लोकसभा-राज्यसभा से निलंबन के नियम क्या?
लोकसभा-राज्यसभा से निलंबन के नियम क्या? जानें क्यों UPA सरकार में कांग्रेसी ही हो गए थे सस्पेंड
राज्यसभा में सोमवार को आप सांसद संजय सिंह को उनके ‘बुरे व्यवहार’ के लिए सभापति ने मानसून सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया। दरअसल, नियम 256 (राज्यसभा) सदस्यों के निलंबन का प्रावधान करता है। सभापति किसी सांसद को सत्र के शेष समय से अधिक की अवधि के लिए संसद से निलंबित कर सकते हैं।
20 जुलाई से शुरू हुआ संसद का मानसून सत्र हर दिन हंगामे की भेंट चढ़ रहा है। इसी क्रम में सोमवार को राज्यसभा में कई विपक्षी सांसदों ने मणिपुर मुद्दे पर केंद्र के जवाब के दौरान हंगामा किया। कार्यवाही बाधित होते देख सभापति ने आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह को पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया।
संजय सिंह के निलंबन के विरोध में कई सांसद अब धरने पर भी बैठ गए हैं। इस बीच हमें जानना जरूरी है कि
राज्यसभा में सोमवार को मणिपुर मुद्दे पर सदन में विपक्ष के विरोध के दौरान आप सांसद संजय सिंह को उनके बुरे व्यवहार के लिए मानसून सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया। सदन के नेता पीयूष गोयल ने उन्हें निलंबित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सदन ने स्वीकार कर लिया।
प्रस्ताव पेश होने से पहले राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सिंह को उनके बुरे व्यवहार के लिए चेतावनी दी थी। वे राज्यसभा में दूसरे विपक्षी दलों के साथ मणिपुर मुद्दे को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे।
निलंबित होने के बाद संजय सिंह ने कहा कि वह अपना विरोध जारी रखेंगे क्योंकि सरकार मणिपुर मामले पर बोलने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री संसद में मणिपुर में हिंसा पर क्यों नहीं बोल रहे हैं? प्रधानमंत्री संसद में इस पर बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। सरकार इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं है। मैं इस मुद्दे पर अपना विरोध जारी रखूंगा।’
दरअसल, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं। इनकी सदन में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है ताकि इसका संचालन सुचारू रूप से चल सके। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कार्यवाही उचित तरीके से चले, अध्यक्ष या सभापति के पास किसी सदस्य को सदन छोड़ने का आदेश देने का अधिकार भी है।
नियम 373: इस नियम के मुताबिक, अध्यक्ष के पास यह अधिकार है कि यदि कोई सदस्य बुरा व्यवहार करता है तो वह उसे तुरंत सदन छोड़ने के लिए कह सकता है। जिन सदस्यों को जाने का आदेश दिया गया है उन्हें तुरंत चले जाना चाहिए और बाकी बैठक के लिए वापस नहीं आना चाहिए।
नियम 374: इसके तहत, अध्यक्ष ऐसे सदस्य का नाम ले सकता है जो अध्यक्ष के आदेश की अवज्ञा करते हुए या अनुचित तरीके से कार्य करते हुए लगातार और जानबूझकर सदन की कार्यवाही में बाधा डालता है। इस नियम के अनुसार जिस सदस्य को निलंबित किया गया है उसे तुरंत सदन छोड़ देना चाहिए।
नियम 374ए: इस नियम को दिसंबर 2001 में नियम पुस्तिका में शामिल किया गया था। घोर उल्लंघन या गंभीर आरोप के मामले में, अध्यक्ष द्वारा नामित किए जाने पर सदस्य को तुरंत और खुद से लगातार पांच बैठकों या सत्र की अवधि, जो भी कम हो, के लिए सदन की सेवा से निलंबित कर दिया जाता है।
नियम 255 (राज्यसभा): सदन का पीठासीन अधिकारी राज्यसभा की प्रक्रिया के सामान्य नियमों के नियम 255 के तहत संसद सदस्य का निलंबन लागू कर सकता है।
नियम 256 (राज्यसभा ): यह सदस्यों के निलंबन का प्रावधान करता है। सभापति किसी सांसद को सत्र के शेष समय से अधिक की अवधि के लिए संसद से निलंबित कर सकते हैं।
दरअसल, निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिए होती है। जो सदस्य निलंबित हैं, वे चैंबर में प्रवेश करने या समिति की बैठकों में भाग नहीं ले सकते हैं। वह चर्चा या प्रस्तुतिकरण के लिए नोटिस नहीं दे सकते। इसके अलावा सदस्य अपने सवालों का जवाब पाने का अधिकार खो देता है।
निलंबन खत्म कैसे होता है?
