24 साल की 74% लड़कियां बना चुकी यौन संबंध, लड़के सिर्फ 45% …..!

लड़कियां ज्यादा सेक्शुअली एक्टिव क्योंकि कम उम्र में ही शादी …

लड़कियां ज्यादा सेक्शुअली एक्टिव क्योंकि कम उम्र में ही शादी:24 साल की 74% लड़कियां बना चुकी यौन संबंध, लड़के सिर्फ 45%

भारत बदल रहा है…लोगों की सोच बदल रही है। लेकिन इस बदलती सोच के कुछ नमूने खासे चौंकाने वाले हैं …

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के हाल में जारी विस्तृत आंकड़े बताते हैं कि देश में सेक्स के अनुभव के मामले में महिलाएं, पुरुषों से आगे हैं। देश में 15 से 19 की उम्र के बीच की 15.1% लड़कियों को सेक्स का अनुभव है, जबकि इसी उम्र के 7.7% लड़के ही सेक्स का अनुभव रखते हैं।

उम्र के साथ ये अंतर घटता भी नहीं दिखता। 23 से 24 की उम्र की 74.7% लड़कियों ने सेक्स का अनुभव होना स्वीकारा, जबकि इसी उम्र के 45.3% लड़के ही सेक्स का अनुभव रखते हैं।

हां ये जरूर है कि बिना शादी के संबंध बनाने में लड़के आगे हैं। 23 से 24 की उम्र की अविवाहित लड़कियों में 95.3% ने कभी संबंध नहीं बनाए। जबकि इसी उम्र के अविवाहित लड़कों में कभी संबंध न बनाने वालों का आंकड़ा 77.2% ही है।

यानी ये आंकड़े बताते हैं कि लड़कियों की शादी की औसत उम्र आज भी लड़कों से कम है। कम उम्र में शादी की वजह से ही 15 से 24 की उम्र की लड़कियों को सेक्स का अनुभव इसी उम्र के लड़कों से ज्यादा है।

पत्नी से मारपीट के मुद्दे पर भी सोच बदली जरूर है, लेकिन स्थिति अभी भी चिंताजनक है। देश में 45% महिलाएं मानती हैं कि पति का पत्नी को पीटना सही है। ये आंकड़ा NFHS-4 के मुकाबले 7% गिरा जरूर है, लेकिन कम नहीं है।

वहीं, 44% पुरुष भी मानते हैं कि पत्नी को पीटना जायज है और खास बात ये है कि NFHS-4 के मुकाबले ये आंकड़ा 2% बढ़ गया है।

जानिए, कैसे सेक्स के प्रति लोगों का रुख बदल रहा है और घरेलू हिंसा को जायज मानने वाली आबादी कौन सी है…

पहले जानिए, यौन संबंधों के बारे में कैसे भारत की सोच बदली है

किसी भी उम्र में लड़कियां यौन संबंध बनाने में आगे…वजह- आज भी लड़कियों की शादी 15 से कम की उम्र में हो रही है

NFHS-5 के मुताबिक हर 15 से लेकर 24 साल तक के आयु वर्ग में हर सेक्शन में यौन संबंध का अनुभव लड़कों के मुकाबले लड़कियों में ज्यादा है।

चाहे 15 से 17 की उम्र में हो या 23 से 24 की उम्र में, हर आयु वर्ग में सेक्स का अनुभव रखने वाली लड़कियों का प्रतिशत लड़कों से ज्यादा है।

लेकिन ये आंकड़े यह भी बताते हैं कि यौन अनुभव रखने वाली लड़कियों में 98.9% की एक न एक बार शादी जरूर हुई थी।

यानी प्री-मेरिटल सेक्स की स्वीकार्यता अभी भी ज्यादा नहीं है।

फिर लड़कियों के सेक्स के प्रति ज्यादा एक्सपोजर की वजह क्या है?

समाजशास्त्री मानते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह कम उम्र में शादी होना है। सर्वे में 15-19 के आयुवर्ग की 15.1% लड़कियों ने माना कि वो यौन संबंध बना चुकी हैं। इनमें से 1.2% ने माना कि यौन संबंध 15 की उम्र से पहले बनाए हैं।

वहीं, 23-24 की उम्र की 74.7% लड़कियों ने यौन संबंध बनाना स्वीकारा और इस उम्र की 4% लड़कियों ने माना कि सेक्स का अनुभव 15 से कम उम्र में हुआ था।

समाजशास्त्री मानते हैं कि 15 से कम की उम्र में शादी का ट्रेंड घटा जरूर है, मगर बंद नहीं हुआ है।

लड़कों की शादी की औसत उम्र ज्यादा…लड़कियों की कम

समाजशास्त्री कहते हैं कि ये आंकड़े शादी की उम्र में अंतर का स्पष्ट इंडिकेटर हैं। 23 से 24 की उम्र में 74% लड़कियां सेक्स के प्रति एक्सपोज हो जाती हैं, जबकि सिर्फ 45% लड़के ही एक्सपोज होते हैं।

इसकी वजह ये है कि समाज में शादी के समय लड़की के लिए हमेशा उम्र में बड़ा लड़का पसंद किया जाता है। इसकी वजह से लड़कियों की शादी की औसत उम्र ही लड़कों के मुकाबले कम है।

लड़कों की शादी देर से होती है, मगर जब भी होती है तो कम उम्र की लड़की से ही होती है।

आर्थिक स्टेटस के साथ बदलता है शादी की उम्र का ट्रेंड…गरीबों में जल्दी और अमीरों में देर से हो रही है शादी

