भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा ? व्यापार का भूगोल’ भी बदलने की तैयारी
भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा: इतिहास रचने के साथ ही दुनिया के ‘ व्यापार का भूगोल’ भी बदलने की तैयारी
9 सितंबर को ही भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ ने भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा स्थापित करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किया .
मोहम्मद बिन सलमान, जो बाइडेन और पीएम मोदी …
इसके अलावा शिखर सम्मेलन के पहले दिन ही कई अहम घोषणाएं भी की गई. इन घोषणाओं के अलावा 9 सितंबर को ही भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ ने भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा (IECC EC) स्थापित करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किया .
इस गलियारे की स्थापना सबसे अहम इसलिए भी है क्योंकि इसके निर्माण के साथ ही दुनिया के ‘ व्यपार का भूगोल’ बदल जाएगा. इस स्टोरी में जानते हैं कि आखिर भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा स्थापित करने का समझौता भारत और विश्व व्यपार के लिए इतना महत्वपूर्ण है…
क्या है भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा
भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा यानी इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे का उद्देश्य मध्य पूर्व के देशों को रेलवे से जोड़ना और उन्हें बंदरगाह के माध्यम से भारत से जोड़ना है. इस कॉरिडॉर के बनने के बाद से शिपिंग समय, लागत और ईंधन का इस्तेमाल कम होगा और खाड़ी से यूरोप तक ट्रे़ड फ्लो में मदद मिलेगी.
इसके अलावा रेल और शिपिंग कॉरिडोर देशों को ऊर्जा उत्पादों सहित ज्यादा व्यापार के लिए सक्षम बनाएगा. इसकी घोषणा से पहले अमेरिकी अधिकारी फाइनर ने कहा था कि अमेरिका की नजर से ये समझौता पूरे क्षेत्र में तनाव कम करेगा और हमें ऐसा लगता है कि इससे टकराव से निपटने में मदद मिलेगी.
भारत और अमेरिका मिलकर करेंगे अगुवाई
बता दें कि इस कॉरिडोर की अगुवाई भारत और अमेरिका साथ मिलकर करेंगे. इस समझौते के तहत कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर काम होगा. यह ट्रेड रूट भारत को यूरोप से जोड़ते हुए पश्चिम एशिया से होकर गुजरेगा. भारत और अमेरिका के अलावा पश्चिम एशिया से संयुक्त अरब अमीरात व सऊदी अरब और यूरोप से यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली व जर्मनी भी इसका हिस्सा होंगे.
इस प्रोजेक्ट के तहत क्या-क्या होगा?
1. भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा, इस प्रोजेक्ट में दो अलग-अलग कॉरिडोर का निर्माण शामिल होगा. पहला है पूर्वी कॉरिडोर जो भारत को खाड़ी क्षेत्र से जोड़ने में मदद करेगा. तो वहीं दूसरा है उत्तरी कॉरिडोर जो कि खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ेगा.
2. इस कॉरिडोर में रेलवे, शिपिंग नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे.
3. इस सौदे के बाद भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जर्मनी, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यूरोपीय संघ को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पहले की तुलना में काफी ज्यादा फायदा होगा.
4. समझौते के तहत इस कॉरिडोर में एक रेल और बंदरगाहों से जुड़ा नेटवर्क का निर्माण भी किया जाएगा, जिसमें सातों देश ‘पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट’ के तहत इन्वेस्टमेंट करेंगे.
5. चीन के BRI प्रोजेक्ट यानी ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ की तर्ज पर ही इसे एक महत्वाकांक्षी योजना माना जा रहा है और यह प्रोजक्ट महाद्वीपों और सिविलाइजेशन के बीच एक ग्रीन और डिजिटल पुल माना जा रहा है.
अब जानते हैं कि इस प्रोजेक्ट से भारत का क्या फायदा होगा?