हालांकि, अध्यक्ष को किसी सदस्य को निलंबित करने का अधिकार है, लेकिन इस आदेश को रद्द करने का अधिकार उसमें निहित नहीं है। यदि सदन चाहे तो यह निलंबन रद्द करने के प्रस्ताव पर निर्णय ले सकता है।
1989 : 15 मार्च 1989 को 63 लोकसभा सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया था। दरअसल , सांसदों ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की जांच करने वाले ठक्कर आयोग की रिपोर्ट का जोरदार विरोध किया था।
2010 : सात राज्यसभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। उन्हें महिला आरक्षण विधेयक पर उनके बुरे व्यवहार के लिए सस्पेंड कर दिया गया।
2012 : आठ लोकसभा सांसद निलंबित कर दिए गए। यह कार्रवाई काफी अलग थी क्योंकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने तेलंगाना मुद्दे पर सदन की कार्यवाही में बाधा डालने के लिए आठ कांग्रेस सांसदों को निलंबित कर दिया था। सभी आठ सांसद तेलंगाना क्षेत्र से थे और अलग राज्य की मांग कर रहे थे।
2013 : 12 लोकसभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। तत्कालीन अध्यक्ष मीरा कुमार ने लगातार व्यवधान पैदा करने के लिए आंध्र प्रदेश के 12 सदस्यों को सदन से पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया। सदस्य आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के गठन का विरोध कर रहे थे।
2014 : 18 लोकसभा सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। तब स्पीकर मीरा कुमार ने तेलंगाना मुद्दे पर सदन में हंगामे के बाद आंध्र प्रदेश के 18 सांसदों को शेष सत्र के लिए निलंबित कर दिया था।
2015 : 25 लोकसभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। सांसदों को तख्तियां दिखाकर और नारे लगाकर सदन में लगातार जानबूझकर बाधा डालने के लिए निलंबित कर दिया गया था।
2019 : 45 लोकसभा सांसदों को दो दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया। तत्कालीन अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने टीडीपी और एआईएडीएमके के 45 सदस्यों को कई दिनों तक कार्यवाही बाधित करने के बाद निलंबित कर दिया। सुमित्रा ने सबसे पहले अन्नाद्रमुक के 24 सदस्यों को लगातार पांच बैठकों के लिए निलंबित कर दिया। एक दिन बाद उन्होंने अन्नाद्रमुक और टीडीपी के 21 सदस्यों और वाईएसआर कांग्रेस के एक सदस्य को निलंबित कर दिया।
2020 : आठ राज्यसभा सांसदों को निलंबित कर दिया गया। दो कृषि विधेयकों के पारित होने के दौरान बुरे व्यवहार के लिए उन्हें एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया।
2021 : नवंबर में 12 राज्यसभा सदस्य निलंबित कर दिए गए। संसद के मानसून सत्र के दौरान किए गए बुरे और हिंसक व्यवहार के लिए सदस्यों को शेष शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था।
2022 : जुलाई में 23 लोकसभा और चार राज्यसभा सदस्य निलंबित कर दिए गए। संसद के मानसून सत्र के दौरान किए गए बुरे और हिंसक व्यवहार के लिए सदस्यों को शेष शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था।