गांव का निठल्ला मनोज कैसे बना IPS ?

गांव का निठल्ला मनोज कैसे बना IPS …
10वीं पास करने उस स्कूल में एडमिशन लिया, जहां नकल हो; आटा चक्की-टेंपो भी चलाया

‘पूरे चंबल रेंज में असल में कोई बागी पैदा हुआ है तो वह मनोज है। उसी ने हमें सिखाया कि बागी होना क्या होता है। ढेंचू था जी वो लड़का। यूपीएससी का यू भी नहीं समझता था और आज देखो..’

ये बात कहते हुए मनोज के बचपन के दोस्त एलएन त्यागी की आंखों में चमक आ जाती है। त्यागी, जिस मनोज की बात कर रहे हैं, वो महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी मनोज शर्मा हैं।

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 12th Fail आईपीएस मनोज शर्मा की जिंदगी पर आधारित है। मनोज शर्मा मूलत: मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के जौरा तहसील के रहने वाले हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि एक छोटे से गांव का लड़का 12वीं में फेल हो गया क्योंकि उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था। इसी लड़के ने देश के सबसे टफ एग्जाम में से एक यूपीएससी क्रेक किया।

….. की टीम आईपीएस मनोज शर्मा के पुश्तैनी गांव बिलगांव पहुंची। ग्वालियर से 85 किलोमीटर दूर बिलगांव वैसा ही है, जैसा फिल्म में दिखाया गया है। गांव में सड़क किनारे ही मनोज शर्मा का पुश्तैनी मकान है। यहां पहुंचकर हमने बात की आईपीएस मनोज शर्मा की जिंदगी से जुड़े असली किरदारों से। उस स्कूल में भी पहुंचे जहां उन्होंने पढ़ाई की थी, हालांकि गांव के लोगों ने अभी तक मनोज पर बनी फिल्म को नहीं देखा है।

ताई बोलीं- हम निठल्ला कहते थे, बच्चों को उसके साथ खेलने नहीं देते थे

जब हम मनोज के घर पहुंचे तो उनकी ताई रामबेटी और ताऊ रमेश राजौरिया मिले। मनोज के पिता भी इसी घर में रहते हैं लेकिन जिस समय हम पहुंचे, वो गांव से बाहर गए हुए थे। मनोज की मां मुरैना में रहती हैं। उनकी ताई ने कहा- मनोज बचपन से ही बहुत सीधा लड़का था। घर के बाकी लोग जहां छोटी-छोटी बातों पर छाती तान लेते थे, वो शांत बैठा रहता था। वह था बड़ा निठल्ला, दिनभर सिर्फ गांव की गलियों में भटकता रहता था।

ताई एक किस्सा सुनाती हैं- एक बार की बात है, मनोज के साथ मेरी दोनों बेटियां जूली और मैना बाहर खेल रही थीं। मैंने जैसे ही उन्हें मनोज के साथ खेलते हुए देखा, मैं गुस्सा हो गई। मैंने बेटियों से कहा- इस निठल्ले के साथ क्यों खेल रही हो, निठल्ला बनना है क्या? चलो घर के भीतर। ये सुनकर मनोज ने कहा था- ताई इन्हें क्यों डांट रही हो? तेरी कसम देख लेना, एक दिन बड़ा अफसर बनूंगा।

थोड़ा ठहरकर ताई बोलीं – हमें तब नहीं लगा था कि मोड़ा आईपीएस बन जाएगा। उसकी जिद ने उसे आईपीएस बनाया। उसने आज जो मुकाम पाया है, वह अपने दम पर पाया है। परिवार में किसी ने उसकी मदद नहीं की। उसे अपने सपने पर यकीन था।

तंगी में पूरे गांव का आटा पीसा, दूसरे के घरों में सफाई तक की

ताई ने बताया- हमारा संयुक्त परिवार है। मेरे ससुर के पास एमए इंग्लिश की डिग्री थी। परिवार पढ़ा-लिखा था। उस समय पैसा भी ठीक-ठाक था। जब मनोज ने होश संभाला, तब घर के आर्थिक हालात बिगड़ गए। घर से दूर जाकर पढ़ने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे, इसलिए घर बैठकर ही ख्वाब बुनता रहता था। वो थोड़ा रुककर कहती हैं- लेकिन इससे तो घर चलता नहीं बेटा। दाे-चार पैसे बने इसलिए हमने उसे घर की ही चक्की पर काम पर लगा दिया था।

