आरोप-प्रत्यारोप नहीं, आत्ममंथन करें नेता
हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा…
देश में लंबे समय से विपक्षी दलों के खिलाफ मामले राजनीतिक कारणों से दर्ज होने के आरोप लगते रहे हैं। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले बढ़ रहे हैं। अदालत का मानना है कि नेता भी देश का नागरिक होता है और नागरिकों के लिए अलग-अलग कानून नहीं हो सकते। वैसे तो राजनीति और भ्रष्टाचार का साथ चोली-दामन का रहा है। लालू प्रसाद यादव, ओम प्रकाश चौटाला, ए.आर. अंतुले, सुखराम, जयललिता, मायावती, ए. राजा, पी. चिदंबरम, बीएस येडियुरप्पा, बंगारू लक्ष्मण सरीखे अनेक नेता भ्रष्टाचार के अरोपों में फंस चुके हैं। इन नेताओं के खिलाफ जब मामले दर्ज हुए, तब अलग-अलग दलों की सरकारें थीं। सबके खिलाफ पहले आरोप तय हुए, फिर जांच हुई और फिर अदालत में सुनवाई हुई। विपक्ष को बेशक सरकारों पर भरोसा न हो, लेकिन देश की अदालतों पर तो उन्हें भरोसा होना ही चाहिए। अदालत सबूतों के आधार पर फैसला सुनाती है, न कि राजनीतिक दबाव में। लालू यादव और ओम प्रकाश चौटाला को अदालत ने जब सजा सुनाई, तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। राजनीति में कालेधन के इस्तेमाल की समस्या चिंताजनक है। महंगी होती चुनाव प्रक्रिया में आम आदमी तो चुनाव लड़ने के बारे में सोच ही नहीं सकता। चिंताजनक बात यह भी है कि बेहिसाब चुनाव खर्च का बंदोबस्त करने के लिए ही भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है।
जहां भ्रष्टाचार होता है, वहीं सीबीआइ-ईडी की एंट्री होती है। राजनेता आरोप भले ही किसी पर भी लगाएं, लेकिन हकीकत से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि पद पर पहुंचते ही नेता कहां से कहां पहुंच जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है, उस पर सिर्फ विपक्षी नेताओं को ही नहीं, सत्ता पक्ष के नेताओं को भी आत्ममंथन करना चाहिए, क्योंकि आज जो सत्ता में हैं, कल वे विपक्ष में भी हो सकते हैं और जो विपक्ष में हैं वे सत्ता में।