर में पहुंच सकते हैं। ट्यूबरक्लोसिस (TB) का बैक्टीरिया इसी तरह दूध में आता है।
- भारत में गर्मी काफी ज्यादा रहती है। रॉ मिल्क के जल्दी खराब होने की आशंका रहती है। दूध को फटने से बचाने के लिए दूधिये या बिचौलिए प्रिजर्वेटिव्स मिलाते हैं।
रॉ मिल्क के बाद शहरी घरों में पैकेट बंद दूध यानी पॉश्चराइज्ड मिल्क ज्यादा यूज होता है। पॉश्चराइज्ड दूध तैयार करने का तरीका और उसके फायदे-नुकसान भी जानते हैं।
पॉश्चराइज्ड मिल्क यानी थैली वाले दूध की तीन कैटिगरी हैं, इसमें टोन्ड मिल्क, डबल टोन्ड मिल्क और फुल क्रीम मिल्क आते हैं। ये तीनों कैटिगरी दूध में मिलने वाले फैट के हिसाब से अलग बांटी जाती हैं।
टोंड मिल्क, डबल टोंड और फुल क्रीम मिल्क में क्या अंतर?
टोंड और डबल टोंड मिल्क में 400 से अधिक फैटी एसिड्स होते हैं। दूध में मौजूद फैट की मात्रा से टोन्ड और डबल टोन्ड तय होता है। दोनों ही तरह के दूध कोलेस्ट्रॉल और फैट से बचाते हैं।
डाइटीशियन डॉ. विजयश्री बताती हैं कि जिन्हें कम फैट वाला दूध चाहिए वो डबल टोन्ड मिल्क ले सकते हैं। इस दूध में फैट कम होने के अलावा बाकी सभी दूसरे न्यूट्रिएंट्स मौजूद होते हैं। फुल क्रीम मिल्क में 8 से 9 फीसदी तक फैट होता है।
क्या स्किम्ड मिल्क पिया जा सकता है?
जिस दूध में से फैट को पूरी तरह निकाल लिया जाता है उसे स्किम्ड मिल्क कहा जाता है। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) के एनिमल हस्बैंडरी और डेयरी के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. जय सिंह बताते हैं कि कई बार लोगों को लगता है कि स्किम्ड मिल्क पीने लायक नहीं रहता, जबकि ऐसा सोचना गलत है। इसमें फैट बिल्कुल नहीं होता लेकिन इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन जैसे न्यूट्रिएंट्स रहते हैं। इसे पीने में कोई रिस्क नहीं रहता।
रॉ मिल्क और पॉश्चराइज्ड मिल्क के बाद तीसरी तरह के दूध टेट्रा पैक मिल्क की मांग भी घरों में तेजी से बढ़ी है।
ट्रेटा पैक या स्टरलाइज्ड मिल्क
टेट्रा पैक मिल्क स्टरलाइज्ड होता है। इसे होमोजेनाइज्ड मिल्क भी कहा जाता है। इसे 135 डि. से. से अधिक तापमान पर गर्म करके तैयार किया जाता है। इसमें न्यूट्रिशनल वैल्यू अधिक होती है। इस प्रक्रिया में फैट मोलिक्यूल्स टूट जाते हैं। यह दूध जल्दी डाइजेस्ट होता है। यह दूध लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।
कई बार डॉक्टर बच्चों को टेट्रा पैक दूध पीने की सलाह देते हैं। कंपनियों का दावा है कि टेट्रा पैक दूध में प्रिजर्वेटिव्स नहीं होते। विशेषज्ञ भी कंपनियों के दावे को सही मानते हैं।
मगर साथ ही वो यह भी कहते हैं कि दूधिये के घर से कंपनी तक पहुंचने के दौरान दूध को खराब होने से बचाने के लिए इसमें औसतन तीन जगह प्रिजर्वेटिव्स मिलाए जा रहे हैं, जो सेहत पर बुरा असर डालते हैं। डॉ. जय सिंह इस बात को इस तरह बताते हैं-
1- कलेक्शन सेंटर पर पहुंचने से पहले एजेंट प्रिजर्वेटिव्स मिलाते हैं
2- कलेक्शन सेंटर पर आने के बाद दोबारा प्रिजर्वेटिव्स मिलाए जाते हैं
3- कलेक्शन सेंटर से शहर जाने के बीच यह प्रकिया तीसरी बार होती है
डॉ. जय सिंह के मुताबिक डेयरी में पहुंचने पर भी क्वालिटी चेक में इन प्रिजर्वेटिव्स की पहचान नहीं हो पाती। कई बार डिमांड और सप्लाई के प्रेशर की वजह से अनदेखी तक हो जाती है। कुछ ही डेयरी में प्रिजर्वेटिव्स की जांच हो पाती है।
प्रिजर्वेटिव्स का अंदरूनी अंगों पर होता है असर
प्रिजर्वेटिव्स मिला दूध स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित नहीं रहता। दूध में हाइड्रोजन परऑक्साइड, सोडियम बाइकॉर्बोनेट, फॉर्मलडिहाइड, बोरिक एसिड, सोडियम बेंजोएट जैसे प्रिजर्वेटिव्स मिलाए जा रहे हैं। इनकी कुछ बूंदों से ही दूध को 16 से 17 घंटे तक प्रिजर्व रखा जा सकता है।
शैंपू, एंटीसेप्टिक और कॉस्मेटिक्स में इस्तेमाल होने वाले फॉर्मलडिहाइड या फॉर्मेलिन को भी दूध में मिलाया जाता है। ऐसा दूध लंबे समय तक इस्तेमाल करने से किडनी, लिवर और हार्ट के डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है।
टेट्रा पैक दूध का फ्लेवर खराब होता है?
अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध में बताया गया है कि दूध को प्लास्टिक या कार्टन में पैक करने पर इसका टेस्ट खराब होने लगता है। टेट्रा पैक में जिस पेपर बोर्ड का इस्तेमाल होता है उसका फ्लेवर दूध में घुल जाता है। इसी तरह पॉली बैग या प्लास्टिक के बर्तन में दूध रखने पर उसका फ्लेवर इसमें आ जाता है। नतीजा दूध का अपना टेस्ट नहीं रहता।
ट्रेटा पैक्स के दूध में मिनरल्स में होती है गड़बड़ी
दूध में सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, कॉपर, मैग्नीज, आयोडीन, सेलेनियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। लेकिन टेट्रा पैक मिल्क में कई मिनरल्स का बैलेंस असंतुलन बिगड़ जाता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजी एंड बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार, पोटैशियम और सोडियम के लेवल में गड़बड़ी होती है।
अल्ट्रा हाई टेंपेरेचर पर दूध को गरम करने के बाद भी इसमें बैक्टीरिया के रहने का डर रहता है। पोटैशियम और सोडियम में गड़बड़ी से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। पैरालाइसिस और हाई ब्लड प्रेशर का भी रिस्क रहता है।
क्या पॉश्चराइज्ड दूध से बेहतर है टेट्रा पैक मिल्क
नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के ज्वाइंट डायरेक्टर (एकेडमिक) डॉ. ए के सिंह का कहना है कि टेट्रा पैक में पॉश्चराइज्ड दूध के मुकाबले न्यूट्रिएंट्स की मात्रा अधिक होती है।
सेकेंड के 100वें हिस्से पर 135 से 140 डिग्री सेल्सियस पर दूध को गर्म किया जाता है।
इसमें केमिकल रिएक्शंस कम होते हैं। जबकि दूध में मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इस दूध को लंबे समय तक रूम टेंपेरेचर पर सुरक्षित रख सकते हैं।
वहीं टेट्रा पैक दूध पॉली बैग मिल्क के मुकाबले इको फ्रेंडली भी है। इसमें प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया जाता। टेट्रा पैक बायोडिग्रेडेबल है। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता। इसे रिसाइकिल किया जा सकता है।
क्या देसी गाय का दूध ऑर्गेनिक है
आजकल ऑर्गेनिक मिल्क बोतलों में भरकर बेचा जा रहा है। यह एक मिथ है कि देसी गाय का दूध ऑर्गेनिक होता है।
ऑर्गेनिक दूध के कई स्टैंडर्ड हैं। इसमें देखा जाता है कि गाय को जो चारा दिया जा रहा है वो ऑर्गेनिक है या नहीं।
इसे सर्टिफाइड किया गया है या नहीं। इसी तरह गाय के बीमार पड़ने पर उसे कौन सी दवा दी गई, क्या एंटी बायोटिक्स दी गई है? कई दवाओं का प्रभाव अधिक समय तक रहता है।
दूध को कंप्लीट फूड कहा जाता है। काम की भागदौड़ में एक गिलास दूध पीकर जॉब पर निकलने वाले भी बहुत हैं। लेकिन आज दूध के दाम आम आदमी की जेब पर असर करने लगे हैं, जिसकी वजह से दूध का गिलास छोटा होता जा रहा है। टेंशन इस बात की है कि दूध की बढ़ती कीमतें कम से कम हमें सेहत की बेफिक्री तो दें।