ताई बड़े दिलचस्प अंदाज में कहती हैं- उसने पूरे गांव का आटा पीसा है। दूसरे के घरों में सफाई तक की है। उसका छोटा भाई टेंपो चलाया करता था। मनोज भी उसी के साथ टेंपो चलाने लगा था। इसके बाद ताई थोड़ा दार्शनिक अंदाज में कहती हैं- 12वीं फेल न हाेता तो उसकी जिंदगी की कहानी यहीं तक सिमटकर रह जाती। मेरी बड़ी बेटी जूली और मनोज ने साथ में 12वीं का एग्जाम दिया था, बेटी पास हो गई और मनोज फेल।

उसे 12वीं फेल होने का ऐसा झटका लगा कि गांव-घर सब छोड़कर ग्वालियर चला गया। ग्वालियर में रहकर 12वीं पास की और फिर बीए किया। इसके बाद दिल्ली जाकर यूपीएससी एग्जाम पास की। गांव से नहीं निकलता तो निठल्ला ही रह जाता।

पत्नी श्रद्धा ने सपोर्ट किया, उसकी मदद से ही हासिल किया लक्ष्य

साल 1992 में एक फिल्म आई थी- राजू बन गया जेंटलमेन। फिल्म का एक गाना बड़ा फेमस हुआ था- सर्दी-खांसी न मलेरिया हुआ, मैं गया यारों मुझको लवेरिया हुआ। मनोज के ताऊ बताते हैं कि मनोज और उसके चार दोस्त दिनभर इसी गाने को गुनगुनाते रहते थे।

मनोज के ताऊ-ताई कहते हैं- शायद मनोज को अंदाजा नहीं था कि एक दिन सही में उन्हें लवेरिया हो जाएगा और ये ही उन्हें जेंटलमेन बना देगा। ताई कहती हैं- मनोज की मदद केवल उसकी वाइफ श्रद्धा ने की है। वह बहुत अच्छी लड़की है। वो न होती तो मनोज से तो अकेले कुछ नहीं होने वाला था।

बातचीत के दौरान ताऊ, मनोज और श्रद्धा की शादी का एक वाकया याद करते हुए खूब हंसने लगते हैं। उन्होंने बताया- श्रद्धा, शादी के बाद पहली बार घर आई थीं। गांव की ठेठ भाषा में मनोज ने उसे मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा- ताऊ हैं, आशीर्वाद लो यानी चरण स्पर्श कर लो।

श्रद्धा को कुछ समझ नहीं आया, वह इधर-उधर देखने लगी। इसके बाद मैंने उसे इंग्लिश में समझाया- ही इज सेइंग दैट, टच माय फीट एंड टेक ब्लेसिंग्स। ये सुनकर मनोज खूब हंसा था। उसने श्रद्धा से कहा था- ताऊ से अच्छी इंग्लिश बोलने लगो, तभी बात करना।

दोस्त बोले- उससे बेपरवाह लड़का मैंने आज तक नहीं देखा

मनोज के घर से हम पहुंचे जौरा के उस स्कूल में, जहां मनोज ने 9वीं क्लास तक पढ़ाई की। यहां मुलाकात हुई, उनके बचपन के दोस्त लक्ष्मी से। लक्ष्मी यानी लक्ष्मीनारायण त्यागी। त्यागी, मनोज के साथ 9वीं कक्षा तक जौरा के बॉयज स्कूल में पढ़े हैं। त्यागी बताते हैं- मुझे याद है, उससे मेरी पहली मुलाकात साल 1988 में हुई थी। हम दोनों ने स्कूल में एक साथ दाखिला लिया था। उससे बेपरवाह लड़का मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा था।

मैं क्लास में टॉप करने के लिए पढ़ता था और वो केवल पास होने के लिए। हमेशा से ही बैकबेंचर था। बाकी लड़के जिंदगी की कश्मकश में उलझे रहते थे। वह बिंदास चलती क्लास से उठकर पोहे खाने चला जाता था। फ्यूचर में आगे क्या करना है? क्या बनना है? ये सब बातें न वो खुद करता था, न किसी की सुनता था। उसे बस एक ही बात सताती थी कि हमारे स्कूल में चीटिंग क्यों नहीं होती?

