उच्च शिक्षा में युवाओं के मन को पढ़ने की जरूरत ?

ऐसा पहली बार हो रहा है कि प्रदेश के कॉलेजों में खाली सीटें भरने के लिए सातवां सीएलसी राउंड शुरू करनेे की नौबत आ गई है …

उ च्च शिक्षा में ऐसा पहली बार हो रहा है कि कॉलेजों में खाली सीटों को भरने के लिए 7वां अतिरिक्त राउंड शुरू करने की नौबत आ गई है। यह 30 सितंबर तक चलेगा। प्रदेश के 1361 सरकारी और निजी महाविद्यालयों में लगभग चार लाख से अधिक सीटें खाली हैं। स्थिति कई सवाल खड़े करने वाली है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कई बदलाव हुए हैं, जिस वजह से छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। कॉलेजों में वार्षिक पद्धति से पढ़ाई शुरू हुई तो चार-पांच महीने तो प्रवेश प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो रही। बड़ा सवाल यह है कि अगर सितंबर तक कॉलेजों में दाखिले ही होते रहेंगे तो पढ़ाई कब शुरू होगी? प्रवेश प्रक्रिया समय से पूरी नहीं होगी तो छात्र-छात्राओं को पढ़ाई का भी कम समय मिलेगा। परिणाम बिगड़ने पर विद्यार्थियों की मनोदशा क्या होती है, यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में पढ़ाई में एक-दो महीने नहीं, बल्कि एक दिन की देरी भी छात्रों के लिए नुकसानदायक होती है। नर्मदापुरम संभाग की बात करें तो सरकारी ही नहीं, निजी कॉलेजों में भी सीटें खाली हैं। नर्मदापुरम में पांच राउंड के बाद भी स्नातक में 1500 और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में 600 सीटें खाली रह गई हैं। बैतूल जिले के सबसे बड़े जेएच कॉलेज में पांचवां राउंड पूरा होने के बाद यूजी और पीजी कक्षा की 995 सीटें खाली हैं। हरदा जिले में सरकारी कॉलेजों में यूजी-पीजी की 1957 सीटें खाली हैं। कमोबेश यही स्थिति प्रदेश के सभी जिलों के कॉलेजों की है। शहरी ही नहीं ग्रामीण क्षेत्र के कॉलेजों में भी छात्रों का टोटा है। कॉलेजों में दाखिले की वस्तुस्थिति यह है कि कुछ कॉलेजों में कई विषयों में तो एक भी छात्र ने प्रवेश नहीं लिया। ऐसे में इन विषयों की प्रासंगिकता क्या रह गई है, यह नीति निर्धारकों को सोचने की आवश्यकता है। पांच-पांच मौके देने के बावजूद अगर छात्र-छात्राएं स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों से मुंह मोड़ रहे हैं, तो निश्चित ही आज के युवा के मन की बात को जानना जरूरी हो गया है। जिम्मेदारों को ये देखना होगा कि आखिर वे चाहते क्या है? ऐसे कौनसे विषय हैं, जिनमें नई पीढ़ी अपना भविष्य देख रही है। उन्हीं विषयों को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाए। दूसरी ओर ऐसे विषय, जो अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं, जिनमें छात्रों की रुचि नहीं रही, उन्हें हटाया जाए। अनावश्यक क्यों ढेरों विषयों का बोझ ढोया जाए। जिन परंपरागत कोर्स से युवाओं का मन भर गया लगता है, उन्हें हटाया जाना चाहिए।

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