ग्रीन फ्यूचर के लिए बचपन से ग्रीन मिशन के बीज बोएं
मैं ऐसे शहर में रहता हूं, जहां तट और ढेर सारे दलदलीय इलाके हैं। इस मंगलवार को हुई (17 एमएम) बेमौसम बारिश कीट खाने वाले पक्षियों के लिए मददगार साबित हुई। पक्षी ऐसे दलदलीय इलाके पसंद करते हैं, जहां वे चोंच से मिट्टी या कीचड़ के नीचे मौजूद कीट खा सकें। और यह जगह न सिर्फ बर्ड वॉचर्स बल्कि पक्षियों के बारे में कम जानकारी रखने वालों के लिए भी दर्शनीय है।
इस मंगलवार शाम को पवई लेक के किनारे अपनी रेगुलर वॉक के दौरान मैंने देखा कि झील के पानी में किनारे पर गाद पर बैठकर पक्षियों का भोज चल रहा है, तो मुझे उप्र में बिजनौर के शेख परिवार का ख्याल आया, जिन्होंने बीते 300 सालों से अपनी हवेली अगली पीढ़ी को ये कहते हुए सौंपी कि वे उसकी चौथी मंजिल से छेड़छाड़ नहीं करेंगे और सदियों से रह रहीं गौरेया को आने देंगे और उन्हें विस्थापित नहीं करेंगे।
वर्तमान पीढ़ी वह आदेश मानती है और आज यह ‘गौरेया वालों की हवेली’ नाम से विख्यात है, जो दो हजार गौरेया का घर है। यहां तक कि स्थानीय वन अधिकारी ज्ञान सिंह मानते हैं कि इस परिवार ने उदाहरण पेश किया है और पीढ़ी दर पीढ़ी गौरेया की चिंता करना आसान नहीं है।
हालांकि यह व्यक्तिगत स्तर पर है, पर जिस तरह से लुधियाना के आईआरएस अधिकारी और ‘ग्रीन मैन ऑफ लुधियाना’ नाम से विख्यात रोहित मेहरा ने अपने हाथों से 265 जंगल (मैन मेड फॉरेस्ट) बनाए हैं, उनकी हाल ही में स्कूली बच्चों के लिए शुरू पहल ‘फॉरेस्ट वॉक’ मुझे वाकई पसंद आई।
बच्चे सिर्फ यही नहीं देख रहे कि जंगल कैसे पनपते व बढ़ते हैं, बल्कि वे बायोलॉजी, बॉटनी और प्लांट लाइफ केमिस्ट्री का प्रायोगिक पहलू भी सीखते हैं। यह उनमें पंचतत्वों (जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश) का अनुभव कराते हुए प्रकृति के साथ एक होने की संस्कृति को आत्मसात करता है। यह सैर बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाती है और ‘ग्रीन एजुकेशन’ का विस्तार करती है और सिखाती है कि ‘ग्रीन जॉब्स’ कैसे पाएं। मेहरा को गर्व है कि वह अब तक 2.5 लाख बच्चों को इस मुहिम से जोड़ चुके हैं।
ऐसे ही लखनऊ में लोग जैसे अपर पुलिस उपायुक्त चिरंजीव नाथ सिन्हा, रितु राज रस्तोगी, राजेश चौरसिया, राम गोयल व तनुश्री ने पक्षियों व बाकी पशुओं के प्रति जागरूकता लाने के लिए लोकल नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान को 51 हजार रु. दान करके नई पहल शुरू की है।
ये दान बाकी संस्थाओं या स्कूल्स को आकृष्ट करने के लिए है, जो बच्चों को उद्यान लाना चाहते हैं पर एंट्री टिकट के पैसे नहीं हैं। इससे वे बच्चों की टिकट ले सकते हैं। इसने कई अन्य लोगों को भी उद्यान के लिए दान करने को प्रेरित किया है ताकि बच्चों को चिड़ियाघर (ज़ू) में जाने के लिए कुछ भी पैसे न देने पड़ें।
इसके अलावा इस ग्रुप ने 10 प्राम (छोटे बच्चों की गाड़ी) भी दान की हैं, ताकि इस बड़े-से ज़ू में बच्चों को हाथों में लिए-लिए मांएं थक न जाएं। ऐसे ही कई दिव्यांग बच्चे भी ऐसी जगहें घूमना चाहते हैं, इस ग्रुप ने उनके लिए पैसे जुटाकर 10 व्हील चेयर भी दान की हैं।
इसका मुफ्त लाभ न सिर्फ दिव्यांग बच्चे बल्कि बुजुर्ग भी उठा सकते हैं, जो पोते-पोतियों को सैर के लिए यहां ले जा सकते हैं। यह अप्रत्यक्ष रूप से धरती पर मौजूद हर प्रजाति के प्रति रुचि बढ़ाएगा और बच्चों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाएगा। प्राम और व्हीलचेयर्स ज़ू के लिए यकीनन नई चीज है।
…अगर हम वाकई पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील धरती चाहते हैं, जहां ईश्वर की रची सारी प्रजातियों को जीने-पनपने के लिए जगह मिले और चाहते हैं कि धरती हरी-भरी बने तो अगली पीढ़ी को बचपन से ही सिखाना इस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है।