अगर भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा बनता है तो दक्षिण पूर्व एशिया से खाड़ी, पश्चिम एशिया और यूरोप तक व्यापार प्रवाह के मार्ग पर मजबूती से आगे बढ़ेगा. इससे हमारे देश को न सिर्प आर्थिक बल्कि रणनीतिक लाभ मिलेगा. इसके अलावा लॉजिस्टिक्स और परिवहन क्षेत्र में बड़े अवसर पैदा होंगे.
ये गलियारा हिंदुस्तान को वर्तमान की तुलना में तेज और सस्ता पारगमन विकल्प प्रदान करता है. इससे हमारे व्यापार और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा. इसे एक हरित गलियारे के रूप में विकसित किया जा सकता है, जो कि हमारे हरित उद्देश्यों को बढ़ाएगा.
क्षेत्र में हमारी स्थिति को मजबूत करेगा और हमारी कंपनियों को बुनियादी ढांचे के निर्माण में समान स्तर पर भाग लेने की अनुमति देगा. ये गलियारा आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी सुरक्षित करेगा. रोजगार पैदा करेगा और व्यापार सुविधा और पहुंच में सुधार करेगा.
कैसे बदलेगी दुनिया की तस्वीर
जी-20 के शिखर सम्मेलन में हुआ यह समझौता दुनिया के लिए तरक्की का नया रास्ता खोलना का जरिया है. इस समझौते न सिर्फ अलग अलग देशों के बीच संपर्क बढ़ेगा बल्कि आने वाले समय में व्यपार और रोजगार में भी इजाफा होगा.
भारत-मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा पश्चिम में भारत की जमीनी कनेक्टिविटी को आसान बनाएगा और पाकिस्तान की रोक को बेअसर करेगा. साल 1990 में ही पाकिस्तान ने भारत की जमीनी कनेक्टिविटी के जरिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच देने से मना कर दिया था.
इसके अलावा यह गलियारा अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को गहरा करेगा. पिछले कुछ सालों में मोदी सरकार ने संयुक्त अरब अमिरात और साउदी अरब के साथ तेजी से राजनीतिक और रणनीतिक संबंध बनाए हैं.
अमेरिकी अखबार के अनुसार इस परियोजना से अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा. जिससे अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक गहमागहमी में भी कमी आएगी और क्षेत्र में शांति और स्थिरता भी आएगी.
अफ़्रीकी संघ को शामिल करने से भारत को बढ़त
जी-20 में अब अफ़्रीकी संघ का शामिल होना भारत के लिए कई तरीके से फायदेमंद हैं. भारत में इस ग्रुप में अफ़्रीकी संघ के शामिल होने की वकालत करके ये साबित कर दिया है कि उसका ग्लोबल साउथ कहे जाने वाले विकासशील देशों का नेतृत्व करने का दावा ग़लत नहीं है.
उधर अफ़्रीका भर में चीन, रूस, तुर्की और अमेरिका सहित भारत ने काफ़ी निवेश किया है. अफ़्रीकी महाद्वीप में इन देशों के बीच इस बात की होड़ है कि अफ़्रीका पर कौन कितना असर बनाने में कामयाब हो सकता है.
विशेषज्ञ की मानें तो भारत ने शायद अफ़्रीकी महाद्वीप को जी-20 में शामिल करने की वकालत करके ये दौड़ जीत ली है.
बता दें कि जी-20 की स्थापना साल 1997 में आये एक बड़े आर्थिक संकट के बाद हुई थी. लेकिन इस शिखर सम्मेलन का दर्जा साल 2008 में एक वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान दिया गया. अब जी 20 शिखर सम्मेलन हर साल एक बार होता है. हर साल एक मेंबर देश को अध्यक्ष बनाया जाता है जिसकी अध्यक्षता में शिखर सम्मेलन होता है.
यही सम्मेलन पिछले साल इंडोनेशिया में हुआ था. भारत इस साल के अंत में इसकी अध्यक्षता ब्राज़ील को सौंपने वाला है और अगला शिखर सम्मेलन ब्राज़ील में ही होगा.