सुप्रीम कोर्ट से रिजर्वेशन पर 50% की लिमिट ? फिर बिहार 75% रिजर्वेशन कैसे देगा

 सुप्रीम कोर्ट से रिजर्वेशन पर 50% की लिमिट:मराठा, पटेल, जाट आरक्षण अटके; फिर बिहार 75% रिजर्वेशन कैसे देगा

1992 में सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संविधान पीठ ने इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार केस में ऐतिहासिक फैसला देकर 50% सीमा तय की थी। इसी लिमिट की वजह से महाराष्ट्र, आंध्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान के फैसले पलटे जा चुके हैं। ऐसे में क्या बिहार में 75% आरक्षण देने की कवायद टिक पाएगी?

रिजर्वेशन में 50% की अधिकतम लिमिट कहां से आई और जब सीमा तय है तो बिहार 75% रिजर्वेशन कैसे दे पाएगा

इंदिरा साहनी केस क्या है, जो फिलहाल रिजर्वेशन में 50% सीलिंग का आधार

1991 की बात है। केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने जनरल कैटेगरी को आर्थिक आधार पर 10% रिजर्वेशन देने का आदेश जारी किया था। इसका कई जगह विरोध भी हो रहा था। पेशे से वकील और पत्रकार इंदिरा साहनी दिल्ली के झंडेवालन से गुजर रही थीं, तब उन्होंने देखा कि कुछ युवा और बच्चे नरसिंह राव सरकार के फैसले का विरोध कर रहे थे।

इंदिरा साहनी, मंडल कमीशन के खिलाफ पहले से ही एक याचिका डाल चुकी थीं। इंदिरा एक इंटरव्यू में बताती हैं कि उस विरोध प्रदर्शन ने मुझ पर गहरा असर किया और दो दिन के भीतर ही मैंने इस 10% रिजर्वेशन के खिलाफ याचिका दायर कर दी। शुरुआत में ये मामला दाे जजों की पीठ देख रही थी, पीठ में जज दो से तीन, पांच, सात और नौ हो गए थे।

इंदिरा साहनी केस कारण रुका मराठा, जाट और पटेल रिजर्वेशन

आंध्र प्रदेश: जनवरी 2002 में आंध्र सरकार ने टीचरों की भर्ती में एसटी कैटेगरी के लिए 100% रिजर्वेशन कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का आदेश खारिज करते हुए कहा था कि इस फैसले से OBC और SC भी प्रभावित हुए हैं।

महाराष्ट्र: 2021 में, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए 16% रिजर्वेशन पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अदालत में पेश किए गए आंकड़ों में कोई असाधारण स्थिति दिखाई नहीं देती। मराठा समुदाय को 16% रिजर्वेशन दिए जाने के बाद राज्य में कुल रिजर्वेशन का आंकड़ा 68% तक हो गया था।

छत्तीसगढ़: सितंबर 2022 में हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के 2011 में पारित एक कानून को रद्द कर दिया, जिसमें SC, ST, OBC का कोटा बढ़ाकर 58% तक कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति साबित नहीं कर सकी जो 50% की सीमा का उल्लंघन करने लायक हो।

ओडिशा और राजस्थान: हाईकोर्ट ने 2017 में दोनों ने राज्य के उन कानूनों को रद्द कर दिया, जिनमें कुल रिजर्वेशन 50% से अधिक बढ़ा दिया था।

गुजरात: सरकार ने पटेल आंदोलन को शांत करने के लिए आर्थिक आधार पर 10% रिजर्वेशन दिया था। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया था कि यह 50% की मर्यादा का उल्लंघन है।

अब बिहार ने 75% रिजर्वेशन का प्रस्ताव पारित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की 50% लिमिट होने के बावजूद इसे लागू कराने के 3 तरीके हैं…

1. बिहार सरकार कोर्ट में साबित कर दे कि ये विशेष परिस्थिति है

  • 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस का फैसला देते समय कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50% होनी चाहिए, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इस लिमिट को तोड़ा भी जा सकता है।
  • मप्र हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और आरक्षण मामलों के जानकार रामेश्वर सिंह ठाकुर बताते हैं कि अगर कोई सरकार कोर्ट को ये बताए कि सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से पिछड़ी कुछ विशेष जातियों या वर्ग को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए रिजर्वेशन 50% की सीमा से ज्यादा होना चाहिए। इससे संविधान के मूल ढांचे को नुकसान भी नहीं होगा। कोर्ट इन तर्कों और प्रमाणों से संतुष्ट हो जाता है तो रिजर्वेशन 50% से ज्यादा हो सकता है।
  • पिछले सालों में कई सरकारों के रिजर्वेशन बढ़ाने के मामले सुप्रीम कोर्ट में औंधे मुंह गिरे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार के CM नीतीश कुमार ने अपनी जमीन मजबूत कर रखी है। उन्होंने सबसे पहले जातिगत जनगणना करवाई है, जिससे उनके दावे को मजबूती मिल सके। हालांकि, ये कोर्ट पर डिपेंड करेगा कि वो इसे कितना सही मानता है।

2. संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करा ले, जिससे न्यायिक समीक्षा न हो सके

  • बिहार सरकार के पास दूसरा विकल्प है कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव को संविधान की 9वीं अनुसूची के तहत रखा जाए। इसके लिए राज्य सरकार अपने बिल को केंद्र के सामने पेश करेगी। यदि केंद्र इसे संविधान की 9वीं में रख लेता है तो उसे इस फैसले को न्यायिक समीक्षा से सुरक्षा मिल जाएगी। मतलब कोर्ट में इसकी समीक्षा नहीं हो पाएगी।
  • 1992 में इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्वेशन की लिमिट को 50% माना था। ये तमिलनाडु की जयललिता सरकार के लिए सबसे कठिन समय था। वहां पहले से ही SC, SC, OBC को मिलाकर कुल 69% रिजर्वेशन चला आ रहा था। पहले जयललिता हाईकोर्ट गईं, लेकिन कोर्ट ने कहा कि आपको आरक्षण 50 तक लाना ही होगा। CM जयललिता ने स्मार्टनेस दिखाते हुए सबसे पहले 69% रिजर्वेशन का एक बिल विधानसभा से पास कराया और उसे केंद्र की नरसिंह राव सरकार के सामने रखा। जयललिता ने केंद्र के सामने मांग रखी कि वो संविधान संशोधन कर इसे 9वीं अनुसूची में शामिल करे ताकि यह कोर्ट की न्यायिक समीक्षा की सीमा से बाहर हो जाए। ऐसा हुआ भी और इसी वजह से संविधान में 76वां संशोधन हुआ।
जयललिता जानती थीं कि अगर वो नरसिंह राव की सरकार से समर्थन वापस ले लेती हैं, तो सरकार गिर जाएगी। इसी दबाव के चलते तमिलनाडु को 69% रिजर्वेशन मिला।
  • दअरसल, राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 में तमिलनाडु में लोकसभा और विधानसभा इलेक्शन एक साथ हुए थे। जयललिता की AIADMK और कांग्रेस के बीच गठबंधन था। जयललिता CM बनीं और AIADMK के उस समय 11 लोकसभा सीटें जीती थीं। जब इंदिरा साहनी केस का फैसला आया तब नरसिंह राव सरकार संकट में चल रही थी।
  • अगर जयललिता समर्थन वापस ले लेतीं तो सरकार अल्पमत में आ जाती। अपनी सरकार बचाने के लिए कांग्रेस के नरसिंह राव को जयललिता की बात माननी पड़ी थी और इस तरह आज तक तमिलनाडु में 69% रिजर्वेशन कायम है।
  • हालांकि, शीर्ष कोर्ट कह चुका है कि अगर संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ कोई कानून है तो 9वीं अनुसूची के कानूनों की भी समीक्षा की जा सकती है।

3. संविधान में संशोधन करके भी 50% के पार भी रिजर्वेशन देना मुमकिन

  • 50% की तय सीमा से ज्यादा रिजर्वेशन देने का एक तरीका संविधान संशोधन है। केंद्र सरकार ने 2019 में संविधान संशोधन करके ही आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में एडमिशन में अलग से 10% रिजर्वेशन दिया था। इस प्रावधान के बाद केंद्र सरकार में कुल रिजर्वेशन 49.5% से बढ़कर 59.5% हो गया। यह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय 50% की सीमा से ज्यादा था।
  • दरअसल, केंद्र सरकार ने संविधान के भाग 3 में दिए गए समानता के अधिकार के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में संशोधन किया था। दोनों की अनुच्छेदों में एक-एक सबसेक्शन जोड़े गए, जिनमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों के समूह के लिए सरकारी नौकरियों और एडमिशन्स में अधिकतम 10% रिजर्वेशन दिया जा सकेगा। वहीं आर्थिक रूप से कमजोर कौन होगा, इसकी परिभाषा केंद्र सरकार नोटिफिकेशन के जरिए तय करेगी। इसी 104वें संशोधन के आधार पर केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10% रिजर्वेशन दिया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2022 में केंद्र सरकार के इस तरीके को वैध माना। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस मामले में 50% की सीमा का उल्लंघन संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं है। यह प्रावधान संविधान संशोधन के जरिए किया गया है कि इसलिए इसकी समीक्षा केवल इसी आधार पर हो सकती है कि यह संशोधन संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन तो नहीं करता।
  • जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपने फैसले में विस्तार से 50% की सीमा का जिक्र किया। उनके फैसले के दो हिस्से थे। पहला यह कि सुप्रीम कोर्ट की ओर बनाई गई अधिकतम 50% रिजर्वेशन की सीमा संविधान की धारा 15(4), 15(5) और 16(4) के संदर्भ में है। ये तीनों धाराएं SC, ST और OBC’s को सरकारी नौकारियों और एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन में रिजर्वेशन देने से जुड़ी हैं। यानी 50% की सीमा केवल SC, ST और OBC रिजर्वेशन के लिए है, किसी और समूह के लिए नहीं। फैसले के दूसरे हिस्से में जस्टिस माहेश्वरी का कहना था कि 50% की सीमा को घटाया-बढ़ाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील …. गुप्ता के मुताबिक बिहार सरकार को आरक्षण की सीमा बढ़ाने का अधिकार है, लेकिन इस बारे में केंद्र सरकार की सहमति के साथ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करना भी जरूरी है। कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं करने, संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण करने और आरक्षण सीमा की लक्ष्मण रेखा को पार करने पर बिहार सरकार के प्रस्तावित कानून पर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से रोक लग सकती है। इंदिरा साहनी मामले में 9 जजों की बेंच ने 1992 में फैसला दिया था। अब 31 साल बाद आरक्षण सीमा पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट में 11 जजों की संविधान पीठ के गठन की मांग भी हो सकती है।

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