इजरायल का खुला समर्थन कर मोदी सरकार ने पूर्व पीएम वाजपेयी की स्पीच को भुला दिया 

इजरायल का खुला समर्थन कर मोदी सरकार ने पूर्व पीएम वाजपेयी की स्पीच को भुला दिया 
इजरायल पर हमास की तरफ से हमले के बाद पलटवार किया गया. गाजा पर लगातार एयर स्ट्राइक किए जा रहे हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि दुनिया में कहीं भी खून-खराबा होता है तो उसमें निर्दोष लोग, औरतें, बच्चे मारे जाते हैं या उसमें प्रभावित होते हैं. ऐसे में स्वभाविक तौर पर दुनिया को इससे चिंतित होना चाहिए. लेकिन, जहां तक फिलिस्तीन का मामला है तो जब 1948 में एक नया देश बनाया गया. 

इसके बाद इजरायली सरकार की शह से फिलिस्तीन के पास केवल 12 फीसदी जमीन ही उनके पास बच पाई. आप जरा सोचिए कि आपके देश में कोई बाहरी शक्ति आकर आपको शरण लेने की बात कहे, ऐसे में कोई क्या करेगा. 

दरअसल, ये पूरा मामला तब का है जब हिटलर लोगों को तंग कर रहे थे, उस वक्त इधर-उधर से प्रभावित होकर लोग वहां पर गए. आज वहां के लोग अपने ही देशों से निर्वासित होकर कैंप में रहने को मजबूर हैं. गाजा पट्टी में कैंप लगे हुए हैं, जिसमें इजरायल की तरफ से लगातार बमबारी की जा रही है.

अपने ही देश में फिलिस्तीनी लोग निर्वासित 

ऐसे में निर्दोष लोगों को चाहे हमास ने मारा हो या फिर इजरायल मार रहे हों, उसे कोई भी उचित नहीं ठहराएगा. लेकिन, 1948 से जमीन पर कब्जे की शुरुआत हुई तब जहां 100 फीसदी जमीन थी तो आज फिलिस्तीन के लोगों के पास सिर्फ 12 फीसदी जमीन बच गई है.

ऐसे में दुनिया को जरूर इस पर गौर करना चाहिए. भारत हमेशा से फिलिस्तीन के जायज हक की लड़ाई के लिए कहता आया है. अभी अपने रुख में मोदी सरकार ने थोड़ा बदलाव किया है. हम ये बात समझ सकते हैं कि उन्होंने डोमेस्टिक पॉलिटिक्स की वजह से ऐसा किया है. एंटी इस्लामिक सेंटिमेंट इस देश में बढ़ाया जा रहा है, उसे खुश करने के लिए मोदी सरकार ने अपना रुख बदला है.

मोदी सरकार ने बदला अपना स्टैंड

अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ वर्षों पहले की अगर स्पीच देखें तो वे खुद बीजेपी के नेता रहे, प्रधानमंत्री रहे और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले बीजेपी की तरफ से वहीं प्रधानमंत्री थे, ऐसे में वाजपेयी का ये मानना था कि जो इजरायलियों ने फिलिस्तीन की जमीन को कब्जा कर रखा है, उसे छोड़ना पड़ेगा. ये स्पीच वाजपेयी की है, जो सोशल मीडिया और रिकॉर्ड में उपलब्ध है.

यानी, किसी का आप घर कब्जा कर लेंगे, उन लोगों का, जिन्होंने यूएनओ के कहने पर बसाया था, मतलब जब वे लोग मुसीबत में थे उस वक्त फिलिस्तीनियों ने साथ दिया, उसके बाद उन्हें ही शरणार्थी बना दिया गया.

फ्रांस लिटरेचर की मशहूर कहानी

फ्रांस लिटरेचर की एक बहुत मशहूर कहानी है, रेगिस्तान में जितनी गर्मी पड़ती है, रात को उतना ठंडा भी पड़ता है. एक आदमी ऊंट पर सवार होकर जा रहा था. शाम को एक टेंट के बाहर उसे बांध दिया. रात में ऊंट ने उससे कहा कि मालिक हमें ठंड बहुत लग रही है, मैं मुंह अंदर कर लूं? उसके मालिक ने कहा कि कर लो. उसके थोड़ी देर में ऊंट ने कहा कि मालिक मेरे पैर में बहुत सनसनाहट हो रही है. इसलिए मैं एक पांव अंदर कर लूं. थोड़ी देर बाद दूसरे पांव की इजाजत मांगी और तीसरे और फिर चौथे… उसके बाद ऊँट उस टैंट के अंदर चला गया. वहां पहुंचकर अपने मालिक से ऊंट कह रहा है कि इस टेंट में दो लोग नहीं रह सकते हैं, इसलिए आप इस टेंट से निकल जाइये.

एकदम यही सलूक फिलिस्तीनियों के साथ इजरायल के लोगों ने किया है. इसलिए, पूरी दुनिया को इस पर चिंता होनी चाहिए और इसके स्थायी समाधान के लिए काम करना चाहिए. 

दुनिया में 57 मुस्लिम देश हैं. लेकिन, इसको इस मोड़ पर नहीं जाना चाहिए. इससे बड़ी तबाही होगी. अमेरिका, इजरायल की तरफ से आ गया. दूसरी तरफ रुस विरोधी खेमे की तरफ से आ गया. मुस्लिम देश उधर चले गए. बहुत से ऐसे देश जो न मुस्लिम हैं और न यहूदी हैं, वे दूसरी तरफ जा रहे हैं… तो आने वाले दिनों में मानवता के लिए बड़ा खतरा होगा.

इसलिए अभी ये चाहिए कि जो माहौल है, ऐसे में दुनिया के बड़े देशों को सामने आकर पहल करनी चाहिए और जो निष्पक्ष देश हैं, उनको इसमें भूमिका निभानी चाहिए. अगर इसे नहीं रोका गया तो बहुत बड़ी त्रासदी हो सकती है.  

जहां तक भारत के स्टैंड की बात है तो वे हमेशा से फिलिस्तीन के साथ रहा है, क्योंकि भारत हमेशा से न्याय प्रिय देश रहा है. चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, जब मोरारजी देसाई कि सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी तक उसमें मंत्री थे, उस सरकार का भी ये मानना था कि फिलिस्तीन की जो जमीन इजरायल ने जबरदस्ती कब्जा कर रखा है, उसे खाली करना होगा.

स्वभाविक तौर पर भारत का स्टैंड मोदी जी की सरकार में बदला है. हालांकि, उन्होंने जब ट्वीट किया तो उसमें उन्होंने जरूर चिंता व्यक्त की थी. इसलिए निष्पक्ष हमारा रुख होना चाहिए. हमारी विदेश नीति इससे तय नहीं होनी चाहिए कि ऐसा करने से कौन वोट करेगा और कौन वोट नहीं करेगा. भारत की इसमें अहम भूमिका हो सकती है, अगर वे अपने आपको निष्पक्ष रखे. लेकिन, अगर किसी कि पार्टी बन गए तो दुनिया को भी आपको मानने में परेशानी होगी.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं कि …..न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *