देश में मौत के घाट क्यों उतारी जा रही बहू-बेटियां
छोटे मोटे झगड़े तो छोड़िए नाश्ते में नमक कम हो जाने पर देश में मौत के घाट क्यों उतारी जा रही बहू-बेटियां
खाने में नमक कम हैं तो पत्नी को जान से मार दिया… ऐसी खबरें आजकल आम हो गयी हैं. दुख की बात ये है कि औरतें पतियों द्वारा किए जा रहे हिंसा को जायज मानती हैं.
गुरुग्राम के सेक्टर-9 इलाके में भी खाने को लेकर दंपती के बीच शुरू हुआ विवाद इतना बढ़ गया कि बुजुर्ग ने पत्नी की गला घोंटकर हत्या कर दी. हत्या के बाद आरोपी ने थाने में जाकर आत्मसमर्पण भी कर दिया.
जून 2021 में उत्तर प्रदेश में पत्नी ने पति को खाने के साथ सलाद नहीं दिया तो पति ने गुस्से में अपनी पत्नी की हत्या कर दी. चार महीने बाद, बैंगलोर में एक व्यक्ति ने कथित तौर पर तला हुआ चिकेन ठीक से नहीं पकाने के लिए अपनी पत्नी की पीट-पीटकर हत्या कर दी.
4 महीने पहले जनवरी 2023 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले से भी दिल दहला देने वाली खबर आई. एक शख्स ने खाना पकाने को लेकर हुए विवाद में पत्नी की धारदार हथियार से गला काटकर हत्या कर दी.
भोजन को लेकर हुए झगड़े के बाद किसी पत्नी की अपने पति के हाथों हत्या भारत में लगातार सुर्खियों में रहता है. 2017 में भी एक 60 वर्षीय व्यक्ति ने देर से रात खाना परोसने के लिए अपनी पत्नी को गोली मार दी थी.
इन सभी मौतों में एक समानता ये थी कि ये सभी लिंग आधारित हिंसा के मामले हैं.
इंडियन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय महिलाओं की बड़ी संख्या इस बात को सही मानती हैं कि एक पति पत्नी को हालात के मुताबिक पीट सकता है.
यहां पर अलग-अलग राज्यों के आंकड़े देखिए…
- आंध्र प्रदेश- 84 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- तेलंगाना- 84 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- तमिलनाडु- 78 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- कर्नाटक- 77 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- मणिपुर- 66 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- नागालैंड- 24 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- पंजाब- 23 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- उत्तराखंड- 22 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- दिल्ली- 21 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
- हिमाचल प्रदेश- 15 प्रतिशत महिलाओं ने माना की पति हालात के मुताबिक अपनी पत्नी को पीट सकता है.
पुरुष पत्नियों को पीटना कितना सही मानते हैं
कर्नाटक- 82 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
तेलंगाना- 70 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
आंध्र प्रदेश- 67 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
केरला- 63 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
मणिपुर- 57 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
हरियाणा- 21 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
त्रिपुरा- 21 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
दिल्ली- 18 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
हिमाचल- 14 प्रतिशत पुरुष पत्नियों को पीटना सही मानते हैं.
*(सभी डेटा इंडियन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के हैं. )
भारत में घरेलू हिंसा लगातार साल-दर-साल बढ़ रही है. 2020 में 112,292 महिलाओं ने पुलिस में घरेलू हिंसा की शिकायतें दर्ज कराई. यानी हर पांच मिनट में लगभग एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है.
इस तरह की हिंसा सिर्फ भारत नहीं होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विश्व स्तर पर तीन में से एक महिला लिंग-आधारित हिंसा का सामना करती है. महिलाओं पर हिंसा करने वाले ज्यादातर लोग करीबी ही होते हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस 5) के आंकड़ों ने भारतीय समाज की काली सच्चाई सबके सामने ला कर रख दी है.
- 40% से ज्यादा महिलाओं और 38% पुरुषों ने एक आदमी का अपनी पत्नी को पीटना कोई गलत नहीं है. अगर
- वह अपने ससुराल वालों का अपमान करती है.
- अपने घर (सास-ससुर) या बच्चों की उपेक्षा करती है.
- पति को बिना बताए बाहर जाती है.
- सेक्स से इनकार करती है.
- ठीक से खाना नहीं बनाती है. भारत के लगभग सभी राज्यों में 77% से ज्यादा महिलाओं ने पत्नी की पिटाई को सही ठहराया.
ज्यादातर राज्यों में पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाओं ने पत्नी की पिटाई को सही ठहराया. महज कर्नाटक एक एकलौता राज्य सामने आया जहां पर पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ये मानती हैं कि एक आदमी का अपनी पत्नी को पीटना गलत है अगर वो खाना ठीक से नहीं बना पा रही है.
