आपराधिक करतूतों का ब्यौरा देंगे प्रत्याशी ?

आपराधिक करतूतों का ब्यौरा देंगे प्रत्याशी …
कांग्रेस-BJP के बाद AAP में भी बगावत; उम्मीदवारी वापस लेने के बाद भी जीता चुनाव
  • उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने से बच रही हैं पार्टियां। अखबारों और टीवी चैनलों में तीन बार प्रसारण का हुक्म। वोट के 48 घंटे पहले भी मतदाताओं को सूचना देने से घबरा गए नेता।
  • बीजेपी में बगावत के सुरों पर नहीं लग रही लगाम। प्रदेश के नेतृत्व पर उठने लगे सवाल। आम आदमी पार्टी को भी लग रहे झटके।
  • कांग्रेस के बड़े नेताओं ने पुतला गोबर कांड के बाद चुप्पी साधी, लेकिन दिग्विजय ने पत्रकारों से कहा, सारे उम्मीदवार पार्टी के चार सर्वेक्षणों के बाद तय हुए। आलाकमान के गुस्से के बाद बयानों पर संयम। कुछ टिकटों पर पुनर्विचार संभव।

और अब विस्तार से बात

चुनाव आयोग के नए फरमान ने दलों और उम्मीदवारों की नींद उड़ा दी है। इसके मुताबिक क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले प्रत्याशियों को अपनी आपराधिक करतूतों का ब्यौरा आयोग को तो देना ही है, साथ ही अखबारों और टेलीविजन में विज्ञापन देकर मतदाताओं को बताना है कि उन पर कितने मामले चल रहे हैं। विज्ञापन उन्हें एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन बार देने होंगे। विज्ञापन भी बड़ा-बड़ा होगा। हर मामले का ब्यौरा अलग अलग लाइन में होना जरूरी है।

चंबल में डाकू लड़वाते थे चुनाव

वैसे नेताओं और अपराधियों का गठजोड़ लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। एक जमाने में बिहार की निजी सेनाएं नेताओं की जीत पक्की करती थीं। उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात में भी अपराधियों की मदद से अपराधी सदन में पहुंचते रहे। चंबल के खतरनाक डाकू चुनाव नहीं लड़ते थे, लेकिन लड़वाते थे। फूलन देवी समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुनी गई थीं। गंभीर आरोपों का सामना कर रहे सुखलाल जेल में बंद थे और सतना से चुनाव जीते। उन्होंने अर्जुन सिंह जैसे बड़े कांग्रेस नेता को हराया था। पन्ना की एक सीट से भैयाराजा जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। उनका नारा था। मुहर लगेगी हाथी पर, नहीं तो गोली खाओ छाती पर, और लाश मिलेगी घाटी पर।

चंबल का खतरनाक डाकू निर्भय गुर्जर 40 सीटों पर उम्मीदवार जिताने का दावा करता था।
चंबल का खतरनाक डाकू निर्भय गुर्जर 40 सीटों पर उम्मीदवार जिताने का दावा करता था।

निर्भय गुर्जर का 40 सीटों पर दावा

चंबल का खतरनाक डाकू निर्भय गुर्जर 40 सीटों पर उम्मीदवार जिताने का दावा करता था। ये उम्मीदवार एक पार्टी के नहीं होते थे। सभी दलों में उसके लोग रहते थे।वह दलों को चंदा भी देता था। मेरे साथ कैमरे पर उसने 2003 के चुनाव से पहले घंटों बात की थी और अपनी चुनावी रणनीति बताई थी।

कांग्रेस-बीजेपी के बाद आप में बगावत

कांग्रेस और बीजेपी बगावत को काबू में नहीं कर पाई थीं कि आम आदमी पार्टी में भी सिलसिला शुरू हो गया। पार्टी के बुंदेलखंड के वरिष्ठ नेता बीपी चंसौरिया और उनके समर्थकों ने टिकट नहीं मिलने के कारण पार्टी से विद्रोह कर दिया। उधर गुजरात से सटे झाबुआ जिले के आम आदमी पार्टी के जिला अध्यक्ष और उनके समर्थक नाराज होकर कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें जिला महामंत्री बना दिया।

बीजेपी में पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह के बेटे हर्षवर्धन ने हजारों समर्थकों के साथ विद्रोही रैली निकाली। इसी तरह कांग्रेस में भी बिजावर, निवाड़ी और मुरैना के प्रत्याशियों के खिलाफ तीखी आक्रोश है। खुल्लमखुल्ला विरोधी रैलियां निकल रही हैं।

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