मिलावट का दंश: दूध का उत्पादन घटा फिर भी मावा का उत्पादन दस गुना बढ़ा
भिण्ड- रक्षाबंधन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह भट्टियों पर मिलावटी मावा का निर्माण किया जा रहा है। खाद्य सुरक्षा विभाग के आंकड़ों की मानें तो जिले में करीब पांच लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है, लेकिन इन दिनों मावा का कारोबार दस गुना बढ़ गया है। डेयरियों पर दूध से क्रीम निकालकर रिफाइंड के मिश्रण से नकली मावा तैयार करके उसे दूसरे शहरों में भेजा जा रहा है। लेकिन खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरों के खिलाफ फूड विभाग के अधिकारी उदासीन नजर आए हैं।
जिले में दूध का उत्पादन पहले की अपेक्षा 50 हजार लीटर घटा है। जबकि खोया और दूध की डिमांड काफी बढ़ी है। मिलावट का कारोबार सबसे अधिक जिले के गोरमी, अटेर, मेहगांव और लहार क्षेत्र में चलता है। इन क्षेत्रों में एक-एक गांव में चार से पांच खुली डेयरियां संचालित हो रही हैं, जिन पर दूध कारोबारी मिलावट करते हैं। फूड विभाग के अधिकारी अवनीश गुप्ता ने बताया उत्पादन को देखते हुए मावा अधिक बनाया जा रहा है। अमूमन एक लीटर दूध में एक पाव मावा निकलता है, जबकि सिंथेटिक दूध में इसकी मात्रा अधिक होती है।
जिले में इन दिनों करीब 50 हजार लीटर दूध का उत्पादन में कमी आई है लेकिन इसके बावजूद मावा के उत्पादन में दस गुना वृद्धि हो गई है। शहर सहित अंचल में भट्टियों पर मावा तैयार किया जा रहा है। दूध की कमी के बावजूद मावा के उतपादन में वृद्धि मिलावट की ओर इशारा कर रहा है। रक्षाबंधन के चलते मिलावटखोर सक्रिय हो गए हैं और अंचल में बड़ी मात्रा में मावा का उत्पादन किया जा रहा है। ं
एक साल में 30 पर एफआइआर
फूड विभाग की टीम ने पिछले एक साल में सफेद जहर बेचने वाले 30 डेयरी संचालकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की है। जिले में हुई छापामार कार्रवाई में कुल 110 ठिकानों से दूध, मावा, घी के 500 सैंपल लिए गए। इनमें से 35 सैंपल फेल हुए हैं। जिन पर न्यायालय द्वारा सवा करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है। फूड विभाग के अधिकारी अवनीश गुप्ता ने बताया मिलावट के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। त्योहार को लेकर भी मिलावट के खिलाफ अभियान चलाएंगे।
रिपोर्ट आने तक खप जाता है माल
फूड विभाग द्वारा सैंपलिंग के बाद नमूनों को जांच के लिए भोपाल लैब में भेजा जाता है। लेकिन इन दिनों लैब पर तीन गुना तक दबाव बढ़ गया है। जो रिपोर्ट 14 दिन में जारी की जाती थी, उसे 40 दिन से अधिक समय लग रहा है। ऐसे में जिन डेयरियों पर केमिकल, रिफाइंड सहित मिलावट की अन्य सामग्री प्राप्त होती है, उन पर मौके पर कार्रवाई हो जाती है, लेकिन सैंपल के लिए महीने भर से अधिक इंतजार करना पड़ता है, तब रिपोर्ट जारी हो रही है। जबकि समय अधिक लगने से अधिकारियों की सांठगांठ से मामला दबा दिया जाता है।