कुपोषण में खत्म हो रही आदिवासी बच्चों की जिंदगी ..!

लचर सरकारी तंत्र की वजह से मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में नौनिहालों की जिंदगी कुपोषण की चपेट में है।

म ध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में नौनिहालों की जिंदगी कुपोषण की चपेट में है। निगरानी, पोषण आहार आवंटन में लेटलतीफी, गुणवत्ता की कमी और मैदानी अमले की लापरवाही की वजह से गांव-गांव कुपोषण के मामले बढ़ रहे हैं। एक पखवाड़ा पहले शहडोल में एक अतिकुपोषित बालिका की मौत ने लचर सरकारी सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बालिका पूरे 8 माह तक कुपोषण से जंग लड़ती रही लेकिन सरकारी रिकार्ड में चिन्हित नहीं थी। सिर्फ ढाई किलो वजन था। मांस हड्डियों से चिपक गया था। छूने से शरीर से खून बहने लगता था। संभाग में पूर्व में भी कुपोषण और एनीमिया से बच्चे दम तोड़ चुके हैं। बावजूद इसके जिम्मेदारों के माथे पर चिंता की लकीरें नहीं हैं। 12 जुलाई को जिला अस्पताल में बाल संरक्षण आयोग की टीम के दौरे में भी मैदानी अमले की लापरवाही सामने आई। 20 बिस्तर के पोषण पुनर्वास केन्द्र में सिर्फ 4 कुपोषित बच्चे भर्ती थे। यह स्थिति पूरे प्रदेश की है। प्रदेश में 75 हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं। इसमें 20 हजार से ज्यादा अतिकुपोषित बच्चे शामिल हैं। समाज, सरकार और अफसरों सभी बौने साबित हो रहे हैं। स्थिति यह है कि गर्भ में बच्चों का सिर नहीं बन पा रहा है। बच्चे अपंग पैदा हो रहे हैं। 90 प्रतिशत आदिवासी महिलाएं गर्भकाल में ही एनीमिक हो जा रही हैं। ये स्थिति तब है, जब मध्यप्रदेश सबसे ज्यादा भोजन उत्पादन करने वाले राज्यों में शामिल है। शासन व्यवस्था बच्चों के प्रति जवाबदेह और संवेदनशील नहीं है। कहीं आधा अधूरा पोषण आहार पहुंचता है तो कहीं खाद्यान्न में कटौती कर ली जाती है। आंगनबाड़ी केन्द्रों में दूध, लड्डू और चना देने का भी प्रयास शुरू किया गया था लेकिन ये सब गायब हैं। ऐसे में बच्चों के लिए मूल अधिकार तो दूर-दूर तक नहीं हैं। कुपोषण के खिलाफ जंग में सरकार, अफसर, एनजीओ सभी को सामूहिक जिम्मेदारी समझनी होगी तभी इस कलंक को खत्म कर सकेंगे। सामूहिक जिम्मेदारी समझने के अलावा एक सुव्यवस्थित तंत्र भी विकसित करना होगा, जिसमें कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चे की त्वरित पहचान के साथ ही उसे इस दंश से बाहर निकालने के जतन भी उसी समय शुरू हो सकें। इससे पहले उन महिलाओं की पहचान भी करनी होगी जिनमें खून की कमी है। गर्भावस्था के दौरान उसे समुचित आहार मिले, यह भी सुनिश्चित करना जरूरी होगा।

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