बिहार में जातीय सर्वे ?
बिहार में जातीय सर्वे: 6 महीने में इस मुहिम को पूरा करने वाले 6 अफसरों की कहानी
सर्वे का काम पहले फरवरी 2024 तक पूरा करना था, लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस जाने के बाद इसको तेजी से पूरा करने का लक्ष्य रखा गया. अभियान के अंतिम चरण को काफी सीक्रेट रखा गया.
जातिगत सर्वे जारी करते आईएएस विवेक सिंह और बी राजेंद्र …
7 जनवरी 2023 से बिहार में जातिगत सर्वे का काम शुरू हुआ था. सर्वे का काम पूरा करने के लिए बिहार में 11 कोषांग और 45 चार्ज का गठन किया गया था. सामान्य प्रशासन विभाग को सर्वे कराने की जिम्मेदारी मिली थी. नीतीश कुमार खुद इस विभाग के मुखिया हैं.
सूत्रों के मुताबिक सर्वे का काम पहले फरवरी 2024 तक पूरा करना था, लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस जाने के बाद इसको तेजी से पूरा करने का लक्ष्य रखा गया. अभियान के अंतिम चरण को काफी सीक्रेट रखा गया. सर्वे का डेटा कब पब्लिश होगा, इसकी खबर भी किसी को कानों-कान नहीं लगने दी.
इसकी मुख्य वजह सुप्रीम कोर्ट में केस का होना भी था. सुप्रीम कोर्ट में जातिगत सर्वे को लेकर याचिका दाखिल की गई है. इस पर 3 अक्टूबर यानी आज ही सुनवाई प्रस्तावित था.
नाम न बताने की शर्त पर सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी कहते हैं- सर्वे का काम जनवरी में शुरू किया गया, लेकिन मई में इस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दिया. अगस्त में जब रोक हटा, तो काम में तेजी आई और हमने सितंबर के अंत तक सर्वे के पहले चरण का काम पूरा कर लिया.
कर्नाटक में इसी तरह का सर्वे 2013 में शुरू हुआ था, जो 2015 में खत्म हुआ. हालांकि, उसकी रिपोर्ट अब तक पब्लिश नहीं हो पाई है.
सर्वे के काम में बरती गई ये सावधानी
1. जिला स्तर पर सर्वे कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर को मिला था. सूत्रों के मुताबिक सामान्य प्रशासन विभाग ने सर्वे होने तक कलेक्टर के ट्रांसफर-पोस्टिंग में काफी सावधानी बरती. अघोषित रूप से सभी डीएम को सर्वे को पहले तरजीह देने के आदेश मिले थे.
2. सूत्रों के मुताबिक सर्वे में सर्वे को जल्द पूरा करने के लिए सामान्य प्रशासन के साथ-साथ ग्रामीण विकास और आईटी डिपार्टमेंट को लगाया गया था. आईटी डिपार्टमेंट के अधीन बेल्ट्रोन के देखरेख में ही ऐप पर सारा डेटा अपलोड किया गया.
कहानी 6 अधिकारियों की, जिसने सर्वे को अंजाम तक पहुंचाया
1. आमिर सुबहानी- 1987 बैच के आईएएस अधिकारी आमिर सुबहानी दिसंबर 2021 से बिहार के मुख्य सचिव हैं. सुबहानी नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद अधिकारी हैं. मुख्य सचिव से पहले सुबहानी विकास आयुक्त और गृह विभाग के एसीएस रह चुके हैं.
सीवान के रहने वाले सुबहानी ने समय से पहले जातीय गणना कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अगस्त में जब पटना हाईकोर्ट ने जातिगत सर्वे पर से स्टे हटाया, तो सुबहानी तुरंत सक्रिय हो गए. उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बिहार के सभी डीएम को सर्वे काम जल्द निपटाने के आदेश दिए.
सुबहानी ने इसके बाद रोज जिलाधिकारियों से फीडबैक लेना शुरू किया. सितंबर में सुबहानी जब बीमार हुए, तो उनके काम की जिम्मेदारी आईएएस विवेक सिंह को सौंपी गई. विवेक सिंह के नेतृत्व में ही जातिगत सर्वे का डेटा जारी किया गया.
