डॉक्टर्स और हेल्थ केयर कंपनियों की मिलीभगत ..!
डॉक्टर्स और हेल्थ केयर कंपनियों की मिलीभगत:गैरजरूरी इलाज में बढ़ोतरी, कोर्ट केस भी बढ़ रह
- मुनाफे के लिए कंपनियों ने डॉक्टर्स, क्लीनिकों के साथ कॉटेज इंडस्ट्री बनाई
केटी हन्ना का पांव 2020 में काटना पड़ा था। स्वयं को लेग सेवर कहने वाले मिशिगन, अमेरिका के एक डॉक्टर ने प्लाक को साफ करने के लिए धातु के तार डालकर उनकी रक्त शिराओं को क्षतिग्रस्त कर दिया था। डॉ. मुस्तफा ने 18 माह तक हन्ना के पैर में आर्टरी खोलने का इलाज किया।
उन्हें बताया जाता था कि इससे पांव में रक्त प्रवाह सुधरेगा और पैर काटने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। मिसेज हन्ना की जान बचाने के लिए उनका पैर काटना पड़ा। उनके अलावा ऐसे कई मरीजों को अपना पांव गंवाना पड़ा है। नजदीकी अस्पतालों के सर्जनों ने डॉ. मुस्तफा के मरीजों के संबंध में मिशिगन मेडिकल बोर्ड से डॉक्टर की शिकायत की है। उनके खिलाफ जांच चल रही है। एक इंश्योरेंस कंपनी ने राज्य के अधिकारियों को बताया कि पिछले चार वर्ष में उक्त डॉक्टर के क्लीनिकों में इलाज (आर्टरी की सफाई की प्रोसीजर) के बाद 45 लोगों को अपने पैर गंवाना पड़े हैं।
डॉ. मुस्तफा चोरी छिपे यह काम नहीं कर रहे हैं। वे मेडिकल डिवाइस निर्माताओं की मदद से लाखों अमेरिकियों का जोखिम भरा इलाज करने की कॉटेज इंडस्ट्री के अगुआ हैं। बड़ी संख्या में डॉक्टर यह प्रोसीजर करते हैं। इन मेडिकल प्रक्रियाओं से डॉक्टर और डिवाइस कंपनियां तो अपार दौलत कमा रही हैं लेकिन मरीजों को अपने पैर खोना पड़े हैं। हेल्थ कंपनियों और डॉक्टरों की सांठगांठ से चल रही इंडस्ट्री के निशाने पर पेरिफेरल आर्टरीज डिसीज से पीड़ित एक करोड़ बीस लाख अमेरिकी हैं। इस बीमारी में पैर की रक्त शिराओं में फैट, कैल्शियम जमा हो जाता है। लंबी मेडिकल रिसर्च से पता लगा है कि पेरिफेरल आर्टरी डिसीज के शिकार अधिकतर मरीजों को एक्सरसाइज और दवाइयों के अतिरिक्त किसी अन्य इलाज की जरूरत नहीं रहती है। कुछ डॉक्टर प्लाक को आर्टरीज के किनारे करने के लिए मेटल स्टेंट्स या नायलॉन बैलून डालते हैं। कुछ डॉक्टर एथीरेक्टोमीज प्रक्रिया करते हैं। इसके तहत सूक्ष्म ब्लेड लगे वायर या लेसर को आर्टरीज के भीतर डालकर प्लाक हटाते हैं।
मेडिकल रिसर्च के अनुसार पेरिफेरल आर्टरी डिसीज से पीड़ित मरीज यदि प्रोसीजर कराते हैं तो उनका पैर काटने की आशंका अधिक रहती है। अमेरिका मेंं एथीरेक्टोमीज का इस्तेमाल पिछले दशक में तेजी से बढ़ा है। इसके दो कारण हैं। पहला-सरकार मेडिकेयर के तहत डॉक्टरों को एथीरेक्टोमीज प्रोसीजर के लिए पैसा देती है।
इस कारण बहुत डॉक्टरों ने अपनी स्वयं की आउटपेशेंट क्लीनिक खोल ली हैं। एक एथीरेक्टोमीज प्रोसीजर के आठ लाख रुपए या उससे ज्यादा लिए जाते हैं। दूसरा-आर्टरी की सफाई करने वाली प्रोसीजर के उपकरण बनाने वाली कंपनियों ने इस क्षेत्र में बहुत पैसा लगाकर एक बड़ा बाजार तैयार कर दिया है।
दस साल पहले पेरिफेरल आर्टरीज डिसीज के क्लीनिक लगभग नहीं थे। आज इनकी संख्या 800 से अधिक है। 2017 से 2021 के बीच सरकारी मेडिकेयर से एथीरेक्टोमी के लिए 11 हजार करोड़ रुपए से अधिक पेमेंट हुआ है। इसमें से आधा पैसा 200 बड़े डॉक्टरों को मिला है। प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियों का पेमेंट इससे कई गुना ज्यादा है।
गैरजरूरी प्रोसीजर के लिए कुछ डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। जस्टिस डिपार्टमेंट ने डॉ. मेकगकिन पर पेरिफेरल आर्टरी डिसीज के मरीजों पर 500 से अधिक गैरजरूरी प्रोसीजर करने के लिए मुकदमा दायर किया है।
बड़ी कंपनियां डॉक्टर्स को ट्रेनिंग और सुविधाएं देती हैं
डॉक्टर जब अपनी वेस्कुलर क्लीनिक्स खोलते हैं तो एबॉट लेबोरेटरीज, बोस्टन साइंटिफिक जैसी बड़ी कंपनियां उन्हें ट्रेनिंग देती हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी फिलिप्स क्लीनिक के लिए जरूरी डिवाइस खरीदने के लिए लोन देती है।
डिवाइस इंडस्ट्री बड़े डॉक्टरों को कंसल्टिंग और टीचिंग के मौके उपलब्ध कराती है। मेडिकल काफ्रेंस और अकादमिक जर्नलों को स्पॉन्सर करती है। इस पर हर साल 16 हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च होते हैं। डॉक्टर को हर प्रोसीजर का पैसा इंश्योरेंस कंपनी से मिलता है। हर प्रोसीजर के लिए डिवाइस और अन्य सामान की जरूरत पड़ती है तो इससे कंपनियों को फायदा होता है।