घर की चार दीवारी में चल रहे निजी स्कूलों में सुविधाएं नहीं
मनमानी…शासन के नियमों का नहीं किया जा रहा पालन …
खेल मैदान, न बैठक व्यवस्था, फिर भी चल रहे स्कूल
निजी स्कूल संचालकों द्वारा स्कूलों में विद्यार्थियों को सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रहीं। चिन्हित दुकानों पर ही स्कूल की डे्रस व स्टेशनरी व किताबें सहित अन्य सामग्री रखवा दी जाती और उन्हें मनमाने दाम पर बेची जा रही है। कई स्कूल पुरानी और क्षतिग्रस्त भवनों में तो कई स्कूल दो-तीन कमरों में संचालित हो रहे हैं।
खेल मैदान का अभाव
कई निजी स्कूल में बच्चों को खेलने के लिए खेल मैदान भी नहीं है। इन स्कूलों में शिक्षकों की योग्यता पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसका परिणाम परीक्षा फल पर पड़ता है। नागरिकों का कहना है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा निजी स्कूलों का निरीक्षण नहीं किया जाता। कार्यालय में बैठकर कागजी खानापूर्ति कर मान्यता दे दी जाती है। नियम एवं कानून के मुताबिक कोई भी निजी संगठन स्कूल नही ंखोल सकता । इसलिए विद्यालय किसी सोसायटी या ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जा सकते हैं। यदि कोई संस्था निजी स्कूल स्थापित करना चाहती है, तो कपंनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के अनुसार कंपनी स्थापित करसकती है।
समीपस्थ ग्राम लुन्हेरा बुजुर्ग में निजी स्कूल मनमाने तरीके से संचालित हो रही है। गली-मोहल्ले कही भी घरों की चार दीवारी में स्कूलों का संचालन हो रहा है। जबकि स्कूलों के संचालन के शासन के अपने नियम है,पर इसका पालन होता नहीं हो रहा।
स्कूल में यह सुविधाएं होनी चाहिए
अच्छे स्वास्थ्य और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों में उचित स्वच्छता आवश्यकताएं है। शौचालय साफ.-सुथरा व्यवस्थित होना चाहिए और साबुन, पानी और टॉयलेट पेपर जैसी बुनियादी सुविधाओं से सुसज्जित होने चाहिए । बालक और बालिकाओं के लिए अलग-अलग प्रसाधन होने चाहिए।