त्यागी कहते हैं- जैसे-तैसे उसने बॉयज स्कूल से 9वीं क्लास पास की। 10वीं बोर्ड के लिए वह बिना पढ़े पास होने की जुगाड़ की तलाश में था। ऐसा नहीं था कि उसे किताबें पसंद नहीं थी। उसे केवल सिलेबस की किताबों से परहेज था। कहानी-किस्से पढ़ने में तो उसका कोई सानी नहीं था।

कैसे भी 10वीं पास करने की धुन के बीच उसे मुरैना के एक स्कूल के बारे में पता चला, जहां मास्टर जी ही नकल करवाते थे। ये स्कूल कौन सा था, आज तक मुझे पता नहीं चला। जैसे ही मनोज को इस स्कूल के बारे में पता चला, उसने तत्काल बॉयज स्कूल से टीसी कटवाकर उस स्कूल में दाखिला ले लिया था। मैं इस बात को लेकर श्योर नहीं हूं, लेकिन टीसी लेने का सभी यही कारण बताते हैं।

शिक्षक ने कहा- लड़का अच्छा था, न पढ़ने के लिए खूब डंडे मारे हैं

मनोज के घर से करीब दो किमी की दूरी पर टीकाराम शर्मा का घर है। गांव में लोग इन्हें गुरुजी कहते हैं। गुरुजी ने मनोज को आठवीं तक पढ़ाया है। वे कहते हैं- मनोज बस इतना पढ़ लेता था कि पास हो जाए। मध्यम स्तर का छात्र था। एक बात उसमें खास थी कि सज्जन था, बदमाशी कम करता था। पढ़ाई नहीं करने के लिए मैंने उसे खूब डांट लगाई है। उसे डंडे भी मारे हैं।

हालांकि, तब मुझे कभी ये एहसास नहीं था कि वो आईपीएस बन जाएगा। ऐसा उसमें कुछ दिखता भी नहीं था। तब बच्चे शिक्षकों से बातें भी कम करते थे। अनुशासन रहता था। उसने मेहनत की और आगे बढ़ा। अब तो उस पर फिल्म भी आ गई है लेकिन इसके बाद भी घमंड नहीं आया है। आज भी आता है तो पैर छूकर बराबर आशीर्वाद लेता है।

अखबार में खबर छपी तो दोस्तों को लगा कोई और मनोज होगा

मनोज के दोस्त एलएन त्यागी बताते हैं कि बॉयज स्कूल से निकलने के बाद मनोज से ज्यादा मुलाकात नहीं हुई। 1992 में शायद आखिरी बार मुलाकात हुई थी। लगभग 12 साल बीत चुके थे। मनोज को तो जैसे भुला ही चुके थे। तभी.. शायद 2005 में अखबारों में खबर आई कि मुरैना के मनोज ने यूपीएससी क्रैक कर लिया है।

दरअसल, हमारे स्कूल में एक और मनोज पढ़ता था। वो पढ़ने में ठीक था। मुझे और बाकी लड़कों को लगा कि शायद उस पढ़ने वाले मनोज ने एग्जाम क्लियर किया होगा। हमने तत्काल ही पूछताछ की। जब सच पता चला तो हम सब दोस्तों के मन में एक ही सवाल था- वो मनोज आखिर कैसे पास हुआ?

त्यागी बताते हैं- यूपीएससी क्रैक करने के बाद मनोज जौरा आया था। पुराने थाने के पास एक दुकान के बाहर हॉफ पैंट और बनियान में खड़ा था। मुझे तो उसे ऐसे देखकर ये भरोसा ही नहीं हुआ कि इस लड़के ने यूपीएससी एग्जाम क्लियर किया है। मुझसे रहा नहीं गया तो कन्फर्म करने के लिए उसी के पास जाकर पूछ लिया- क्यों भाई मनोज सुना है, यूपीएससी निकाल लिए हो?

उसने जवाब दिया- हां यार, लक्ष्मी निकाल तो लिया है। आइपीएस के लिए चयन हुआ है। अब आगे देखिए क्या होता है?

त्यागी बताते हैं- 12th फेल देखने के बाद मुझे ‘कैसे’ का भी जवाब मिल गया। असल में मनोज को खास बनाती है उसकी सहजता।

गांव के लोगों ने अब तक नहीं देखी है फिल्म

मनोज को उनके गांव में छोटा-बड़ा हर आदमी जानता है। स्थिति ये है कि हर बड़ा-बुजुर्ग खुद को मनोज का बाबा, चाचा या मामा बताता है। हालांकि, गांव में दो-चार लोग ही ऐसे हैं, जिन्होंने 12th फेल फिल्म देखी है। बाकी सिर्फ इतना ही जानते हैं कि मनोज पर कोई फिल्म आई है।

अब तक फिल्म क्यों नहीं देखी? इस सवाल पर कहते हैं- फिल्म उनके लिए है, जो मनोज के संघर्ष को नहीं जानते। हमने तो अपनी आंखों के सामने उसे बड़ा होते देखा है। गांव का सबसे सज्जन लड़का था मनोज। आज इन सभी के पास सुनाने के लिए मनोज के ढेरों किस्से हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *