मां एक शब्द नहीं, जिम्मेदारी का भाव है …?
ग्वालियर। मां एक शब्द नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का भाव है, जिसके तले पूरा परिवार फलता-फूलता है। यह जिम्मेदारी तब और बड़ी हो जाती है जब उस मां का हमसफर अल्पकाल में ही अलविदा कह जाता है। आज मदर्स डे पर ऐसी दो हस्तियों से परिचय करा रहे हैं, जिन्होंने दुर्भाग्यवश विपरीत परिस्थितियां निर्मित होने पर न केवल जिम्मेदारी को बढ़चढ़कर निभाया, बल्कि अपने बच्चों को कभी भी उनके पिता की गैर-मौजूदगी का अहसास नहीं होने दिया। आज उनके बच्चे डाक्टर व बड़े व्यापारी बनकर इस समाज में अपना अलग मुकाम हासिल कर रहे हैं।
स्वास्थ्य प्रबंधन संस्थान के ट्रेनिंग सेंटर में पदस्थ डा. सरिता सिंघल के जीवन में उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, जब वर्ष 2010 में उनके पति डा. प्रदीप सिंघल की हृदयघात से मृत्यु हो गई। वह बताती हैं- ऐसा लगा मानो दुनिया ही उजड़ गई। आंखों के सामने अंधकार छाया हुआ था, कुछ समझ नहीं आ रहा था। कई बार तो सोचा कि अब जीकर क्या करें, लेकिन तभी मेरे दोनों बच्चे मेरे गले से लिपटकर रो पड़े। उनकी आवाज मेरे कानों तक पहुंची तो लगा कि मेरी दुनिया बची हो या नहीं, पर में बच्चों की दुनिया तो बनकर रह सकती हूं। मेरे स्वजन और शुभचिंतकों ने मुझे हौसला और दिलासा दिया। काफी महीनों बाद में घर से निकली और आफिस आना शुरू किया, बच्चों को भी स्कूल भेजा। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बेहतर हो इसके लिए हर संभव प्रयास किए। आज मेरी बेटी ने एमटेक कर लिया और उसका विवाह हो चुका, जबकि बेटे ने एमबीबीएस की पढ़ाई कर ली है, पीजी कर रहा है। मैं डा. सिंघल की कमी तो पूरी नहीं कर सकती, पर उनकी जिम्मेदारी को अच्छे निभा दूं यही मेरे लिए काफी है।
खाकी के साथ मां का फर्ज निभाया
पुलिस की नौकरी, जिसमें जाने का समय निर्धारित है, ड्यूटी से कब लौटेंगे यह पता नहीं। इस बीच खाकी के साथ मां का भी फर्ज बखूबी निभाती हैं यातायात थाना प्रभारी सोनम पाराशर। तीन साल का बेटा, सुबह उसे स्कूल भेज देती हैं। स्कूल के लिए खुद ही लंच बनाती हैं, उसे स्कूल भेजने के बाद खुद ड्यूटी जाती हैं। जब उसकी स्कूल से छुट्टी होती है तो खुद लंच के लिए घर लौटती हैं। कई बार ड्यूटी के चलते घर नहीं जा पातीं, तो बेटे को साथ लाती हैं। बेटे के साथ आफिस में ही लंच करती हैं। शाम को रोज उनका बेटा, उनके साथ आफिस आता है। दिन में फील्ड वर्क और शाम को आफीशियल वर्क के साथ आफिस में बेटे को कई बार खुद पढ़ाती भी हैं। सोनम कहती हैं- बेटा अब थोड़ा समझने लगा है, बोलता भी है, लेकिन जब वह एक साल का हुआ था, तब भी वह वायरलैस सेट की आवाज सुनकर ही समझ जाता था, मां आ गई। मैं ड्यूटी से लौटती हूं तो अक्सर वायरलैस सेट की आवाज सुनकर वह अभी भी गेट की तरफ दौड़ा चला आता है।