नैतिकता व मर्यादा की छोटे देश से बड़ी नजीर ..!
हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा …
खास बात यह भी है कि न्यूजीलैंड की न्याय मंत्री को गिरफ्तारी का विरोध करने पर तीन-चार घंटे पुलिस स्टेशन में भी रहना पड़ा था। प्रधानमंत्री ने न्याय मंत्री का इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है। नजीर पेश करने का यह न्यूजीलैंड में कोई अकेला उदाहरण नहीं है। इस साल के शुरू में ही वहां की तत्कालीन पीएम जेसिंडा अर्डर्न ने यह कहते हुए पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया था कि अब उनके पास काम करने के लिए ऊर्जा नहीं बची है। दुनिया की सबसे कम उम्र में महिला प्रधानमंत्री बनने वाली जेसिंडा ने न केवल कोेरोना महामारी बल्कि अपने देश में आतंकी हमलों का बहादुरी से मुकाबला किया था। न्यूजीलैंड भले ही छोटा-सा देश हो, लेकिन कानून-कायदों की सख्ती के मामले में उसने बड़े-बड़े देशों को बहुत बड़ी नसीहतें दी हैं। भारत जैसे देश के लिए तो ये ज्यादा सीख देने वाली हैं जहां कुर्सी पर बैठे लोगों के लिए न कानून कोई मायने रखता है और न ही नियम-कायदे। मामूली सड़क हादसों में हर कोई पहुंच की धौंस देता नजर आता है। नैतिकता की बातें तो हमारे यहां सिर्फ राजनीतिक दलों के चुनाव घोषणा पत्रों में ही नजर आती हैं। इतना ही नहीं, बड़े-बड़े घोटालों में नाम आने पर भी राजनेता सत्ता का रौब दिखाने से नहीं चूकते। ऐसा नहीं है कि हमारे यहां राजनेता नैतिकता के आदर्श स्थापित करने वाले नहीं रहे। लाल बहादुर शास्त्री ने रेल हादसे के लिए अपनी जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। ऐसे उदाहरण अब अंगुलियाें पर गिने जाने लायक ही नजर आते हैं।
न्यूजीलैंड में मंत्री के इस्तीफे का यह उदाहरण इतना ही बताने के लिए काफी है कि कानून-कायदे सख्त हों इससे ज्यादा जरूरी यह है कि कानून सबके लिए समान भी हों। यह हम पर निर्भर करता है कि न्यूूजीलैंड से मिली नसीहत और नैतिकता के मापदण्डों पर कितना खरा उतर पाते हैं।