स्वतंत्र विचार हर मनुष्य का हक, बाध्य करना ठीक नहीं
समाज: हवा और प्रकाश की तरह विचार को भी नहीं बांधा जा सकता ..
आठ अरब आबादी की दुनिया में पुरानी बातों और नई बातों को लेकर निरन्तर मत मतान्तर चलते रहते हैं। जरूरी नहीं है कि मनुष्य के दिमाग में आने वाला हर विचार समूचे मनुष्य समाज की सोच और व्यवहार को बदल डाले, वह महज खयाली पुलाव भी हो सकता है। मानव समाज और मन-मस्तिष्क में बदलाव आने में लंबा समय लगता है। हमारा रहन-सहन, सोच-विचार, घर-परिवार नए-नए विचार आने से निरंतर बदलते रहते हैं। हमारी राजनीति, धर्म, अर्थव्यवस्था और बाजार का स्वरूप भी निरन्तर बदलता जा रहा है। विचार का प्रवाह हमेशा एक जैसा नहीं होता है। हर समय विचार, सोच और व्यवहार में बदलाव आता रहता है। इसीलिए जीवन एक रस न हो निरन्तर सरस बना रहता है।
जब दो मनुष्य एक जैसे खयालात वाले होते हैं, तो उनमें वैचारिक संबंध विकसित हो जाते हैं। विपरीत विचार रखने वाले मनुष्य और समूह में भी आपस में संबंध होते हैं, पर मत भिन्नता का भाव सदैव बना रहता है। कुछ मनुष्यों के स्वतंत्र विचारों की पहचान होती है। ऐसे मनुष्य विचारधाराओं के हिमायती नहीं होते हैं। उनका दर्शन विचार आधारित है, पर विचार विशेष या विचारधाराओं से वे नहीं बंधे होते। वैसे देखा जाए तो दुनिया में जितने मनुष्य हैं, उतने भिन्न विचार मौजूद हैं। एक जैसे दो मनुष्य संभव नहीं हैं, वैसे ही एक जैसे विचार वाले दो मनुष्य भी संभव नहीं हैं। शायद इसीलिए स्वतंत्र विचार से ज्यादा संगठित विचार चर्चा में रहता है।
संगठित विचार, मनुष्य समाज को भेड़-बकरी की तरह से हांकने में ज्यादा भरोसा करता है। इसीलिए स्वतंत्र विचार से कोई सहमत होता है या असहमत होता है, पर संगठित विचार से सहमत मनुष्य को असहमत होने का कोई विकल्प ही मौजूद नहीं है। संगठित समूह के सरगना आपको संगठन विरोधी निरूपित कर संगठन से निष्कासित कर अपने आप को स्वतंत्र विचार विरोधी सिद्ध करते रहते हैं। स्वतंत्र विचार में निष्कासित किए जाने का कोई विकल्प ही नहीं है, वह हवा प्रकाश की तरह स्वतंत्र और सर्वव्यापी है। आपके स्वतंत्र विचार से क्रांति और भ्रांति दोनों संभव है, फिर भी संगठित विचार जैसा निष्कासन संभव नहीं है। संगठित विचार आपको प्रताड़ित, भयभीत और दुनिया से विदा भी कर सकता है। फिर भी मनुष्य की स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को भय, प्रलोभन, संगठित समूह या राज्य, समाज और धार्मिक समूह रोक नहीं सकता। स्वतंत्र और नित नए विचारों का अंतहीन सिलसिला प्रकृति का मनुष्य को दिया गया कालजयी उपहार है, जिसे कोई मनुष्य या मनुष्य निर्मित कोई संगठन, समूह या संस्थान कभी रोक नहीं सकता। जब तक दुनिया में मनुष्य का अस्तित्व है, तब तक नए विचार और विचार प्रवाह को मनुष्यकृत समूह रोक नहीं सकता। जैसे हवा और प्रकाश को नहीं बांधा जा सकता, वैसे ही मनुष्य समाज में विचार प्रवाह को नहीं रोका जा सकता।
इस दुनिया में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक मनुष्य की कहानी खयालात में बदलाव से हालात बदलने की अंतहीन कहानी है। खयालात से हालात बदलते ही रहेंगे, यह हमारी दुनिया या जिंदगी का सत्य है। हमारे खयालातों से ही पुरातनकाल से आधुनिक काल तक हालात में बुनियादी बदलाव आया है। हालात बदलने से खयालात भी बदलते हैं और खयालात बदलने से हालात बदलते रहते हैं। खयालात और हालात की अंतहीन जुगलबंदी के बाद भी कई मनुष्यों, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक समूहों को यह लगता है कि उनके विचार ही अंतिम विचार हैं और मनुष्य को नए विचार को आत्मसात करने से बचना चाहिए। यह ठीक नहीं है। भय, लोभ, लालच, संगठन और सत्ता के बल पर कोई संगठित विचार लादा नहीं जा सकता। प्रकृति हमें सारे बदलावों में जीने का अवसर और शिक्षण देती है। साथ ही अपने हालात को बदलने के लिए नए खयालातों के साथ निरंतर जीवंत दिमाग से जीते रहने का आजीवन अवसर भी उपलब्ध कराती है।