ऑक्सफैम इंडिया के जेंडर जस्टिस प्रोग्राम हेड अमिता पित्रे ने बीबीसी को बताया कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पितृसत्ता सोच की देन है. यही वजह है कि लिंग आधारित हिंसा को भारत में स्वीकृति दी जाती है. भारत में महिलाएं खुद को दोयम दर्जा देती हैं.
अमिता पित्रे कहती हैं “एक महिला को कैसे व्यवहार करना चाहिए, इसके बारे में निश्चित सामाजिक धारणाएं हैं. उसे हमेशा पुरुष के अधीन होना चाहिए. कोई भी निर्णय पति या परिवार वालों से पूछ कर लेना चाहिए. पति की सेवा करना ही उसके लिए धर्म है. वर्किंग है तो पति से कम कमाना चाहिए.’
उत्तर भारत के बुंदेलखंड में लंबे समय से पीड़ित महिलाओं के साथ काम कर रही कुकरेजा ने बीबीसी को बताया कि नई दुल्हनों को ये सलाह दी जाती है “आप डोली में अपने ससुराल आती हैं और आपका अंतिम संस्कार यहीं से होना चाहिए”. कुकरेजा ने एक चैरिटी संस्था वनांगना की स्थापना की है. कुकरेजा कहती हैं ‘ज्यादातर महिलाएं पिटाई खाने के बाद भी घरेलू हिंसा को अपनी किस्मत समझती हैं. वो पुलिस में इसकी रिपोर्ट नहीं करती हैं. वो इसे घर की बात समझती हैं.
कुकरेजा कहती हैं ‘भारत में पत्नियां पति से मार खाने के बाद कम ही पुलिस रिपोर्ट करती हैं. ज्यादातर लोग (महिलाएं भी) ये मानती हैं ‘घर पर जो होता है वह घर पर ही रहना चाहिए’.
1997 में वनांगना ने घरेलू हिंसा के बारे में लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए मुझे जवाब दो नामक एक नुक्कड़ नाटक शुरू किया. नाटक की पहली लाइन ये थी ‘ओह दाल में कोई नमक नहीं है’. इस नुक्कड़ नाटक के शुरू हुए 26 साल बाद भी तस्वीर जस की तस है.
लॉकडाउन में बढ़े थे महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले
पुलिस ने 2018 में घरेलू हिंसा के मामले 103,272 मामले दर्ज किए थे. भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार – 2015-16 में लगभग 33% महिलाएं शारीरिक, यौन या भावनात्मक वैवाहिक हिंसा का शिकार हुई. जिसमें से 14% महिलाओं ने इसे रोकने के लिए महिला आयोग से मदद मांगी थी.
बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा बताया कि लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के लिए एक व्हाट्सएप हेल्पलाइन लॉन्च की गई थी. 23 मार्च से 16 अप्रैल 2020 के बीच लॉकडाउन के लगभग पहले तीन हफ्तों के बीच – आयोग को घरेलू हिंसा की 239 शिकायतें मिलीं.
2020 अप्रैल की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था कि लॉकडाउन के बीच पूरी दुनिया में घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, लेबनान और मलेशिया में हेल्पलाइन पर कॉल दोगुनी हो गई, और चीन में तीन गुना हो गई.
बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट में गैर-लाभकारी संस्था स्नेहा की नयन दारूवाला कहती हैं, “भारत जैसे देश में, महिलाओं के लिए बाहर आना और रिपोर्ट करना आसान नहीं है’.
इंडिया नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2013 में 309,546 महिलाएं हिंसा का शिकार हुई. घरेलू हिंसा का शिकार होने वाली महिलाएं सबसे ज्यादा थी.
घरेलू हिंसा | छेड़छाड़ | किडनैपिंग | रेप | अन्य |
118,866 | 70,739 | 51,881 | 33,707 | 34,353 |
2003 में रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या 50,703 से बढ़कर 2013 में 118,866 हो गई है. ये 10 सालों में 134% की बढ़ोत्तरी इसी अवधि में जनसंख्या में वृद्धि प्रतिशत से ज्यादा थी.
रिपोर्टस ये भी कहती हैं कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि भारत सरकार ने 2005 में घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं की रक्षा के लिए एक नया कानून लाया और ज्यादा महिलाएं मदद मांगने के लिए सामने आ रही हैं.
घरेलू हिंसा के बारे में जानकारी और मदद के लिए हेल्प लाइन नंबर:
- पुलिस हेल्पलाइन: 1091/1291
- राष्ट्रीय महिला आयोग की व्हाट्सएप हेल्पलाइन: 72177-35372
- शक्ति शालिनी के लिए हेल्पलाइन, दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन: 10920
- स्नेहा के लिए संकट हेल्पलाइन: 98330-52684