साइकिल से स्कूटी पर आई सरकार; महिला, युवा और किसानों पर इतना फोकस क्यों?
पूजा-पाठ कर वित्तमंत्री घर से निकलते हैं। बजट बैग उठाकर मीडिया को विजुअल्स की अपॉर्चुनिटी देते हैं। फिर सदन में शोरगुल के बीच भाषण पढ़ते हैं…। राज्य का बजट हर साल अमूमन इसी तरह आता है, लेकिन राजनीति में रुचि रखने वालों को इस बार उत्सुकता इस बात की थी कि आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए पॉलिटिकल ड्रामा क्या होगा? इसमें माहिर विपक्ष के कुछ विधायकों ने गैस सिलेंडर के साथ पहुंचकर मीडिया के कैमरों को अपनी तरफ घुमने के लिए मजबूर किया भी। इधर, आम आदमी की अपनी उम्मीदें थीं। कुछ सवाल भी। आइए, 10 सवालों के जरिए समझते हैं इस बजट को…
महिलाओं, युवाओं और किसानों पर इतना फोकस क्यों?
महिलाओं, युवाओं और किसानों पर फोकस, यह अब किसी भी सरकार के लिए बजट का अनिवार्य हिस्सा है। पहले बात महिलाओं की… हर महीने ‘लाडली बहना’ को एक हजार रुपए खाते में पहुंचाने वाली स्कीम का ऐलान पहले ही हो चुका था। बजट में प्रावधान स्वाभाविक था। हां, इसे मास्टर स्ट्रोक जरूर कह सकते हैं। पात्रता की कम बंदिशों के कारण प्रदेश की बड़ी आबादी इस योजना में कवर हो जाएगी। इसे विपक्ष भी भली-भांति समझता है, इसीलिए कांग्रेस ने 1500 रुपए देने की बात कही है।
नौकरियों का माहौल कुछ महीनों से बना हुआ है। बजट से पहले ही इसकी तैयारियां हो चुकी हैं कि अगले छह-सात महीने में नियुक्ति पत्र देने के कितने इवेंट होंगे। सरकार का खजाना अब कर्जमाफी जैसी स्कीम की इजाजत नहीं देता है, इसलिए ब्याज माफी का फॉर्मूला लाया गया है, ताकि किसान की पासबुक से डिफाल्टर का ठप्पा हट सके और वह फिर कर्ज ले सके।
साइकिल से स्कूटी पर क्यों आई सरकार?
घर-परिवार या स्कूल में यदि बजट की किसी एक बात की चर्चा होगी तो वह ई-स्कूटी की। छात्राओं को अब तक स्कूल आने-जाने के लिए सरकार साइकिल देती थी। अब लड़कियों की कॉलेज में एंट्री स्कूटी से होगी। जरा आंकड़ों पर गौर कीजिए- मध्यप्रदेश शिक्षा मंडल की 12वीं कक्षा की परीक्षा में वर्ष 2022 में 309001 लड़कियां पास हुई थीं। इसमें 174368 लड़कियां फर्स्ट डिवीजन थीं। यदि इस बार भी इतनी ही लड़कियां फर्स्ट डिवीजन आईं तो इन्हें ई-स्कूटी मिलेगी। 2 किलो वाट की एक स्कूटी की औसत कीमत 70 हजार रुपए भी हुई तो सरकार को इस पर 1220 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। यह सरकार का बड़ा दांव है। इससे सिर्फ वह लड़की ही नहीं, पूरा परिवार इमोशनली कनेक्ट होगा। यानी पौने दो लाख परिवार।
बजट में आम आदमी के लिए क्या है?
किसी भी सरकार के लिए अब आम आदमी नाम की कोई अलग श्रेणी नहीं रही है। तर्क दिया जा सकता है कि लाडली बहना, युवा और स्कूटी वाली छात्रा भी आम आदमी के घर से आते हैं, इसलिए जो योजनाएं इनके लिए हैं, वे आम आदमी के लिए ही है, ऐसा माना जाए।
कर्मचारियों के लिए सरकार ने क्या ध्यान रखा?
कर्मचारियों की ओर से पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को छोड़कर ऐसी कोई बड़ी मांग फिलहाल सरकार के सामने नहीं है, जिसका बजट में जिक्र करना पड़े। हां, सरकार यह भी जानती है कि चुनावी साल में कर्मचारी मुखर होंगे। अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे। तब कुछ किया जा सकता है। जहां तक ओपीएस की बात है, सैद्धांतिक तौर पर भाजपा की यह लाइन स्पष्ट है कि इसकी ओर नहीं लौटना है।
बजट में व्यापारी कहां है?
‘मैं उद्यमी हूं, मुझे भरोसा है अपने जुनून पर’ बजट भाषण में वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने व्यापारियों का जिक्र इसी बात के साथ करते हुए कहा– उद्यमियों के इसी भरोसे व जुनून को हमारी सरकार का सहयोग व समर्थन मिलता रहा है। उद्योगपतियों की तारीफ तो बहुत की गई, लेकिन उनके लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई है। हालांकि, प्रदेश के व्यापारियों को राज्य सरकार से सीधे तौर पर बड़ी राहत नहीं मिल सकती है, लेकिन पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में शामिल किए जाने का असर जरूर व्यापारियों पर पड़ेगा, लेकिन वित्त मंत्री ने साफ कर दिया है कि सरकार इस पर कोई विचार नहीं कर रही है।
मंदिरों पर सरकार का इतना ध्यान क्यों?
उज्जैन के महाकाल लोक की हर जगह तारीफ हो रही है। इसका क्रेडिट सरकार को पूरा मिला है। प्रदेश की ब्रांडिंग से लेकर एक बड़े वर्ग को जोड़ने का काम इस प्रोजेक्ट ने किया है। सरकार अब इसी तरह दूसरी जगह भी नए लोक में अपनी इस बेस्ट प्रैक्टिस को आगे बढ़ाना चाहती है। महाकाल लोक के बाद ओंकारेश्वर में वेदांत पीठ की स्थापना के लिए सरकार ने 350 करोड़ का प्रावधान बजट में किया है। इससे मालवा-निमाड़ कवर हो गया। सागर में संत रविदास स्मारक, ओरछा में रामराजा लोक और चित्रकूट में दिव्य वनवासी राम लोक बनाकर बुंदेलखंड का भी ध्यान रख लिया है।
क्या वाकई यह चुनावी बजट है?
बिल्कुल। महिला, किसान और युवाओं का पूरा ध्यान रखा गया है। ये वोटर की नई ऐसी श्रेणी है जो धर्म-जाति के चुनाव में समीकरणों पर भी भारी पड़ सकती है। डायरेक्ट बेनिफिट किसी एक सदस्य को मिले, लेकिन सधता पूरा परिवार है। यह बात पिछले चुनावों में स्पष्ट हो चुकी है। दरअसल, बीजेपी ने चुनाव के लिए युवाओं को अपने कोर एरिया में रखा है। वजह है– सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा युवा वर्ग एक्टिव रहता है। सरकार खासकर पार्टी की छवि बनाने व बिगाड़ने में अहम रोल अदा कर सकता है। वैसे भी प्रदेश में 13 लाख से अधिक नए वोटर बने हैं।
तो क्या इसका फायदा सरकार को मिलना तय है?
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जो घोषणाएं बजट में की गई हैं वे धरातल पर आ जाए, वह भी समय रहते, क्योंकि वक्त बहुत कम है। ‘लाडली बहना’ के हाथ में अगले कुछ महीने में रुपए पहुंचना शुरू हो जाए, वादे के मुताबिक युवाओं को नौकरियां मिल जाए और किसानों का ब्याज माफ हो जाए, यह आसान नहीं है, क्योंकि लाडली बहना और किसानों से जुड़ी दो योजनाओं के लिए ही सरकार को 10 हजार 500 करोड़ की व्यवस्था तत्काल करना होगी।
विपक्ष के लिए इस बजट में क्या छोड़ा गया?
पुरानी पेंशन स्कीम। यह कांग्रेस के लिए बड़ा हथियार है। राजस्थान में 2022 के बजट में कांग्रेस सरकार ने पुरानी पेंशन बहाल कर दी थी। मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस ने पुरानी पेंशन बहाल करने का वादा किया है। तय है कि इस मुद्दे को कांग्रेस खूब उठाएगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इसका जवाब कैसे देगी?
… और महंगाई का क्या?
जीएसटी के बाद अब महंगाई को लेकर राज्य सरकार के हाथ बंधे हुए हैं, लेकिन आम आदमी अब भी यही उम्मीद करता है कि कुछ राहत मिलेगी। कुछ नहीं तो पेट्रोल-डीजल पर वैट कम कर राहत दी जा सकती थी, लेकिन सरकार का खजाना भरने में पेट्रोल-डीजल से बड़ा हिस्सा आता है, फिर डायरेक्ट बेनिफिट वाली योजनाओं के लिए भी रुपए चाहिए।