भोपाल । बांधवगढ़, कान्हा, पन्ना और पेंच टाइगर रिजर्व में क्षमता से कहीं अधिक बाघ हो गए हैं। वन विभाग के सामने अब नए स्थान खोजने की चुनौती रहेगी, इसलिए इन पार्कों से सटे क्षेत्र को बाघों के लिए तैयार करना पड़ेगा। कारीडोर विकास के साथ इन क्षेत्रों में पानी, घास के मैदान की व्यवस्था करनी होगी, तभी शाकाहारी वन्यप्राणी बढ़ेंगे।

बाघ आकलन-2022 के अनुसार बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 135 बाघ हैं, जबकि इसकी क्षमता 70 बाघों की है। 30 बाघ पार्क में आते-जाते रहते हैं। ऐसे ही कान्हा में 105 बाघ हैं और क्षमता 65 बाघों की है। 24 बाघ आते-जाते रहते हैं। पेंच में 50 बाघों की क्षमता है और 77 हैं, यहां 46 बाघ आते-जाते रहते हैं। सतपुड़ा और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व ऐसे हैं, जहां क्षमता से कम बाघ हैं।

माधव में 33 साल बाद पहुंचा बाघ

प्रदेश में जिस तेजी से बाघों की संख्या बढ़ रही है, उसी के अनुसार प्रबंधन किया जा रहा है। पन्ना के पन्ना टाइगर रिजर्व, शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क और सागर के नौरादेही अभयारण्य ऐसे क्षेत्र हैं, जहां बाघों को दोबारा बसाया है। माधव नेशनल पार्क 1990 में बाघ विहीन हो गया था। यहां 21 मार्च 2023 को बांधवगढ़, कान्हा, पन्ना से दो बाघ और एक बाघिन लाकर छोड़े गए। अब इसे टाइगर रिजर्व बनाने की तैयारी चल रही है। ऐसे ही 1990 में बाघ विहीन हुए नौरादेही अभयारण्य में वर्ष 2018 में एक बाघ पहुंच गया। उसके बाद में अधिकारियों ने एक बाघिन ले जाकर छोड़ दी। आज 16 बाघ हैं।

पन्ना टाइगर रिजर्व में 2008 में बाघ नहीं बचे थे, 2009 में यहां दो बाघ-बाघिन छोड़े गए और आज 55 हैं। रातापानी बाघ प्रबंधन का सबसे अच्छा उदाहरण राजधानी के कोलार उप नगर से केवल आठ किमी दूर से रातापानी अभयारण्य की सीमा आरंभ होती है। यह अभयारण्य बाघ प्रबंधन का सबसे अच्छा उदाहरण है। यहां चार वर्ष (वर्ष 2018) में 47 से बढ़कर 88 बाघ हो गए हैं। इनमें से छह बाघों ने जहां भोपाल से सटे कलियासोत, केरवा और कठोतिया को स्थायी ठिकाना बना लिया है, वहीं 16 इस क्षेत्र में लगातार आते-जाते रहते हैं।