लोकसभा चुनाव 2024 …. स्मृति बनाम राहुल गांधी ?
स्मृति बनाम राहुल गांधी: 2024 में ईरानी के लिए कितना आसान होगा अमेठी का चुनाव?
राहुल गांधी ने अमेठी में एक स्पष्ट उपस्थिति बनाए रखी है, खासकर कोविड -19 महामारी के दौरान जब उन्होंने इस क्षेत्र में राहत सामग्री पहुंचाई थी. वहीं ईरानी अमेठी को हमेशा अपना परिवार मानती आई हैं
इस सीट को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है. राहुल गांधी ने 2004 में अमेठी निर्वाचन क्षेत्र से अपनी संसदीय शुरुआत की और 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी से वो हार गए.
रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी वर्तमान में उत्तर प्रदेश से एकमात्र कांग्रेस सांसद हैं. 2024 के चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी की नजर स्मृति ईरानी से अमेठी छीनने पर होगी. राहुल गांधी इस समय केरल के वायनाड से सांसद हैं.
स्मृति ईरानी बनाम राहुल गांधी
जानकारों के मुताबिक अमेठी में स्मृति ईरानी की सक्रिय भागीदारी ने इस क्षेत्र में बीजेपी की उपस्थिति को मजबूत किया है. जगदीशपुर, तिलोई और सलोन विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी विधायकों का दबदबा है, जबकि गौरीगंज और अमेठी सीटों पर समाजवादी पार्टी की पकड़ है.
अमेठी लोकसभा सीट पर ईरानी के समर्थकों ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा किए गए विकास कार्यों को उजागर किया है.
राहुल गांधी 2019 के चुनावों में अपनी हार के बाद से तीन बार अमेठी का दौरा कर चुके हैं, और इस बार इसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने की संभावना से स्थानीय पार्टी नेताओं में उम्मीदें पैदा हो गयी है. राहुल गांधी ने अमेठी में एक स्पष्ट उपस्थिति बनाए रखी है, खासकर कोविड -19 महामारी के दौरान जब उन्होंने इस क्षेत्र में राहत सामग्री पहुंचाई थी. वहां के लोगों के बीच उनकी मजबूत पहुंच है.
अगर राहुल गांधी अपनी पूर्व सीट से चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अमेठी निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक लड़ाई तेज हो सकती है.
स्मृति ईरानी अमेठी को हमेशा अपना परिवार मानती आई हैं. ईरानी ने अपने एक बयान में कहा था कि मुसिबत के समय पर परिवार की बेटी ही साथ निभाती है… आज मैं अमेठी में हूं… अमेठी मेरे लिए एक परिवार की तरह है. कठिनाई के समय में परिवार की बेटी ही मदद करने के लिए आती है .
जानकारों की मानें तो राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव लड़ने की बात कही गई और एक नया रणक्षेत्र खोल दिया है. अमेठी गांधी परिवार की पारंपरिक सीट भी रही है. लेकिन सिर्फ पारंपरिक सीट होने से राहुल गांधी चुनाव जीत नहीं जाएगें.
वहीं ईरानी का पिछले चुनावों में जीत का एक फैक्टर उनका अभिनेत्री के रूप में बहू होना भी माना गया था. जनता पहले से ज्यादा जागरुक है और वो कामों को आधार बना कर ही वोट देगी.
2019 में अमेठी में स्मृति ईरानी की जीत भारतीय राजनीति के इतिहास में एक बड़ी घटना थी. स्मृति ईरानी वह करने में कामयाब रहीं जो कई बड़े भारतीय दिग्गज नेता नहीं कर पाए थे . इसमें कांशीराम, राजमोहन गांधी, मेनका गांधी और शरद यादव का नाम शामिल है.
