PPS अफसरों का दर्द ..?
प्रमोशन में नाइंसाफी का शिकार, IPS बनने का सपना अधर में; समकक्ष सेवाओं के जूनियर भी प्रमोशन पाकर निकल गए आगे…
देर से मिला न्याय भी अन्याय सरीखा होता है। कम से कम से यूपी के पीपीएस यानि प्रांतीय पुलिस सेवा संवर्ग के अफसरों के लिए तो ये कहावत सटीक ही बैठती है। पुलिस मशीनरी राज्य की शक्ति का प्रतीक होती है, लेकिन पुलिसिंग का अहम अंग माने जाने वाले पीपीएस अफसरों का ये तबका अपने संवर्ग की विसंगतियों से मायूस है…बेहाल है। चुप्पी साधे फर्ज अदायगी में जुटा है। इंतजार में है कि शायद कभी हुक्मरानों का दिल पसीजे और उन्हें भी वाजिब हक हासिल हो सके।
पीपीएस संवर्ग के अफसर, अक्सर जिन्हें आप डीएसपी, एसीपी, एएसपी के पदों पर देखते हैं। हालात ये हैं कि पीपीएस संवर्ग के साल 1993 और 1994 के ही कई अफसर अभी तक आईपीएस में प्रमोट होने की बाट जोह रहे हैं। कई तो आईपीएस बनने के इंतजार में सेवा से विदाई ले चुके हैं, तो कई रिटायरमेंट के मुहाने पर हैं।
पीपीएस संवर्ग के अफसरों के दर्द के साथ अब आपको ये भी बताते हैं कि सरकार यूपी की नौकरशाही में ये पहली बार है कि नायब तहसीलदार भर्ती हुए दो अफसरों को आईएएस बनाया जा रहा है….
दरअसल, इस बार 21 अगस्त को होने जा रही डीपीसी में सिलेक्शन लिस्ट 2022 के तहत राज्य कोटे की 22 रिक्तियों को भरा जाना है। इसमें साल 2004 और 2006 बैच के पीसीएस (प्रांतीय प्रशासनिक सेवा) अफसरों को आईएएस के पद पर प्रमोशन मिल जाएगा। इन्हीं अफसरों में शामिल होंगे उमाकांत त्रिपाठी व नरेन्द्र सिंह।
नायब तहसीलदार के पद से प्रशासनिक नौकरी ज्वाइन करने वाले इन दोनों अफसरों को साल 2006 में तहसीलदार से पीसीएस कैडर में प्रमोट किया गया था। वर्तमान में नरेन्द्र सिंह यूपी राज्य परिवहन निगम में एडिशनल कमिश्नर के पद पर तैनात हैं तो उमाकांत त्रिपाठी बांदा में एडीएम, वित्त एवं राजस्व के पद पर हैं। अब सोमवार को को डीपीसी होने जा रही है, जिसमें पीसीएस संवर्ग के 2004 से 2007 बैच के 22 अफसरों के आईएएस बनने को हरी झंडी दिए जाने की तैयारी है। जाहिर सी बात है कि पीसीएस संवर्ग के अफसरों के पाले में खुशी के नगाड़े बज रहे हैं।
कैसे योगीराज में पीपीएस अफसर अपनी नाखुशी जता चुके हैं…
योगी 1.0 में पीपीएस अफसरों ने पुलिस वीक का किया था बहिष्कार
योगी सरकार पार्ट वन की ताजपोशी के तकरीबन डेढ़ वर्ष हुए थे। तब पारंपरिक पुलिस वीक का आयोजन हो रहा था। जिसका पीपीएस संवर्ग के अफसरों ने बहिष्कार करते हुए। इससे जुड़े किसी भी आयोजन में हिस्सा लेने या बैठक करने से इनकार कर दिया। तब कई आला अफसरों ने इन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। इनके तीव्र आक्रोश को भांपकर तत्कालीन डीजीपी ओपी सिंह ने 29 दिसंबर, 2018 को पीपीएस एसोसिएशन के अफसरों को बुलाकर उनकी समस्याओं को सुना और इस कैडर की समस्याओं के हल करने का भरोसा दिलाया।
पीपीएस अफसरों को आईपीएस के खाली पदों पर एक निर्धारित संख्या में प्रमोट किए जाने की मांग को लेकर तत्कालीन एडीजी कार्मिक रेणुका मिश्रा की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय समिति गठित की गई। समिति की सिफारिशों के आधार पर कैडर रिव्यू के औचित्यपूर्ण प्रस्ताव तैयार करने की कवायद शुरू तो हुई पर ठंडे बस्ते में चली गई।
अखिलेश सरकार में भी मुखर हुए थे पीपीएस अफसर