शादी की उम्र और सेक्स के प्रति एक्सपोजर का सीधा संबंध आर्थिक स्थिति से जुड़ा दिखता है।

NFHS-5 के आंकड़े दिखाते हैं कि 15-24 की उम्र में यौन संबंधों के प्रति एक्सपोजर सबसे ज्यादा निम्न आय वर्ग में दिखता है। हालांकि, यहां भी लड़कियों का एक्सपोजर लड़कों से ज्यादा है।

उच्चतम आय वर्ग में 15 से 24 आयुवर्ग की लड़कियों का सेक्स के प्रति एक्सपोजर सबसे कम दिखता है।

मुस्लिम समुदाय में लड़कियों की कम उम्र में शादी का ट्रेंड सबसे ज्यादा…उनके बाद हिंदू समुदाय

NFHS-5 के आंकड़ों के मुताबिक 15 से 24 आयुवर्ग की लड़कियों में सेक्स के प्रति एक्सपोजर सबसे ज्यादा मुस्लिम समुदाय में दिखता है।

ये आंकड़ा इस बात की पुष्टि करता है कि इस समुदाय में कम उम्र में शादी का ट्रेंड ज्यादा है। 15 से भी कम उम्र में सेक्स के प्रति एक्सपोजर वाली लड़कियों का आंकड़ा भी इसी समुदाय में सबसे ज्यादा है।

इसके बाद हिंदू समुदाय में लड़कियों की कम उम्र में शादी का ट्रेंड सबसे ज्यादा है। जैन समुदाय में यह ट्रेंड सबसे कम दिखता है।

अब देखिए, दूसरा चौंकाने वाला ट्रेंड…

पत्नी को पीटना जायज…ऐसा मानने वाली महिलाएं, पुरुषों से भी ज्यादा

45% महिलाएं आज भी मानती हैं कि पति अगर पत्नी को पीटता है तो ये जायज है। ऐसा मानने वाले पुरुष 44% हैं।

खास बात ये है कि 39.7% अविवाहित महिलाएं और 51.9% विधवा/तलाकशुदा महिलाएं भी मानती हैं कि पति, पत्नी को पीट सकता है।

सर्वे के दौरान 7 कारण बताए गए थे जिनकी वजह से पति ने पत्नी को पीटा। ये कारण थे-

  • पत्नी को पति को बिना बताए घर से बाहर गई।
  • पत्नी घर और बच्चों का ख्याल नहीं रखती।
  • पत्नी पति से बहस करती है।
  • पत्नी पति से यौन संबंध बनाने से इनकार करती है।
  • पत्नी ठीक से खाना नहीं बनाती।
  • पति को शक है कि पत्नी के अवैध संबंध हैं।
  • पत्नी अपने सास-ससुर का अपमान करती है।

महिलाओं के मुताबिक पति के पीटने का सबसे जायज कारण सास-ससुर का अपमान करना है। 31.7% महिलाएं मानती हैं कि इस वजह से पति, पत्नी को पीट सकता है।

घरेलू हिंसा के प्रति स्वीकार्यता सबसे ज्यादा ईसाई समुदाय में

NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं कि पति के पत्नी पर हाथ उठाने की स्वीकार्यता सबसे ज्यादा ईसाई समुदाय में है।

ईसाई समुदाय की 52.6% महिलाएं घरेलू हिंसा को जायज मानती हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि 52% बौद्ध समुदाय की महिलाएं भी पति के पीटने को सही ठहराती हैं।

ईसाई समुदाय में 52.9% पुरुष भी घरेलू हिंसा को जायज मानते हैं। मगर ऐसा मानने वाले पुरुष बौद्ध समुदाय में 41.7% ही हैं।

घरेलू हिंसा की सबसे कम स्वीकार्यता सिख समुदाय में है। सिख समुदाय में 22% महिलाएं और 29% पुरुष ही घरेलू हिंसा को किसी भी वजह से जायज ठहराते हैं।

मिडिल क्लास में घरेलू हिंसा को जायज ठहराने वाले सबसे ज्यादा

घरेलू हिंसा के प्रति स्वीकार्यता के मामले में एक ट्रेंड बहुत ही चौंकाने वाला है। आयवर्ग के हिसाब से देखा जाए तो ये स्वीकार्यता निम्न आयवर्ग या उच्च आयवर्ग के मुकाबले मिडिल क्लास में सबसे ज्यादा है।

मिडिल क्लास की 50% से ज्यादा महिलाएं मानती हैं कि किसी भी कारण से पति का हाथ उठाना जायज है।

हालांकि सेक्स से मना करने या ठीक से खाना न बनाने पर पीटने को जायज ठहराने वाली महिलाएं निम्न आयवर्ग में ज्यादा है।

न्यूक्लियर परिवारों में घरेलू हिंसा की स्वीकार्यता ज्यादा

संयुक्त परिवारों के बजाय न्यूक्लियर परिवारों में घरेलू हिंसा की स्वीकार्यता ज्यादा है।

समाजशास्त्रियों के मुताबिक ये ट्रेंड खतरनाक है। आमतौर पर ये धारणा रही है कि संयुक्त परिवारों में पत्नी पर दबाव ज्यादा होता है और घरेलू हिंसा के मामले भी ज्यादा होते हैं।

मगर न्यूक्लियर परिवारों में घरेलू हिंसा की स्वीकार्यता बढ़ना बताता है कि शहरों में नौकरी कर बच्चों की परवरिश कर रहे दंपतियों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। न्यूक्लियर परिवारों में रहने वाली 22% महिलाएं तो मानती हैं कि बहस करने पर पति का पीटना भी जायज है।

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