दरअसल, 2014 और 2019 दोनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की जीत के कारण, कांग्रेस की लोकप्रियता कम हो गई थी. कई जानकार ये मानते हैं कि ईरानी की लोकप्रियता एक टेलीविजन अभिनेत्री के रूप में ज्यादा रही है. जो एक बहू या पत्नी के रूप में रही है. 2019 में गांधी को ईरानी ने हराया.
क्या ईरानी या राहुल के लिए आसान होगा इस बार का चुनाव
वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने एबीपी न्यूज को बताया कि इस बार का अमेठी चुनाव न तो ईरानी न तो राहुल के लिए आसान होगा. ईरानी पहले ही 5 साल से यहां की सांसद हैं और अमेठी में स्थितियां पूरी तरह से ईरानी के पक्ष में नहीं है.
वहीं राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव लड़ने की बात महज एक अफवाह भी हो सकती है. करीब से देखने पर ये पता चलता है कि अगर राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ने की बात सच है तो कोई कमेटी का गठन क्यों नहीं हुआ है, ना ही कोई जांच की जा रही है.
शुक्ला के मुताबिक उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष अजय राय भले ही राहुल के अमेठी से चुनाव लड़ने की बात कही है लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं लगती है. राहुल ने अभी तक कोई दौरा भी नहीं किया है, रायबरेली में भी वही हाल है. चुनाव नजदीक है ऐसे में ये एक बड़ा सवाल है.
अगर राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ते हैं तो पहले से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है.
क्या ईरानी के काम से मिलेगी बीजेपी को कामयाबी
इस सवाल के जवाब में नाम न बताने की शर्त पर अमेठी के एक स्थानीय पत्रकार कहते हैं- ईरानी लगातार अमेठी की जनता से संपर्क में रही हैं. ये भी एक फैक्ट है कि वर्तमान सांसद या विधायक में थोड़ी -बहुत कमी जरूर होती है.
अमेठी सीट गांधी परिवार से जुड़ी होने की वजह से एक चर्चित सीट मानी जाती रही है. अब इस सीट की चर्चा कम रह गयी है. अभी भी एक बहुत बड़ा वर्ग ये मानता है कि राहुल गांधी अगर चुनाव लड़ते हैं तो वो जीतेंगे.
2014 में उमा भारती से अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ईरानी ने ये जोखिम लिया और वो जीत गई. 2014 में भले ही हारी थी लेकिन तब से ही इस सीट पर ईरानी को लेकर चर्चा होती रही है. वो यहां की जनता से लगातार जुड़ी हुई हैं. जो इस चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा.
ईरानी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के साथ चावल की लाई खाने आती रहती हैं. ये एक परंपरा है. इसमें ये माना जाता है कि औरतों के ऐसा करने से मनोकामना पूरी होती है. ईरानी ने गांव -गांव लोगों के बीच अपनी पकड़ बनाई हुई है. बीजेपी को ईरानी पर पूरा भरोसा है इसलिए इस बार बीजेपी का टारगेट रायबरेली है.
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने बताया कि 2014 में जीत हासिल करने के बाद ईरानी और केन्द्र सरकार ने 25,000 लोगों के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत 12 रुपये की पहली साल की किस्त को कवर करने वाले चेक वितरित किया. उन्होंने घोषणा की कि उर्वरक रेक जो अब तक केवल रायबरेली में उपलब्ध था, अब अमेठी पहुंचेगा.
ईरानी खुद अपने भाषणों में कहती रही हैं कि मैंने जो तीन वादे [उर्वरक रेक, रेल कनेक्टिविटी और गरीबों के लिए बीमा] किए थे, उन्हें पूरा किया है.
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि अमेठी में ईरानी की गतिविधि ने उन विवादों से ध्यान हटाने में भी मदद की है, जिसका शिकार वो मानव संसाधन विकास मंत्री बनने के बाद हुई थी. वह अमेठी में स्थानीय लोगों तक पहुंच हासिल करने में काफी हद तक कामयाब रही हैं.जो चुनाव में बीजेपी को मदद पहुंचाएगा.