अखिलेश यादव के शासनकाल में 17 फरवरी, 2014 को तत्कालीन पुलिस व गृह महकमे के उच्चाधिकारियों के सामने पीपीएस एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने अपने संवर्ग के साथ हो रही ज्यादतियों का मुद्दा उठाया था। डीजीपी व गृह सचिव को 15 सूत्रीय ज्ञापन सौंपते हुए प्रांतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने का आरोप लगाया था।
कई अफसरों की आईपीएस बनने की ख्वाहिश रह गई अधूरी
पीपीएस अफसरो का कहना था कि काडर रिव्यू के नाम पर जो कवायदें हुईं, वह रिव्यू की न होकर संवर्ग में महज कुछ पदों को बढ़ाने तक सीमित रहीं हैं। इन अफसरो का दर्द था कि कभी उनके संवर्ग के जो अधिकारी आईजीपी (वर्तमान में डीजीपी के समकक्ष) के पद पर पहुंच जाते थे। वो अब 25 से 26 वर्ष की सेवा के बाद भी अपर पुलिस अधीक्षक ही रह जाते हैं। पीपीएस काडर रिव्यू में विलंब और आईपीएस काडर रिव्यू समय से न किए जाने की वजह से कई अधिकारी बगैर आईपीएस बने ही मनमसोस कर रिटायर हो गए।
प्रमोशन विसंगति से घटा मनोबल
यूं तो बीते दशकों में जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई, क्राईम बढ़ा तो पुलिस थानों में इजाफा हुआ। पुलिसिंग के लिए कई नई विंग सेगमेंट तैयार हुए। जिससे अफसरों की मांग बढ़ी, पर कैडर रिव्यू में पिछड़ने से उच्च पदों पर पहुंचने के मौके घटते गए। प्रमोशन के इस ठहराव का प्रतिकूल असर पीपीएस अफसरों के मनोबल पर भी पड़ा।
एक सीनियर पीपीएस अफसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि एक वक्त था, जब राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में मेरिट में स्थान रखने वाले कई सफल अभ्यर्थी एसडीएम बनने के बजाए डीएसपी के पद को तरजीह देते थे। पर अब तो पीपीएस संवर्ग की सेवाओं की विसंगतियों को भांपकर कई योग्य अभ्यर्थी पीपीएस का विकल्प चुनने से ही कतराने लगे हैं। बीएसए, एआरटीओ या टैक्स महकमे में जाने के विकल्पों की अधिक पूछ होने लगी है। पर ये अच्छे संकेत नहीं हैं, क्योंकि इससे बेहतर गुणवत्ता के पुलिस अफसरों की कमी की आशंका बढ़ जाती है।
बहरहाल, 21 अगस्त को होने वाली डीपीसी बैठक में 1993 बैच के 16 और 94 बैच के 10 अफसरों के आईपीएस बनने पर मुहर लगाने की तैयारी है। चूंकि पीपीएस के कई बैच में बड़ी तादाद में अफसर भर्ती हुए। जिसकी वजह से प्रमोशन की राह संकरी हो गई। 94 के बाद के बैच के प्रांतीय पुलिस सेवा के सभी अफसर अपने ही बैच के प्रशासनिक संवर्ग के अफसरों के प्रमोशन की रफ्तार देखकर कुढ़ने और मायूस होने को अभिशप्त हैं।
- उत्तर प्रदेश पुलिस में पीपीएस कैडर के 26 अफसरों की 21 अगस्त को डीपीसी होगी। इसकी बैठक में यूपी के डीजीपी विजय कुमार, मुख्य सचिव डीएस मिश्रा के साथ संघ लोकसेवा आयोग, कार्मिक व गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
- यूपी में पीपीएस कैडर के 1364 अफसर हैं। दो पीपीएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं। इनमें से 1994 बैच के आरएन सिंह और 2014 बैच की समीक्षा पांडेय शामिल हैं।
- आईपीएस के कुल रिक्त पदों के 33% पर ही पीपीएस अफसरों को प्रमोट होने का मौका मिलता है। जो पीपीएस अफसर 56 वर्ष की आयु पार कर लेते हैं, आईपीएस कैडर में प्रमोट होने के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया जाता है।
- विभागीय जांच का सामना कर रहे अफसरों के लिफाफे बंद कर लिए जाते हैं।
- पीपीएस एसोसिएशन के मौजूदा अध्यक्ष दिनेश यादव की तबीयत खराब होने की वजह से आगामी 27 अगस्त को लखनऊ में यूपी पुलिस 112 मुख्यालय में प्रस्तावित पीपीएस एसोसिएशन की बैठक को लेकर पसोपेश की स्थित है।