अंत में पैरेंट्स व स्टूडेंट्स को निर्णय करना होगा कि उन्हें किस दिशा में जाना चाहिए

पांच साल के अंतराल के बाद ‘गर्मी की छुट्‌टी’, मुम्बई द्वारा एक तीन दिवसीय समारोह का आयोजन किया जा रहा है, जो शुक्रवार से रविवार तक चलेगा। यह कुछ वैसा ही होगा, जैसे कॉर्पोरेट्स के लिए लम्बा वीकएंड होता है। लेकिन मैं सोच रहा था कि ‘गर्मी की छुट्‌टी’ भी किसी समारोह की तरह हो सकती है?

क्योंकि हमारे समय में ‘गर्मी की छुट्‌टी’ कभी भी तीन दिन का उत्सव नहीं हुआ करती थी। वह तो तकरीबन तीन महीने का उत्सव था। उस जमाने में नाना-नानी के यहां जाना बहुत सारे क्रैश कोर्स करने की तरह था। मेरी छुटि्टयों की शुरुआत तमिलनाडु के कुम्बकोणम् में कावेरी नदी में खेलते-कूदते हुई थी।

मेरे सभी मामा मेरे साथ होते थे और मुझ पर नजर बनाए रखते थे। रेत के साथ खेलते हुए मैं धीरे-धीरे उसमें कुछ आकृतियां बनाना सीख गया था। दो साल तक मैं बहती नदी में तैरता रहा। तब मैं सात साल का भी नहीं हुआ था और यह मेरे द्वारा सीखी गई पहली स्किल थी। मेरा पूरा दिन पेड़ों से आम तोड़ने की कोशिशों में बीतता था। मेरी दूसरी स्किल थी टारगेट पर निशाना साधना।

25 फीट ऊंचाई पर स्थित आमों को पाने के लिए हम घंटों तक अपने मैकेनिकल विचारों की आजमाइश कर लिया करते थे। लंच के बाद हम इमली के बीजों के साथ घरेलू खेल खेलते थे, जो कि उन दिनों में सबसे सस्ते मार्बल्स हुआ करते थे। मेरे दोस्त हमेशा ही बहुत सारे शहरों में हुआ करते थे और आज भी हैं, क्योंकि हमारी ‘गर्मी की छुट्‌टी’ अनेक शहरों में मनती थी।

कुछ सालों बाद हमारे एक दूर के रिश्तेदार अपने साथ कैरम और चेसबोर्ड लेकर आए और मैं उनका दीवाना हो गया था। नानी ने मेरे लिए वो दोनों गेम्स सीखे और मुझे बहुत धैर्य के साथ उन्हें सिखाया। मुझे जीत की खुशी देने के लिए वे जान-बूझकर मुझसे खेल में हार जाया करती थीं।

जीतने की उस खुशी के कारण ही मैं शतरंज में बहुत समय तक डूबा रहता था, जिससे मैंने अपने जीवन में कई सबक सीखे। नागपुर में 13 साल की उम्र में मैंने अपना पहला स्पोर्ट्स कप पाया, जो कि एक इंटर-स्कूल कॉम्पीटिशन में जीता गया था। यह 60 और 70 का दशक था।

अब हम 2023 में हैं। स्कूलों और कॉलेजों- जिन्हें सामान्यतया इंटेग्रेटेड बैचेस कहा जाता है- के कोचिंग क्लासेस से टाई-अप होते हैं और वे बच्चों को उन सामाजिक सम्बंधों और पाठ्यक्रम से इतर गतिविधियों से वंचित कर रहे हैं, जो परम्परागत स्कूलों और संयुक्त परिवारों का अहम हिस्सा हुआ करते थे।

आज बच्चों को अपने साथियों से संवाद करने का अवसर नहीं मिलता और वे अपने पर्यावरण से भी कुछ सीख नहीं पाते। मुझे नहीं पता आज के पैरेंट्स अपने बच्चों को सफल बनाने के लिए उन्हें एक ऐसी स्थिति में क्यों धकेल रहे हैं, जिनमें ‘गर्मी की छुट्‌टी’ में कोई खेलकूद नहीं है, जबकि बच्चों में एकाग्रता विकसित करने और उनके दिमाग को तरोताजा बनाए रखने के लिए यह बहुत जरूरी है।

मेरे पैरेंट्स का मानना था कि शिक्षा केवल कक्षाओं और अंकों के बारे में नहीं होती। उसे बच्चों में अनेक स्किल्स का विकास भी करना चाहिए। समय आ गया है कि हम यह समझें कि मिलना-जुलना, कला और खेलकूद एक बच्चे के विकास का अहम हिस्सा होते हैं।

……अंत में पैरेंट्स व स्टूडेंट्स को निर्णय करना होगा कि उन्हें किस दिशा में जाना चाहिए। सामाजिक स्किल्स सीखने के लिए ‘गर्मी की छुट्‌टी’ का उपयोग करना कोचिंग क्लासेस जॉइन करके किसी कॉर्पोरेट चूहादौड़ में शामिल होने से बेहतर है। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो ‘गर्मी की छुट्‌टी’ आने वाले समय में केवल एक दिन का उत्सव बनकर रह जाएगी!

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