कैसे अमेरिका को एक परिवार ने लगाई नशे की लत ?
कैसे अमेरिका को एक परिवार ने लगाई नशे की लत
2300 मुकदमे झेले, अब फिर सुनवाई; सालाना एक लाख मौतों के जिम्मेदार परिवार की कहानी
ये अमेरिका के एक बेघर और नशे से पीड़ित शख्स डैन का कहना है। नशे की लत की ये कहानी किसी एक डैन की नहीं है बल्कि अमेरिका में ऐसे लाखों डैन हैं। ये नशे के बिना अपनी जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं पाते।
अमेरिका में 2022 में एक लाख से ज्यादा लोगों ने ड्रग्स के ओवरडोज से जान गवां दी। इतना ही नहीं, नशे की वजह से अमेरिकी लोगों की औसतन उम्र दो साल कम हो गई है।
दुनिया के सबसे पावरफुल देश की इस हालत का जिम्मेदार ‘सैकलर’ परिवार को माना जाता है। इस परिवार के पास उस पर्ड्यू दवा कंपनी का मालिकाना हक था, जिसकी दवा को खाकर अमेरिका में लोगों को नशे की लत लगी थी। अमेरिका को ड्रग्स के संकट में धकेलने के बाद कंपनी ने 2019 में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था।
4 साल बाद सोमवार को अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की सुनवाई करना शुरू किया है कि क्या कंपनी ने पीड़ित लोगों के परिवार से जो मुआवजा देने का वादा किया था वो पूरा हो रहा है या नहीं?
….. अमेरिका में नशा कैसे एक महामारी बना, इसमें सैकलर परिवार और पर्ड्यू कंपनी को क्यों जिम्मेदार माना जा रहा है…
सबसे पहले ये 2 तस्वीरें देखिए…
ये तस्वीर ओहायो शहर के रॉजर मैकलेयर्न की है। ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से उसकी ऐसी हालत हुई है। ये उस वक्त की फोटो है, जब पुलिस उसे अस्पताल ले जा रही थी।
ये तस्वीर अमेरिका के ओहायो शहर में रहने वाली रेचल हॉफमैन की है। इसमें वो 6 महीने की गर्भवती हैं। बाद में नशे की आदत के चलते उसके बच्चे की कस्टडी छीन ली गई। अभी ये नशा मुक्ति केंद्र में अपना इलाज करवा रही हैं।
अमेरिका में जब दर्द की दवा ही बन गई नशे की लत
1990 के दशक की बात है। अमेरिका के डॉक्टरों ने माना कि वहां के लोगों को शरीर में दर्द की गंभीर समस्या है। इससे आराम पाने के लिए कोई उपाय निकाला जाना चाहिए।
इसके बाद अमेरिका में फार्मा कंपनियों के बीच दर्द की दवा बनाने की होड़ मच गई। इसमें पर्ड्यू नाम की कंपनी सबसे आगे निकली। इस दवा को बनाने में डॉक्टर रिचर्ड सैकलर ने अहम भूमिका निभाई। वो इस कंपनी के कई मालिकों में से एक थे। इनकी कंपनी ने जो दवा बनाई, उसका नाम था- ऑक्सीकोंटिन।
दवा बनाने के बाद पर्ड्यू कंपनी ने ऑक्सीकोंटिन का ट्रायल 15 जून 1993 से 15 अप्रैल 1994 तक किया। इस ट्रायल में 133 उम्रदराज लोगों को शामिल किया गया था, जिन्हें घुटनों और जोड़ों में दर्द की समस्या थी।
इस ट्रायल को केवल 63 लोग ही पूरा कर पाए। इनमें भी 82% लोगों को कई तरह के साइड इफेक्ट हुए। इसके बावजूद खतरे को नजरअंदाज करके कंपनी ने बताया कि ये दवा लंबे समय के लिए दर्द दूर करने में सक्षम है।
इसके बाद मार्केटिंग टीम दवा को लोगों के बीच ले जाने के लिए 500 डॉक्टर्स के साथ मीटिंग करती है। इनमें से 76% डॉक्टर दवा के इस्तेमाल के लिए राजी हो जाते हैं। दवा को मार्केट में उतार दिया जाता है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक रिचर्ड सैकलर ने दवा को प्रमोट करने के लिए बड़ी-बड़ी पार्टियां रखीं। इस बीच ये कंपनी जेनेवा के एक मशहूर डॉक्टर पियरे डेयर को दर्द दूर करने की मुहिम से जोड़ती है।
वो कंपनी की इस मुहिम की तारीफ करते हैं, लेकिन साथ ही वो इस दवा को खाने की आदत लगने की संभावना भी जाहिर करते हैं। हालांकि कंपनी इस बात को नजरअंदाज कर देती है। नतीजा ये रहा है कि बाजार में आते ही दवा की बिक्री खूब हुई। कंपनी ने एक साल की सेल के टार्गेट को 8 महीने में ही पूरा कर लिया।
जब इस दवा पर रोक लगी तो हेरोइन लेने लगे लोग
अमेरिकी न्यूज वेबसाइट वॉक्स के मुताबिक दवा जैसे ही मार्केट में आई तो दर्द से परेशान लोगों ने तेजी से इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया। धीरे-धीरे दूसरी फार्मा कंपनियां भी दर्द की दवा बनाने के बिजनेस में कूदने लगीं।
इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि केवल 2012 में अमेरिका के डॉक्टरों ने 25 करोड़ से ज्यादा दर्द के मरीजों को ऑक्सीकोंटिन दवा लिखी।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कीथ हम्फरीज ने तब कहा था कि इस दवा से दर्द छूट जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है, लेकिन इंसानों को इसकी आदत जरूर लग सकती है। इसके कुछ समय बाद ये देखा गया कि अमेरिका में काफी सारे लोगों को ये दवा खाने की आदत लग गई।
जब इस दवा के ओवरडोज की वजह से काफी सारे लोग मरने लगे, तब सरकार ने 2013 में इस पर रोक लगाने का फैसला किया। 2015 में अमेरिका में ड्रग्स के ओवरडोज से रिकॉर्ड 52 हजार लोगों की मौत हुई थी। ये आंकड़ा वहां सड़क दुर्घटना और मास शूटिंग से मरने वालों से कहीं ज्यादा था।
2015 में ड्रग्स से होने वाली मौतों का आंकड़ा 1995 में एड्स महामारी के दौरान होने वाली मौतों से भी ज्यादा हो गया। तब ये माना गया कि अमेरिका में नशा एक महामारी बन चुका है। इसे ओपिऑयड संकट नाम दिया गया।
इसके बावजूद जिन लोगों को इस दवा की आदत लग गई थी, वो इसे चोरी-छिपे इस्तेमाल कर रहे थे। जब इन्हें ये दवा मिलनी बंद हो गई तो ये इसकी जगह अफीम, हेरोइन और खतरनाक ड्रग फेंटेनाइल का यूज करने लगे। इस तरह अमेरिका में एक जेनरेशन पूरी तरह से नशे की चपेट आ गई।
ओपिओईड संकट में सैकलर परिवार का रोल
ओपिओईड संकट के लिए अमेरिका में सैकलर परिवार को जिम्मेदार ठहराने के पीछे पहली मुख्य वजह तो यही है कि जिस पर्ड्यू फार्मा कंपनी ने ऑक्सीकोंटिन दवा बनाई उसे चलाने वाले सैकलर परिवार के लोग थे। परिवार के कई सदस्य 2018 तक कंपनी के बोर्ड के मेंबर्स रहे, इन्होंने पेन किलर्स के नाम पर नशे की दवा बेचकर खूब मुनाफा कमाया था।
2007 में पर्ड्यू फार्मा से जुड़ी एक कंपनी पर धोखाधड़ी के आरोप लगे। इसके चलते उसे 50 हजार करोड़ का जुर्माना देना पड़ा। इसके बाद अमेरिका के 23 राज्यों में सैकलर परिवार की पर्ड्यू फार्मा के खिलाफ झूठ बोलने और दवा की हकीकत छुपाने के 2300 केस दर्ज किए गए। 2019 में सैकलर परिवार ने कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया।
2020 में अमेरिका की एक कोर्ट ने पर्ड्यू फार्मा को उसकी मार्केटिंग स्ट्रैटजी के लिए दोषी ठहराया। कोर्ट ने माना कि कंपनी ने ये बात छिपाई कि लोगों को इस दवा की नशे की तरह लत लग सकती है। इससे लोगों ने अनजाने में दवा को खूब इस्तेमाल किया जिसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ी।
अमेरिका के अलग-अलग राज्यों की कोर्ट ने कंपनी को आदेश दिया कि वो पीड़ितों को हर्जाना दें। कंपनी ने कई बार हर्जाना दिया भी थी। वहीं अमेरिकी न्यूज वेबसाइट ‘क्वार्ट्ज’ के मुताबिक ओपिओइड महामारी के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद सैकलर परिवार ने पर्ड्यू फार्मा का मालिकाना हक छोड़ दिया।
सिविल केस से बचने के लिए 6 बिलियन डॉलर की डील
सैकलर परिवार ने हजारों मुकदमों के निपटारे के लिए कुछ शर्तों के तहत 6 बिलियन डॉलर का भुगतान करने का फैसला किया। इसके बदले में पर्ड्यू और सैकलर परिवार ने उनके और कंपनी के खिलाफ किसी भी नए मुकदमे को रोकने की मांग की।
अंत तक सैकलर परिवार ने अपने पर लगे आरोपों को गलत बताया। हालांकि NYT की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सैकलर परिवार ने उस NGO को 155 करोड़ डोनेशन दिया था जो दवाइयों को लेकर सरकार की पॉलिसी बनाने में सुझाव देता है। अब इस बात की जांच कराने की मांग उठ रही है कि कहीं इस नेशनल एकेडमी संस्था ने सैकलर परिवार के दबाव में आकर तो सरकार को कोई सुझाव नहीं दिया था।
रिपोर्ट के मुताबिक 6 बिलियन डॉलर के हर्जाने का नकद भुगतान नहीं होना था। बल्कि तय किया गया कि कंपनी को फिर से खड़ा कर उसे एक “सार्वजनिक लाभार्थी ट्रस्ट” में बदला जाएगा। इसके तहत ओपियोड की पेन किलर ऑक्सिपोन सहित सभी दवाओं की बिक्री से होने वाले लाभ को बड़े पैमाने पर अभियोगियों को देंगे।
क्या फिर फंसेगा सैकलर परिवार ?
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में 6 बिलियन डॉलर की डील के खिलाफ दायर याचिका में ये मुद्दा भी उठ सकता है कि क्या सैकलर परिवार को बचाने के लिए कंपनी के दिवालिया होने का ढोंग रचा गया। क्योंकि अब तक सैकलर परिवार ने खुद को दिवालिया घोषित नहीं किया है। अगर कोर्ट 6 बिलियन डॉलर की डील को गैरकानूनी ठहरा देती है तो सैकलर परिवार के खिलाफ सिविल केस दायर होने का खतरा बढ़ सकता है।