भाजपा समर्थित निर्दलीय भी हारा
भाजपा समर्थित निर्दलीय भी हारा …
जब गुना जिले से भाजपा आखिर तक अपना उम्मीदवार नहीं कर सकी थी घोषित …
चंदेरी विधानसभा सीट
अशोकनगर जिले की चंदेरी विधानसभा सीट पर 1980 का चुनाव छोड़ दें, इसके अलावा जितने भी विधानसभा चुनाव हुए, उनमें निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ते रहे।
● 2018 के चुनाव में 17 में से 7, 2013 में 10 में से छह, 2008 में 14 में से 8, 2003 में 7 में से एक, 1998 के चुनाव में 7 में से 4 प्रत्याशी निर्दलीय होकर अपना भाग्य आजमा रहे थे। 1980 में कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर हुई थी।
गुना विधानसभा
● गुना विधानसभा सीट के लिए 2013 में हुए चुनाव पर नजर डाली जाए तो यहां भाजपा अंत समय तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई थी। यहां से निर्दलीय प्रत्याशी जगदीश खटीक को भाजपा ने समर्थन दिया, जिसका प्रचार उस समय के भाजपा नेता करते रहे थे।
● इसके बाद भी भाजपा समर्थित यह प्रत्याशी मतगणना में चौथे नम्बर पर रहे थे। उस समय यहां से भारतीय जन शक्ति पार्टी के प्रत्याशी राजेन्द्र सलूजा विजयी हुए थे। उस समय भी इस सीट से 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे। इतने में पांच निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे।
● 2018 में 15 में से 6, 2008 में 9, 2003 में 4, 1998 में दो निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़े थे। अभी तक के हुए चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी जगदीश खटीक के अलावा कोई भी निर्दलीय प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाया था।
गुना. गुना जिले की राघौगढ़ एक ऐसी विधानसभा सीट रही, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ते रहे। सन् 1977 के विधानसभा चुनाव में उनके खिलाफ बहुजन समाज पार्टी के साथ-साथ कोई भी निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरा था। ऐसे ही 1980 के चुनाव में अशोकनगर जिले की चंदेरी विधानसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच चुनावी मुकाबला हुआ, यहां से न तो बसपा ने अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा और न ही कोई निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में था। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा चुनाव जीते थे। उधर कई ऐसी सीट हैं जहां निर्दलियों की वजह से कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों के जीत का गणित बिगड़ता रहा है हालांकि गुना और मुुंगावली में एक-एक चुनाव में निर्दलीय अपनी जमानत बचा पाए हैं, बाकी जगह तो निर्दलीयों की जमानत तक जब्त हो गई थी।
किन सीटों पर क्या रही है स्थिति
● बमौरी सीट
बमौरी विधानसभा परिसीमन के बाद 2003 में अस्तित्व में आई थी। यहां से 2020 में हुए उपचुनाव में 12 में से 4 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़े थे, इनमें से एक भी जमानत नहीं बच पाई थी। 2018 के चुनाव में पूर्व मंत्री केएल अग्रवाल निर्दलीय होकर चुनाव मैदान में उतरे, उन्होंने 28 हजार वोट पाए थे, वे ही ऐसे थे जिन्होंने निर्दलीय रहकर अपनी जमानत बचा पाई थी जबकि इस चुनाव में 18 में से पांच निर्दलीय चुनाव मैदान मेें थे। 2013 के चुनाव में 13 में से 5 और 2003 में 22 में से 13 निर्दलीय चुनाव लड़े थे। इनमें से किसी एक की भी जमानत नहीं बच पाई थी।
● चांचौड़ा सीट
गुना जिले की चांचौड़ा विधानसभा सीट पर 1993 में पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे, यहां से निर्दलीय प्रत्याशी के चुनाव मैदान में न उतरने पर कांग्रेस प्रत्याशी शिवनारायण मीना और भाजपा के रामबल्लभ कांसट के बीच चुनावी मुकाबला हुआ था। जिसमें शिवनारायण मीना चुनाव जीत गए थे। 1977 के चुनाव में भी दो पार्टियां यानि कांग्रेस और जनता पार्टी आमने-सामने थी, उस समय भी कांग्रेस के कृष्ण बल्लभ विजयी हुए थे। भाजपा से कैलाश नारायण ने यहां चुनाव लड़ा था। इन वर्षों के अलावा अन्य वर्षों में हुए चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी भी अपना भाग्य आजमाते रहे हैं।
● अशोकनगर सीट
अशोकनगर जिले की मुख्यालय वाली सीट अशोकनगर के चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो हर विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरते रहे हैं। जो चुनाव तो नहीं जीते, हां इतना जरूर है कि ये प्रत्याशी भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों के जीत का गणित बिगाड़ते रहे हैं। 2020 में 9 में से पांच, 2018 में 9 में से पांच, 2018 में 11 में से दो, 2013 में 8 में से 4, 2008 में 10 में से चार, 2003 में 8 में से 3, 1998 में 8 में से 4, 1993 में 12 में से 6, 1990 के चुनाव में दस में से पांच, 1985 में 6 में से 3, 1980 के चुनाव में पांच से एक निर्दलीय प्रत्याशी था। 1977 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों की ऐसी बाढ़ आई कि 16 में से 14 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरकर अपना भाग्य आजमा रहे थे।
राघौगढ़ सीट
राघौगढ़ विधानसभा सीट से 2018 में 9 में से 3, 2013 में 12 में से 6, 2008 में 11 में से 5, 2003 में 10 में से 7, 1998 में 5 में से 2, 1993 में 13 में से 7, 1990 में 12 में से 7, 1985 में 3 में से एक, 1980 में 3 में से एक, 1977 में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और जनता पार्टी के दिनेश चन्द्र शर्मा के बीच सीधा मुकाबला हुआ था। 1972 में दो निर्दलीयों ने भी अपना भाग्य आजमाया था।
अशोकनगर जिले की मुंगावली विधानसभा सीट के पिछले चुनावी आंकड़े बताते हैं कि 1990 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी आनंद कुमार ने ने 17754 वोट पाकर दूसरे नम्बर पर रहे थे। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी गजराम चुनाव लड़े थे, वे मात्र 4454 वोट पाकर पांचवे नम्बर पर रहे थे जबकि गजराम से अधिक वोट पाने वालों में तीसरे नम्बर निर्दलीय प्रत्याशी चन्द्रभान 11453 वोट लेकर और निर्दलीय प्रत्याशी ताजुल खान 4850 चौथे नम्बर पर रहे थे। इससे पूर्व 1985 के चुनाव में पांचवे नम्बर पर रहने वाले कांग्रेस प्रत्याशी गजराम सिंह 20052 वोट लेकर विजयी घोषित हुए थे। जबकि दूसरे नम्बर पर निर्दलीय आनंद कुमार 15675 और भाजपा प्रत्याशी चन्द्रभान सिंह 10 हजार 434 वोट लेकर तीसरे नम्बर पर रहे थे। इसके अलावा चुनावी साल 2018 में 19 में से 9, 2013 मे 14 में से 9, 2008 में 12 में से 4, 2003 मे 6 में से दो, 1998 में 5 में से एक, 1993 में 8 में से दो निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे। 1977 का चुनावी साल इसलिए याद रहा क्यों कि वहां 12 में से 10 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। उस समय यहां से जेएनपी के चन्द्रमोहन रावत और कांग्रेस के कलेक्टर सिंह चुनाव मैदान में उतरे थे, इनमें चन्द्रमोहन रावत विजयी हुए थे।