इंदौर,  कहावत न्याय में देरी न्याय नहीं मिलने के समान है दिल्ली पब्लिक स्कूल हादसे के पीड़ितों पर चरितार्थ हो रही है। हादसे को पांच वर्ष से अधिक समय बीत चुका है। अब तक यही तय नहीं हो सका कि हादसे का जिम्मेदार आखिर कौन था। किसकी लापरवाही ने पांच बच्चों को असमय मौत के मुंह में धकेला।

हादसे में अपने नौनिहालों को खो चुके माता-पिता अब भी न्यायालय की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि न्यायालय निश्चित ही कुछ ऐसा इंतजाम करेगा कि भविष्य में किसी और माता-पिता को यूं आंसू नहीं बहाना पड़ेंगे। हादसे के बाद हाई कोर्ट में धड़ाधड़ याचिकाएं दायर हुई थीं। लग रहा था जैसे न्यायालय की सख्ती लापरवाहों की नींद हराम कर देगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिम्मेदार अब भी चैन की बंसी बजा रहे हैं।

5 जनवरी 2018 को डीपीएस की बस बायपास पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। हादसे में बस में सवार पांच बच्चों सहित छह लोगों की मौत हुई थी। बस सवार कुछ बच्चों को गंभीर चोट भी आई थी। महीनों इन घायल बच्चों का इलाज चलता रहा। हादसे के बाद शासन ने जांच भी करवाई थी। इसमें पता चला था कि जिस वक्त हादसा हुआ उस वक्त बस की गति 80 किमी प्रतिघंटा से भी ज्यादा थी।

हादसे के तुरंत बाद इसे लेकर कई याचिकाएं हाई कोर्ट में दायर हुईं। सभी में हादसे के लिए जिम्मेदारों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज करने, कठोर कार्रवाई करने और मृतकों के स्वजन और घायलों को पर्याप्त मुआवजा देने की मांग की गई। याचिकाएं पांच वर्ष पुरानी हो चुकी हैं। सभी पक्षकारों के जवाब आ चुके हैं, अंतिम बहस होना शेष ह जो कई सुनवाईयों से टल रही है।

शुक्रवार को एक बार फिर ये याचिकाएं अंतिम बहस के लिए नियत हैं। देखना यह है कि इस बार भी किसी न किसी वजह से अंतिम बहस टलती है या न्यायालय की सख्ती पक्षकारों को अंतिम बहस के लिए मजबूर करती है।