2. विवेक सिंह- आईएएस विवेक सिंह बिहार के विकास आयुक्त हैं. आमिर सुबहानी के बीमार पड़ने के बाद उन्हें मुख्य सचिव का प्रभार भी मिला था. सिंह इसके बाद गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने में जुट गए थे. फरवरी 2023 में उन्हें विकास आयुक्त बनाया गया था.
मुख्य सचिव के बाद बिहार में यह महत्वपूर्ण विभाग है. विकास आयुक्त पद पर आने से पहले विवेक सिंह राजस्व विभाग में एसीएस थे. सिंह 1989 बैच के बिहार काडर के आईएएस अधिकारी हैं. सिंह भी नीतीश कुमार के भरोसेमंद अधिकारी माने जाते हैं.
2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद सिंह को जनसंपर्क विभाग की कमान मिली थी. सिंह इसके अलावा कला संस्कृति, कृषि और राजस्व जैसे अहम महकमा में संभाल चुके हैं. मूल रूप से बिहार के रहने वाले सिंह ने दिल्ली विश्विद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की है.
3. बी राजेंद्र- 1995 बैच के आईएएस अधिकारी बी राजेंद्र वर्तमान में सामान्य प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव हैं. बिहार सरकार ने इसी विभाग को सर्वे कराने की जिम्मेदारी सौंपी थी. जातिगत गणना का स्वरूप और उसकी रिपोर्ट लेने की जिम्मेदारी राजेंद्र पर ही थी.
दलित समुदाय से आने वाले राजेंद्र नीतीश कुमार के भरोसेमंद अफसर रहे हैं. अप्रैल 2022 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद बी राजेंद्र को इस विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया था. राजेंद्र केंद्रीय कृषि मंत्रालय में संयुक्त सचिव भी रह चुके हैं.
मूल रूप से तेलंगाना के रहने वाले राजेंद्र ने प्लांट पैथॉलोजी में डॉक्टरी की पढ़ाई की है. नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद राजेंद्र का कद लगातार बढ़ता गया. नीतीश के पहले और दूसरे कार्यकाल में वे पटना के डीएम और ग्रामीण विकास विभाग में सचिव बनाए गए.
केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर वे जल संशाधन और कृषि विभाग में संयुक्त सचिव रहे.
4. मो. सोहेल- जातिगत जनगणना का आदेश निकालने के बाद 31 दिसंबर को मो. सोहेल की तैनाती सामान्य प्रशासन विभाग में हुई थी. 2007 बैच के आईएएस अधिकारी सोहेल वर्तमान में सामान्य प्रशासन विभाग में सचिव हैं. जातिगत सर्वे के काम में सोहैल की भी भूमिका अहम रही है.
सर्वे को लेकर बिपार्ड में अधिकारियों को ट्रेनिंग देना हो या रिपोर्ट तैयार करना, इन सब में सोहेल ने बड़ी भूमिका निभाई. सोहेल को जनगणना का पुराना अनुभव भी रहा है. 2019 में केंद्र के कहने पर उन्हें जनगणना का निदेशक भी बनाया गया था.
2020 में सोहेल को विशेष सचिव के पद पर पदोन्नती मिली थी. सोहेल मधेपुरा और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों के जिलाधिकारी भी रह चुके हैं. सोहेल मूल रूप से बिहार के ही हैं और उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.
5. संतोष कुमार मल्ल- 1997 बैच के आईएएस अधिकारी संतोष कुमार मल्ल अभी बिहार के आईटी डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव हैं. आईटी डिपार्टमेंट के अधीन ही बेल्ट्रोन है. मल्ल इसके मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं. बेल्ट्रोन की देखरेख में ही सभी डेटा एक पोर्टल पर अपडेट हुआ है.
हाईकोर्ट ने डेटा लीक को आधार मानते हुए मई में सर्वे पर रोक लगा दिया था, जिसके बाद बेल्ट्रोन ने विशेषज्ञों की मदद से एक प्रजेंटेशन रिपोर्ट हाईकोर्ट को दिया और बताया कि कैसे डेटा लीक का खतरा नहीं है. हाईकोर्ट से स्टे हटने में इस रिपोर्ट को काफी अहम माना गया.
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले मल्ल ने आईआईटी से अपनी पढ़ाई की है. मल्ल सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं. मल्ल केंद्रीय विद्यालय संगठन के आयुक्त भी रह चुके हैं. उन्हें बिहार के पर्यटन विभाग की भी जिम्मेदारी मिली थी.
