भोपाल राजधानी के अशोक नगर पुल बोगदा में करीब 50 करोड़ रुपये की जमीन पर अवैध अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। जबकि लैंड रिकार्ड में यह भूमि नजूल के नाम पर दर्ज है। लेकिन हैरत कि बात है कि नगर निगम और जिला प्रशासन के अधिकारियों को इसकी जानकारी होने के बावजूद भवन निर्माण की अनुमतियां जारी की जा रही है। बीते आठ वर्षों में सात एसडीएम और छह तहसीलदार बदलने के बाद भी अब तक इस जमीन से कब्जा हटाने में अधिकारी टालमटोल कर रहे हैं। बिना एनओसी और वैध दस्तावेज के भवन निर्माण की अनुमति जारी की जा रही है।

बता दें कि पुल बोगदा स्थित अशोक नगर कालोनी में खसरा क्रमांक 880, 881, 882, 883, 885 और 875 सरकारी रिकार्ड में 1995 से लेकर अब तक राजस्व विभाग के नाम पर दर्ज है। इस पूरी जमीन का कुल रकबा 0.279 हेक्टेयर है। लेकिन यह जानकारी होने के बावजूद वर्ष 2004 में भवन अनुज्ञा शाखा के तत्कालीन सहायक यंत्री और उपयंत्री ने अनुमतियां जारी कर दी। यही नहीं निगम अधिकारियों ने जमीन के खरीददारों से समझौता कर, मास्टर प्लान 2005 का उलंघन करते हुए दो बार लैंड यूज बदलकर दो बार व्यावसायिक भवन की अनुज्ञा जारी की। जबकि आज दिनांक तक खसरा न 885 की जमीन नजूल विभाग के स्वामित्व में है, जिसकी अनुमानित मूल्य करीब 50 करोड रूपए है।

गलत जानकारी देकर बंद कराया लोकायुक्त में प्रकरण

पन्ना लाल शाक्या व अन्य लोगों के पास जमीन के जो अधिकार पत्र हैं, उनमें लक्ष्मी गल्ला मंडी से अशोक नगर कालोनी में विस्थापित किए जाने का जिक्र है, जबकि आरटीआई के तहत मिली जानकारी में विस्थापन का कोई जिक्र नही है। नजूल ने नगर निगम की भूमि पर खड़े बहुमंजिला भवन को रिक्त प्लाट दर्शा कर शासकीय भूमि पर एनओसी जारी कर दी। वहीं वर्ष 2014 में नजूल द्वारा निगम के रिकार्ड में वर्ष 1986 एवं 2012 में क्रेता पन्ना लाल शाक्या को वर्ष 1955 में विस्थापित करके वर्ष 1959 में भूमि स्वामी बना दिया गया, जबकि उस समय पन्ना लाल की उम्र मात्र 3 वर्ष थी। घोटाले को बचाने के लिए नजूल और नगर निगम ने गलत जानकारी भेजकर लोकायुक्त में चल रहे जांच प्रकरण को भी वर्ष 2013 में बंद करवा दिया।

कोर्ट के आदेश के बाद भी भूमि की नहीं हो सकी जांच

स्वर्गीय ओमप्रकाश कुशवाहा ने आरटीआइ से मिली जानकारी को आधार मानकर हाईकोर्ट में अक्टूबर 2015 में जमीन की जांच के लिए रिट याचिका दायर की, जिसमें कोर्ट ने नगर निगम व नजूल द्वारा जमीन की संयुक्त जांच कर तीन महीने में हाईकोर्ट को रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद आठ वर्ष का समय बीतने के बाद भी शासन की जांच पूरी नहीं हुई। हालांकि निशांत वरबड़े ने भोपाल कलेक्टर रहते हुए जमीन का सीमांकन कराया था। इसके बाद कलेक्टर मिलिंद ढोके ने तीन वर्ष पहले सरकारी भूमि पर किए गए निर्माण को तोड़ने के निर्देश दिए थे। लेकिन उनके हटते ही कार्रवाई फिर ठंडे बस्ते में डाल दी गई।

अवैध निर्माण पर रोक नहीं लगा पा रहे जिम्मेदार

रायसेन रोड में बोगदा पुल के पास दोनों ओर की पट्टी सरकारी है। इसकी जानकारी भवन अनुज्ञा शाखा और नजूल के अधिकारियों को भी है। इसके बावजूद यहां नियमों को ताक में रखकर बिना जमीन की एनओसी देखे भवन अनुज्ञा की अनुमति जारी की जा रही है। वहीं आवासीय क्षेत्र में धड़ल्ले से बहुमंजिला इमारतों का निर्माण हो रहा है। खसरा नंबर 885 में चार मंजिला व्यवसायिक काम्प्लेक्स का निर्माण किया गया है। जबकि इस जमीन पर भवन निर्माण की अनुमति देने पर प्रतिबंध है। इस मामले में जब भवन अनुज्ञा शाखा में जोन क्रमांक 10 के सहायक यंत्री लालजी सिंह चौहान से बात करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।

इनका कहना है

मेट्रो रेल कार्पोरेशन को बोगदा पुल से ऐशबाग और सिंधी कालोनी से करोंद तक कारिडोर निर्माण की अनुमति दे दी है। अब कार्य के दौरान जहां भी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण आएंगे। स्थानीय एसडीएम और नगर निगम के अधिकारी समन्वय बनाकर उनको हटाने की कार्रवाई करेंगे।

– आशीष सिंह, कलेक्टर

बोगदा पुल के पास सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण की जानकारी नहीं है। अधिकारियों से पता करने के बाद बता पाएंगे। यदि शिकायत सही है, तो भूमि का स्थल निरीक्षण करने के बाद अवैध निर्माण चिंहित किए जाएंगे। इनके पास वैध दस्तावेज नहीं होने पर कार्रवाई होगी।

– नीरज आनंद लिखार, सिटी प्लानर