मल्ल बिहार के जहानाबाद, सीवान, भागलपुर, दरभंगा और मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी भी रह चुके हैं. हाल ही में संतोष मल्ल को नगर विकास विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया है.
6. रजनीश कुमार- जातिगत सर्वे पर अधिकांश आदेश सामान्य प्रशासन विभाग के उपसचिव रजनीश कुमार के नाम से ही निकाले गए हैं. बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रजनीश कुमार 2021 में सामान्य प्रशासन विभाग में उपसचिव बनाए गए थे.
कुमार पथ निर्माण जैसे अहम विभाग में भी उपसचिव रह चुके हैं. सर्वे के दौरान रजनीश की भूमिका सरकार के मंशा को नीचले स्तर के अधिकारियों तक पहुंचाने की थी. सर्वे को लेकर किसी भी तरह के बवाल होने पर रजनीश ही आदेश जारी करते थे. उनकी भूमिका फील्ड में काम कर रहे अधिकारी और शीर्ष अधिकारियों के बीच एक कड़ी की थी.
500 करोड़ का खर्च, 5 लाख कर्मचारी लगाए गए थे
बिहार में जातीय जनगणना के डेटा संकलन और विश्लेषण के लिए करीब 5 लाख कर्मचारी लगाए गए थे. डेटा ऑनलाइन संकलन के लिए दिल्ली के एक एजेंसी को हायर किया गया था. सामान्य प्रशासन विभाग के मुताबिक इस काम में करीब 500 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं.
जातीय जनगणना पर होने वाले खर्च बिहार सरकार के इमरजेंसी फंड से लिए गए हैं. सरकार का कहना है कि वेलफेयर स्कीम को ठीक ढंग से लागू करने के लिए सर्वे किया गया है. सर्वे काम में शिक्षकों और राजस्व विभाग के कर्मचारियों को लगाया गया था. बिहार में जातियों की 215 कैटेगरी बांटी गई थी. सरकार ने उपजातियों की गिनती नहीं करने की बात कही थी.
जातिगत सर्वे को लेकर कब क्या हुआ?
27 फरवरी 2020: जाति आधारित गणना कराने का प्रस्ताव बिहार विधानसभा में सर्वसम्मति से पास हुआ. उस वक्त बीजेपी-जेडीयू की सरकार थी.
23 अगस्त 2021: सीएम नीतीश कुमार, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की. इस प्रतिनिधिमंडल में सभी दलों के नेता शामिल थे.
1 जून 2022: जाति आधारित गणना के मुद्दे पर बिहार में सर्वदलीय बैठक हुई, सभी पार्टियों की सहमति बनी. उस वक्त भी बिहार में बीजेपी और जेडीयू की सरकार थी.
2 जून 2022: कैबिनेट से जातीय गणना से संबंधित प्रस्ताव पारित. सरकार ने 2 चरण में सर्वे कराने का आदेश दिया. 500 करोड़ रुपए बजट का प्रावधान किया गया.
07 फरवरी 2023: बिहार में सात जनवरी से जातीय गणना की शुरुआत हुई. सर्वे की जिम्मेदारी समान्य प्रशासन विभाग को सौंपी गई. नीतीश इसके मुखिया हैं.
15 अप्रैल 2023: जातिगत सर्वे के दूसरे फेज की शुरुआत हुई. इस फेज में सभी परिवारों से 17 प्रकार की जानकारी मांगी गई.
21 अप्रैल 2023: जातिगत सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. 27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने याचिककर्ताओं से हाईकोर्ट जाने के लिए कहा.
4 मई 2023: पटना हाईकोर्ट की एक बेंच ने 5 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वे पर अंतरिम रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने कहा कि विस्तार से सुनवाई के बाद फैसला करेंगे.
1 अगस्त 2023: विस्तार से सुनवाई के बाद पटना हाईकोर्ट ने सर्वे पर से स्टे हटाया. बेंच ने सर्वे को सही माना और कहा कि यह जरूरी है. सरकार का कहना था कि जाति समाज की सच्चाई है.
6 सितंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट जातिगत सर्वे पर सुनवाई की बात कही, लेकिन डेटा पब्लिश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई 3 अक्टूबर को करेंगे.